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महत्वपूर्ण संवैधानिक शब्दावली/important constitutional terminology

 

महत्वपूर्ण संवैधानिक शब्दावली

ध्यानाकर्षण : राज्यसभा में ध्यानाकर्षण प्रक्रिया का अस्तित्व नहीं रहता है। इसके स्थान पर प्रस्ताव पत्र का प्रयोग किया जाता है।

फ्लोर क्रोसिंग : फ्लोर क्रोसिंग से आशय किसी संसद सदस्य के जिस पार्टी से वह चुना गया है, से दूसरी पार्टी में दल बदल करने से है। दल बदल की प्रवृत्ति का आशय पार्टी का अपने सदस्यों पर कम होते प्रभाव से है। इस प्रक्रिया से सरकार में अस्थिरता पैदा होती है तथा जनादेश का अपमान होता है।

निलंबित संसद :
 जब एक आम चुनाव में कोई राजनीतिक दल या राजनीतिक दलों का गठबधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होता है। तब इस प्रकार की संसद निलबित संसद कहलाती है।

अंतरिम सरकार : यह सरकार देश के इतिहास के संक्रमणकालीन दौर में निर्मित होती है। यह एक पूर्ण सरकार होती है एवं यह नीति के संदर्भ में कोई भी निर्णय ले सकती है। भारत में 15 अगस्त को इन्डिपेन्डैन्स ऑफ इंडिया एक्ट के द्वारा अंतरिम सरकार सत्ता में आई थी एवं इसका अंत मार्च, 1952 में हुआ था।

अल्पसंख्यक सरकार : यह सरकार का एक ऐसा रूप है जो लोकसभा में खुद पर विश्वास साबित नहीं कर पाती है। यह सरकार के बाहर से दूसरे राजनीतिक दलों के समर्थन पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए सन 1990-1991 में चद्रशेखर सरकार, 1996-1997 के दौरान देवगौड़ा और आई. के. गुजराल की सरकार बाहर से कांग्रेस के समर्थन पर निर्भर रही।

अध्यादेश : अध्यादेश एक ऐसा कानून है जिसे राज्य का मुखिया जरूरत होने पर लागू करता है जब विधायिका कानून बनाने की स्थिति में नहीं होती है क्योंकि यह या तो सत्र में नहीं होती है या विघटित होती है। अध्यादेश वही कार्य करता है जोकि विधायिका द्वारा बनाया गया कानून करता है। यह एक अस्थायी प्रावधान होता है। यह आवश्यक होता है कि विधायिका द्वारा इसे दी गई समयावधि में पारित किया जाय। अन्यथा इसका संचालन रुक जाता है।

प्रश्न काल : संसद की बैठकों के दौरान प्रतिदिन प्रथम एक घंटा (सामान्यतया 11:00 a.m. – 12:00 a.m.) सदस्यों के लिए आवटित होता है। इस समयावधि में वे प्रश्न पूछते हैं जिनका उत्तर मंत्री देते हैं। इस समयावधि को प्रश्नकाल कहते हैं। संसद में इसके सदस्यों द्वारा प्रश्न पूछे जाने के लिए 10 दिन पहले पूर्व सूचना देनी आवश्यक होती है।

कोरम : कोरम किसी संगठन के न्यूनतम उपस्थित सदस्यों की संख्या की कहते हैं जोकि इसकी बैठक के लिए आवश्यक होते हैं। इनसे इसकी कार्यप्रणाली चलती है। उदाहरण के लिए संसद की बैठक आहुत करने के लिए सदस्यों की उपस्थिति (कोरम) जरूरी होता है। कोरम की अनुपस्थिति में बैठक बखस्ति हो जाती है एवं कोई कार्य नहीं होता है।

व्हिप : यह किसी राजनीतिक दल द्वारा जारी एक आधिकारिक आदेश होता है। यह विधायिका में किसी दल विशेष की सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करने एवं दिशा निर्देश देने के लिए जारी किया जाता है। यदि पार्टी का कोई सदस्य व्हिप का उल्लघन करता है तो गलती करने वाले सदस्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है।

शून्य काल : यह वह समयावधि है जो प्रश्न काल के बाद शुरू होती है। यह तब अस्तित्व में आता है जब सदस्य लोक महत्व को किसी मामले को छोटी सूचना या बिना किसी सूचना के उठाते हैं। इस प्रक्रिया को संसद के नियम एवं प्रक्रियाओं क अंदर नहीं रखा जाता है। यह सन् 1970 से औपचारिक हो गया है।

स्थगन प्रस्ताव : यदि आकस्मिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण कोई घटना या दुर्घटना घट जाए तो सदन के सदस्य यह प्रस्ताव रख सकते हैं कि उस समय विचाराधीन मामले को कुछ समय के लिए रोक कर उस घटना पर विचार कर लिया जाए इसे स्थगन प्रस्ताव कहते हैं. इस प्रकार का प्रस्ताव न्यूनतम 50 सदस्यों की स्वीकृति पर ही रखा जा सकता है, उठाए जाने वाले मसला इतना गम्भीर होता चाहिए कि सदन को लिए अपने सामान्य कार्य को रोककर उस पर तुरन्त विचार करना आवयश्यक व उचित हो अध्यक्ष को इस सम्बन्ध में पूरा अधिकार है कि वह उस मामले पर वाद विवाद की अनुमति दे या न दे। स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से संसद सदस्यों को यह मौका मिलता है कि मंत्रियों के कायाँ एवं भूलों को प्रकाश में ला सक।

मिली-जुली सरकार : जब किसी प्रजातन्त्र में दो या दो से अधिक राजनीतिक दल भारत में जनता पार्टी व अकाली दल की मिली जुली सरकार बनी थी।

अविश्वास प्रस्ताव : अविश्वास का प्रस्ताव (वैकल्पिक रूप से अविश्वास, निंदा प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव या विश्वास प्रस्ताव पर मतदान) एक संसदीय प्रस्ताव है, जिसे पारंपरिक रूप से विपक्ष द्वारा संसद में एक सरकार को हराने या कमजोर करने की उम्मीद से रखा जाता है या दुर्लभ उदाहरण के रूप में यह एक तत्कालीन समर्थक द्वारा पेश किया जाता है, जिसे सरकार में विश्वास नहीं होता. यह प्रस्ताव नये संसदीय मतदान (अविश्वास का मतदान) द्वारा पारित किया जाता है या अस्वीकार किया जाता है।

अधिनियम -- संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित विधेयक जिसे राष्ट्रपति ने अपनी अनुमति दे दी है।

तदर्थ समिति-- विशिष्ट विषय पर विचार करने तथा प्रतिवेदन देने के लिए सभा द्वारा अथवा सभापति द्वारा अथवा संयुक्त रूप से दोनों सभाओं के पीठासीन अधिकारियों द्वारा गठित समिति और यह समिति ज्योंही अपना कार्य पूर्ण कर लेती हैं इसका कार्यकाल समाप्त माना जाता है।

वाद-विवाद का स्थगन -- किसी प्रस्ताव/संकल्प/विधेयक, जिस पर तत्समय सभा में विचार चल रहा है, पर वाद-विवाद को सभा द्वारा गृहीत किसी प्रस्ताव के द्वारा प्रस्ताव में ही निर्दिष्ट किसी आगामी दिन तक के लिए अथवा अनियत दिन के लिए स्थगित करना।

सभाकी बैठक का स्थगन -- स्थगन होने पर सभा की बैठक समाप्त हो जाती है और सभा अगली बैठक के लिए नियत समय पर पुन: समवेत होती है।

अनियत दिन के लिए स्थगन -- अगली बैठक के लिए कोई निश्चित तिथि नियत किए बिना ही सभा की किसी बैठक की समाप्ति।

विनियोग विधेयक -- यह किसी वित्तीय वर्ष अथवा उसके एक भाग की सेवाओं के लिए लोक सभा द्वारा दत्तमत धन और भारत की संचित निधि पर प्रभारित धन के भारत की संचित निधि से प्रत्याहरण अथवा विनियोग का उपबंध करने के लिए वार्षिक रूप से (अथवा वर्ष में कई बार) पारित किया जाने वाला धन विधेयक है।

बैलट- लॉटरी के जरिए एक से अधिक सूचनाओं की परस्पर अग्रता को निर्धारित करने की प्रक्रिया।

विधेयक -- यह उचित रूप में रखे गए विधायी प्रस्ताव का प्रारूप है जो संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित किए जाने और राष्ट्रपति द्वारा अनुमति दिए जाने पर अधिनियम बन जाता है।

बजट-- यह किसी वित्त वर्ष के लिए भारत सरकार की प्राक्कलित आय और व्यय का वार्षिक वित्तीय विवरण होता है। राज्य सभा के सभा पटल पर बजट दो भागों में, अर्थात्, रेल बजट और सामान्य बजट के रूप में रखा जाता है।

संसदीय समाचार -- संसदीय समाचार से राज्य सभा का संसदीय समाचार अभिप्रेत है। यह दो भागों में प्रकाशित होता है। भाग-एक में सभा की प्रत्येक बैठक की कार्यवाही का संक्षिप्त विवरण सम्मिलित होता है और भाग-दो में सभा या समितियों के कार्य से संबद्ध या संसक्त किसी मामले या किसी भी अन्य मामले, जो सभापति के विचार से इसमें सम्मिलित किया जा सकता है, के संबंध में जानकारी दी गई होती है।

बैठकों की सारणी -- बैठकों की अस्थायी सारणी राज्य सभा की बैठकों के दिवसों और उन दिवसों पर सभा द्वारा संपन्न किए जाने वाले कार्य के स्वरूप को दर्शाती है।

ध्यानाकर्षण -- एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे सदस्य अविलम्बनीय लोक महत्व के मामले पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करता है, मंत्री उस पर संक्षिप्त वक्तव्य देते हैं और इसके उपरांत सदस्य स्पष्टीकरण मांगते हैं।

निर्णायक मत -- किसी मामले में मतों की संख्या समान होने पर सभा में सभापति या उस हैसियत से कार्य कर रहे सदस्य और समिति में अध्यक्ष या इस हैसियत से कार्य कर रहे सदस्य द्वारा दिया गया मत निर्णायक मत होता है।

क्रासिंग दफ्लोर --इससे सभा में बोल रहे सदस्य और सभापीठ के बीच से गुजरना अभिप्रेत है। यह संसदीय शिष्टाचार का उल्लंघन माना जाता है।

अनुदानमांग -- मंत्रालय/विभाग के योजना तथा गैर-योजना व्यय को पूरा करने के लिए बजट आवंटन का निर्धारित किया जाना।

मत-विभाजन -- यह सभा के समक्ष प्रस्तावित उपाय या प्रश्न पर, उसके पक्ष या विपक्ष में मतों को अभिलिखित करके किसी निर्णय पर पहुंचने का तरीका है।

लाटरी निकालना -- इस पद्धति का उपयोग गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों और संकल्पों, एक ही दिन लिए जाने के लिए एक से अधिक सदस्यों द्वारा साथ-साथ दी गई प्रश्नों की सूचनाओं, आधे घंटे की चर्चा या किसी अन्य सूचना की सापेक्षिक पूर्ववर्तिता का निर्धारण करने के लिए किया जाता है।

कार्यवाही में से निकाला जाना -- मानहानिकारक या अशिष्ट या असंसदीय या गरिमारहित शब्दों, वाक्यांशों या अभिव्यक्तियों को सभापति के आदेश से राज्य सभा की कार्यवाही या अभिलेख में से निकाल दिया जाता है।

वित्त विधेयक -- यह विधेयक अगले वित्त वर्ष के लिए भारत सरकार के वित्तीय प्रस्तावों को लागू करने के लिए सामान्यत: प्रति वर्ष पुर:स्थापित किया जाता है और इसमें किसी अवधि के लिए अनुपूरक वित्तीय प्रस्तावों को लागू करने वाला विधेयक शामिल होता है।

वित्तीय कार्य -- सभा के वित्तीय कार्य में रेल और सामान्य बजटों तथा अनुपूरक अनुदान मांगों के विवरणों को, उनके लोक सभा में प्रस्तुत किये जाने के बाद, सभा पटल पर रखा जाना, सामान्य और रेल बजटों पर सामान्य चर्चा, सम्बद्ध विनियोग विधेयकों तथा वित्त विधेयकों पर विचार व उन्हें लौटाया जाना, ऐसे राज्य, जो राष्ट्रपति के शासनाधीन हैं, के बजटों इत्यादि का सभा पटल पर रखा जाना शामिल है।

राजपत्र -- इससे भारत का राजपत्र अभिप्रेत है।

आधे घंटे की चर्चार् -- सभापति की अनुज्ञान से कोई सदस्य पर्याप्त लोक महत्व के किसी ऐसे मामले पर चर्चा आरम्भ कर सकता है जो हाल ही में किसी मौखिक या लिखित प्रश्न का विषय रहा हो और जिसके उत्तर को किसी तथ्यपूर्ण मामले पर स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है।

सभाका नेता -- इस का तात्पर्य प्रधान मंत्री से है यदि वह राज्य सभा का सदस्य हो या उस मंत्री से है जो राज्य सभा का सदस्य हो और सभा के नेता के रूप में कार्य करने के लिए प्रधान मंत्री द्वारा नाम-निर्देशित किया गया हो।

विपक्ष का नेता -- सभा का वह सदस्य जो तत्समय सरकार को उस सभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता हो और जिसे सभापति ने उस रूप में मान्यता प्रदान की हो।

अनुपस्थिति की अनुमति -- सभा की बैठकों से अनुपस्थित रहने के लिए इसकी अनुमति प्राप्त करने के इच्छुक सदस्य से इसके कारण तथा ऐसी अवधि बताते हुए एक आवेदन करना अपेक्षित है जिसके लिए उसे सभा की बैठकों से अनुपस्थिति होने की अनुमति दी जाये।

विधान कार्य -- सभा में किसी मंत्री या गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पेश किए गए विधेयक का पुर: स्थापन, उस पर विचार तथा पारण।

कार्यावलि -- यह कार्य की उन मदों की सूची होती है जो किसी दिन विशेष को राज्य सभा में अपने उसी क्रम में लिए जाने के लिए निर्धारित की गई होती है जिस क्रम में वे इसमें दर्ज है।

लॉबी -- (क) सभा कक्ष से एकदम सटा हुआ और उसी के साथ समाप्त होने वाला बन्द गलियारा लॉबी कहलाता है।

प्रथम भाषण -- सभा में राज्य सभा के लिए अपने निर्वाचन/नाम-निर्देशन के बाद सदस्य का प्रथम भाषण होता है।

अनुमति से उठाये गए मामले -- प्रश्न काल और पत्रों को सभा पटल पर रखे जाने के तुरन्त बाद, कोई सदस्य सभापति की पूर्व अनुमति से अविलम्बनीय लोक महत्व के किसी मुद्दे को उठा सकता है।

विधेयक का भारसाधकसदस्य -- वह मंत्री/गैर सरकारी सदस्य जिसने सरकारी/गैर सरकारी सदस्यों के विधेयक को पुर:स्थापित किया है।

कार्यज्ञापन -- यह सभापीठ द्वारा उपयोग हेतु दिवस की कार्यावलि में सूचीबद्ध मदों की घोषणा करते समय उसकी सहायता करने के लिए होता है।

संदेश -- संविधान के अनुच्छेद 86 (2) और 111 के अधीन संसद की एक सभा अथवा दोनों सभाओं को राष्ट्रपति का पत्र और संसद की एक सभा द्वारा दूसरी सभा को भेजा गया पत्र संदेश कहलाता है।

प्रस्ताव -- मंत्री या सदस्य द्वारा सभा को दिया गया इस आशय का औपचारिक प्रस्ताव कि सभा कोई कार्यवाही करे, कोई कार्यवाही किए जाने का आदेश दे अथवा किसी मामले पर राय व्यक्त करे और प्रस्ताव की भाषा इस प्रकार की होती है कि, स्वीकृत हो जाने पर वह सभा के निर्णय अथवा इच्छा करने का द्योतक हो जाता है।

धन्यवादप्रस्ताव -- यह सभा में उपस्थित किया गया एक औपचारिक प्रस्ताव होता है जिसमें राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 87 के अधीन संसद की दोनों सभाओं की सम्मिलित बैठक में दिये गये अभिभाषण के प्रति सभा की कृतज्ञता ज्ञापित की जाती है।

किसीसदस्यकानामलेकरउसेअवकारीबताना -- सभापति द्वारा ऐसे सदस्य, जो सभापीठ के प्राधिकार का अनादर करता है अथवा सभा के कार्य में लगातार और जानबूळा कर बाधा डालते हुए सभा के नियमों का दुरूपयोग करता है, के आचरण की ओर सभा का ध्यान इस दृष्टि से आकर्षित कराना कि उस सदस्य को सभा की सेवा से अधिक से अधिक सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित करने की कार्रवाई की जाए।

अध्यादेश -- संविधान के अनुच्छेद 123 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति द्वारा बनाये गए कानून को अध्यादेश कहते हैं।

उपसभाध्यक्षपेनल -- यह सभापति द्वारा नाम-निर्देशित किए गए राज्य सभा के छ: सदस्यों का पेनल होता है जिनमें से कोई भी सदस्य सभापति अथवा उसकी अनुपस्थिति में उपसभापति द्वारा वैसा अनुरोध किए जाने पर सभापति और उपसभापति की अनुपस्थिति में सभा का सभापतित्व कर सकता है।

सभापटलपररखेगयेपत्र -- ऐसे पत्र या प्रलेख जो सभापति की अनुमति से किसी मंत्री अथवा किसी गैर-सरकारी सदस्य अथवा महासचिव द्वारा संविधान के उपबंधों अथवा राज्य सभा के प्रक्रिया विषयक नियमों अथवा संसद के किसी अधिनियम और उनके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अनुसरण में सभा पटल पर इस प्रयोजन से रखे जाते हैं ताकि उन्हें राज्य सभा के अभिलेख में लिया जा सके।

वैयक्तिकस्पष्टीकरण -- वह सदस्य या मंत्री जिसके विरुद्ध सभा में वैयक्तिक स्वरूप की टीका-टिप्पणियां या आलोचना की जाती हैं, सभापति की सम्मति से, अपने बचाव में वैयक्तिक स्पष्टीकरण देने का हकदार है।

औचित्यकाप्रश्न -- यह प्रक्रिया विषयक नियमों अथवा संविधान के ऐसे अनुच्छेदों, जो सभा के कार्य को नियंत्रित करते हैं, के निर्वचन अथवा प्रवर्त्तन से संबंधित प्रश्न होता है जो सभा में उठाया जाता है और सभापीठ के निर्णय के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

राज्यसभाकीप्रसीमाएं -- इसमें सभाकक्ष, लॉबियां, दीर्घाओं और ऐसे अन्य स्थान शामिल हैं जिन्हें सभापति समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे।

गैर-सरकारीसदस्योंकासंकल्प -- गैर-सरकारी सदस्यों के संकल्पों के लिए नियत दिन को किसी सदस्य द्वारा, मंत्री के सिवाए, प्रस्तुत सामान्य लोक हित का ऐसा मामला, जो सभा द्वारा अभिमत की घोषणा के रूप में हो या ऐसे किसी अन्य रूप में हो जिसे सभापति उचित समळों।

सत्रावसान -- राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 85(2) क के अधीन दिए गए आदेश द्वारा राज्य सभा के सत्र की समाप्ति।

प्रस्तावपरमतलेना -- किसी प्रस्ताव पर वाद-विवाद समाप्त हो जाने पर, सभापति अपने आसन से खड़े हो कर 'प्रश्न यह है कि ' शब्दों से आरम्भ करके सभा के समक्ष प्रस्ताव को बोलकर या पढ़ कर सुनाता है।

प्रश्न-सारणी -- सदस्यों को सत्र के आमंत्रण सहित परिचालित की गई एक सारणी जिसमें प्रश्नों के उत्तरों की तारीखें और विभिन मंत्रालयों/विभागों से संबंधित प्रश्नों की सूचनाएं प्राप्त करने की अंतिम तारीखें दी गई होती हैं।

प्रश्नकाल -- सभा की बैठक का पहला घंटा प्रश्न पूछे जाने और उनके उत्तर दिए जाने के लिए आवंटित है।

विशेषाधिकारकाप्रश्न -- प्रश्न जिसमें किसी सदस्य के या सभा के या इसकी किसी समिति के विशेषाधिकार का उल्लंघन या सभा की अवमानना अंतर्ग्रस्त हो।

गणपूर्ति -- संविधान के अनुच्छेद 100(3) के अधीन यथा उपबंधित सभा या समिति की किसी बैठक के कार्य के वैध निष्पादन के लिए उपस्थित सदस्यों की अपेक्षित न्यूनतम संख्या सभा की बैठक की गणपूर्ति सभा की कुल सदस्य-संख्या के दसवें भाग से होगी।

राज्यसभावादविवाद -- सभा में कही गई किसी भी बात का शब्दश: अभिलेख राज्य सभा की प्रत्येक बैठक के लिए शासकीय वृत्तलेखक द्वारा प्रतिवेदित किया जाता है, कुछ ऐसे शब्दों, वाक्यांशों तथा अभिव्यक्ति, यदि कोई हों, को छोड़कर जिनके लिए सभापीठ द्वारा कार्यवाही से निकाले जाने हेतु उस समय आदेश दिया जाता है अथवा सभापति द्वारा अभिलिखित न किए जाने हेतु उस समय आदेश दिया जाता है, जब सदस्य उनकी अनुमति के बिना बोलते हैं।

सदस्योंकीनामावलि -- ऐसा रजिस्टर जिसमें नए चुने गए सदस्य शपथ लेने या प्रतिज्ञापन करने के पश्चात् सभा में पहली बार अपना स्थान ग्रहण करने से पहले हस्ताक्षर करते हैं।

सत्र -- राज्य सभा के किसी सत्र की अवधि राष्ट्रपति के राज्य सभा को आमंत्रित करने वाले आदेश में उल्लिखित तारीख और समय से आरंभ होकर राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा का सत्रावसान किए जाने के दिन तक होती है।

अल्पकालिकचर्चा -- अविलम्बनीय लोक महत्व के किसी मामले को उठाने के लिए, सदस्य द्वारा उठाये जाने वाले मामले को स्पष्ट तथा सही रूप से विनिर्दिष्ट करते हुए एक सूचना दी जानी होती है जिसका समर्थन दो अन्य सदस्यों द्वारा किया जाता है।

अल्पसूचनाप्रश्न -- अविलंबनीय लोक महत्व के विषय के संबंध में कोई प्रश्न, जिसे अल्प सूचना देकर प्रश्न पूछने के कारण बताते हुए पूरे पंद्रह दिन से कम समय की सूचना पर सदस्य द्वारा मौखिक उत्तर हेतु पूछा जाए।

सभाकीबैठक -- राज्य सभा की बैठक तभी विधिवत गठित होती है जब बैठक का सभापतित्व सभापति या कोई ऐसा सदस्य करे जो संविधान अथवा राज्य सभा के प्रक्रिया विषयक नियमों के अधीन सभा की बैठक का सभापतित्व करने के लिए सक्षम हो।

विशेषउल्लेख -- यह सदस्य को उपलब्ध एक प्रक्रिया है जो अधिकतम 250 शब्दों के मूल-पाठ को पढ़कर सभा में लोक महत्व के किसी मामले का उल्लेख करना चाहता है।

स्थायीसमिति -- सभा द्वारा निर्वाचन या सभापति द्वारा नामनिर्देशन द्वारा प्रति वर्ष या समय-समय पर गठित की गई ऐसी समिति, जो स्थायी स्वरूप की होती है।

तारांकितप्रश्न -- ऐसा प्रश्न जो मौखिक उत्तर पाने के इच्छुक किसी सदस्य द्वारा सभा में पूछा जाए और जिसका विभेद तारांक लगाकर किया जाए।

परिनियतसंकल्प -- संविधान या संसद के किसी अधिनियम के उपबंध के अनुसरण में कोई संकल्प।

अधीनस्थविधान -- संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद के अधिनियम द्वारा प्रत्यायोजित शक्ति के अनुसरण में किसी कार्यकारी या अन्य अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा बनाए गए नियम, विनियम, आदेश, योजनाएं, उपविधियां आदि जिन्हें कानून की शक्ति प्राप्त है।

आमंत्रण -- राज्य सभा के महासचिव द्वारा राष्ट्रपति के आदेशों के अधीन राज्य सभा के सदस्यों को जारी किया गया आधिकारिक पत्र जिसमें उन्हें राज्य सभा का सत्र आरम्भ होने के स्थान, तारीख और समय के बारे में सूचित किया जाता है।

अनुपूरकप्रश्न -- किसी ऐसे तथ्यपूर्ण मामले, जिसके संबंध में प्रश्न काल के दौरान उत्तर दिया गया हो, को और स्पष्ट करने के प्रयोजन से सभापति द्वारा बुलाये जाने पर किसी सदस्य द्वारा पूछा गया प्रश्न।

सभापटल -- सभापति के आसन के नीचे महासचिव के डेस्क के सामने का पटल। सभा पटल पर रखे जाने हंतु अपेक्षित पत्र इस पटल पर रखे गए समळो जाते हैं।

अतारांकितप्रश्न -- सभा में मौखिक उत्तर के लिए न पुकारा जाने वाला प्रश्न। ऐसे प्रश्न का लिखित उत्तर सभा पटल पर रखा गया समळा जाता है। इसके बाद और प्रश्न नहीं पूछे जा सकते |

विदाईउद्गार -- यह प्रथा है कि प्रत्येक सत्र में सभापीठ, सदस्यों व दलों के नेताओं और समूहों को सभा के कार्य संचालन में उनके सहयोग के लिए धन्यवाद देते हुए सत्र के समापन पर विदाई उद्गार दे।

सचेतकगण -- सत्ताधारी दल तथा विपक्षी दलों/समूहों से विनिर्दिष्ट कार्य निष्पादित करने और संसद के अंदर किसी दल के आंतरिक संगठन में महत्वपूर्ण सम्पर्क बनाने के लिए सदस्य लिए जाते हैं।

Comments

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भारतीय संविधान के भाग |Part of Indian Constitution

  भाग 1  संघ और उसके क्षेत्र- अनुच्छेद 1-4 भाग 2  नागरिकता- अनुच्छेद 5-11 भाग 3  मूलभूत अधिकार- अनुच्छेद 12 - 35 भाग 4  राज्य के नीति निदेशक तत्व- अनुच्छेद 36 - 51 भाग 4 A  मूल कर्तव्य- अनुच्छेद 51A भाग 5  संघ- अनुच्छेद 52-151 भाग 6  राज्य- अनुच्छेद 152 -237 भाग 7  संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम,- 1956 द्वारा निरसित भाग 8  संघ राज्य क्षेत्र- अनुच्छेद 239-242 भाग 9  पंचायत - अनुच्छेद 243- 243O भाग 9A  नगर्पालिकाएं- अनुच्छेद 243P - 243ZG भाग 10  अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र- अनुच्छेद 244 - 244A भाग 11  संघ और राज्यों के बीच संबंध- अनुच्छेद 245 - 263 भाग 12  वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद -अनुच्छेद 264 -300A भाग 13  भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम- अनुच्छेद 301 - 307 भाग 14  संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं- अनुच्छेद 308 -323 भाग 14A  अधिकरण- अनुच्छेद 323A - 323B भाग 15 निर्वाचन- अनुच्छेद 324 -329A भाग 16  कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध संबंध- अनुच्छेद 330- 342 भाग 17  राजभाषा- अनुच्छेद 343- 351 भाग 18  आपात उपबंध अनुच्छेद- 352 - 360 भाग 19  प्रकीर्ण- अनुच्छेद 361 -367

संविधान की प्रस्तावना प्रस्तावना संविधान के लिए एक परिचय के रूप में कार्य |Preamble to the Constitution Preamble Acts as an introduction to the Constitution

  प्रस्तावना उद्देशिका संविधान के आदर्शोँ और उद्देश्योँ व आकांक्षाओं का संछिप्त रुप है। अमेरिका का संविधान प्रथम संविधान है, जिसमेँ उद्देशिका सम्मिलित है। भारत के संविधान की उद्देशिका जवाहरलाल नेहरु द्वारा संविधान सभा मेँ प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है। उद्देश्यिका 42 वेँ संविधान संसोधन (1976) द्वारा संशोधित की गयी। इस संशोधन द्वारा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता शब्द सम्मिलित किए गए। प्रमुख संविधान विशेषज्ञ एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को  संविधान का परिचय पत्र  कहा है। हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिक को : सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक नयाय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब मेँ व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा मेँ आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत २००६ विक्रमी) को एतद् द्वारा

भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत कौन कौन से है |Which are the foreign sources of Indian constitution

  भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव भारतीय शासन अधिनियम 1935 का है। भारत के संविधान का निर्माण 10 देशो के संविधान से प्रमुख तथ्य लेकर बनाया गया है। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है।भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गई है: संयुक्त राज्य अमेरिका:  मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात, न्यायपालिका की स्वतंत्रता ब्रिटेन:  संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि निर्माण प्रक्रिया, विधि का शासन, मंत्रिमंडल प्रणाली, परमाधिकार लेख, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनवाद आयरलैंड:  नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन ऑस्ट्रेलिया:  प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूच

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Dr. Bhimrao Ambedkar

   डॉ. भीमराव अम्बेडकर  की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of  Dr. Bhimrao Ambedkar डॉ. भीमराव अम्बेडकर डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने 1907 ई. में हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद बड़ीदा के महाराज ने उच्च शिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। तत्पश्चात् 1919 ई. में इन्होंने अमेरिका के कोलम्विया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. सेल्गमैन उनके प्राध्यापक थे। इसके उपरान्त डॉक्टरेट के लिए अम्बेडकर ने लन्दन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में एडमिशन लिया।      अम्बेडकर साहब का जन्म चूँकि एक अस्पृश्य परिवार में हुआ था जिस कारण इस घटना ने इनके जीवन को बहुत ही ज्यादा प्रभावित किया जिससे ये भारतीय समाज की जाति व्यवस्था के विरोध में आगे आए। डॉ. अम्बेडकर ने 1925 ई. में एक पाक्षिक समाचार पत्र 'बहिष्कृत भारत' का प्रकाशन बम्बई से प्रारम्भ किया। इसके एक वर्ष पश्चात् (1924 ई. में) इन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इनके अलावा कुछ संस्थाएँ और थी- समता सैनिक दल, स्वतन्त्र लेबर पार्टी, अनुसूचित जाति

भारतीय संविधान के अनुच्छेद | Article of Indian Constitution Article: - Description

  अनुच्‍छेद :- विवरण 1:-  संघ का नाम और राज्‍य क्षेत्र 2:-  नए राज्‍यों का प्रवेश या स्‍थापना 2क:-  [निरसन] 3:-  नए राज्‍यों का निर्माण और वर्तमान राज्‍यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन 4:-  पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक, और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्‍छेद 2 और अनुच्‍छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां 5:-  संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता 6:-  पाकिस्‍तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 7:-  पाकिस्‍तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 8:-  भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 9:-  विदेशी राज्‍य की नागरिकता, स्‍वेच्‍छा से अर्जित करने वाले व्‍यक्तियों का नागरिक न होना 10:-  नागरिकता के अधिकारों को बना रहना 11:-  संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना 12:-  परिभाषा 13:-  मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्‍पीकरण करने वाली विधियां 14:-  विधि के समक्ष समानता 15:-  धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर विभेद क

हीगल की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Hegel)/हीगल की रचनाएँ/विश्वात्मा पर विचार /विश्वात्मा पर विचार / जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल

  जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल  हीगल (Hegel) जर्मन आदर्शवादियों में होगल का नाम शीर्षस्य है। इनका पूरा नाम जार्ज विल्हेम फ्रेडरिक हीगल था। 1770 ई. में दक्षिण जर्मनी में बर्टमवर्ग में उसका जन्म हुआ और उसकी युवावस्था फ्रांसीसी क्रान्ति के तुफानी दौरे से बीती हींगल ने विवेक और ज्ञान को बहुत महत्त्व प्रदान किया। उसके दर्शन का महत्त्व दो ही बातों पर निर्भर करता है- (क) द्वन्द्वात्मक पद्धति, (ख) राज्य का आदर्शीकरण। हीगल की रचनाएँ लीगल की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं 1. फिनोमिनोलॉजी ऑफ स्पिरिट (1807)  2. साइन्स ऑफ लॉजिक (1816) 3. फिलॉसफी ऑफ लॉ या फिलॉसफी ऑफ राइट (1821) 4. कॉन्सटीट्शन ऑफ जर्मनी  5. फिलॉसफी ऑफ हिस्ट्री (1886) मृत्यु के बाद प्रकाशित विश्वात्मा पर विचार  हीगल के अनुसार इतिहास विश्वात्मा की अभिव्यक्ति की कहानी है या इतिहास में घटित होने वाली सभी घटनाओं का सम्बन्ध विश्वात्मा के निरन्तर विकास के विभिन्न चरणों से है। विशुद्ध अद्वैतवादी विचारक हीगल सभी जड़ एवं चेतन वस्तुओं का उद्भव विश्वात्मा के रूप में देखता है वेदान्तियों के रूप में देखता है वेदान्तियों के 'तत्वमसि', 'अ

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  राजनीति विज्ञान के 100 महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 1. दार्शनिक राजा का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया था ? उत्तर. प्लेटो ने। 2. संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव हैं ? उत्तर. एंटोनियो गुटेरेश है जो पुर्तगाल के हैं, जिन्होने 1 जनवरी 2017 को अपना कार्यकाल सँभाला 3. श्रेणी समाजवाद का संबंध निम्नलिखित में से किस देश से रहा है ? उत्तर. बिर्टेन से। 4. राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया था ? उत्तर. जेम्स प्रथम ने 5. मुख्य सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर. राष्ट्रपति 6. संसद का चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी की न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए? उत्तर. 25 वर्ष 7. भारतीय संविधान के किस संशोधन द्वारा प्रस्तावना में दो शब्द ‘समाजवादी’ और धर्मनिरपेक्ष जोड़े गए थे? उत्तर. 42वें 8. भारतीय संविधान के कौनसे भाग में नीति निदेशक तत्वों का वर्णन है ? उत्तर. चतुर्थ। 9. जस्टिस शब्द जस से निकला है जस का संबंध किस भाषा से है ? उत्तर. लैटिन 10. पंचायत समिति का गठन होता है? उत्तर. प्रखंड स्तर पर 11. “मेरे पास खून, पसीना और आँसू के अतिरिक्त देने के लिए कुछ भी नहीं है ” यह किसने क

निति आयोग और वित्त आयोग |NITI Ayog and Finance Commission

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विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Vinayak Damodar Savarkar

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भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making

  भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making संविधान निर्माण की सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 में "स्वराज विधेयक" द्वारा की गई। 1916 में होमरूल लीग आन्दोलन चलाया गया।जिसमें घरेलू शासन सचांलन की मांग अग्रेजो से की गई। 1922 में गांधी जी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग प्रबलतम तरीके से की और कहा- कि जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी भारतीय संविधान का निर्माण -भारतीय लोगों की इच्छाओं के अनुकुल किया जाएगा। अगस्त 1928 में नेहरू रिपोर्ट बनाई गई। जिसकी अध्यक्षता पं. मोतीलाल नेहरू ने की। इसका निर्माण बम्बई में किया गया। इसके अन्तर्गत ब्रिटीश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया। जिसमें मौलिक अधिकारों अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा अखिल भारतीय संघ एवम् डोमिनियम स्टेट के प्रावधान रखे गए। इसका सबसे प्रबलतम विरोध मुस्लिम लीग और रियासतों के राजाओं द्वारा किया गया। 1929 में जवाहर लाला नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर सम्मेलन हुआ। जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई। 1936 में कांग्रेस का फैजलपुर सम्मेलन आयोजित किया गय

PREAMBLE of India

 PREAMBLE WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political, LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship, EQUALITY of status and of opportunity: and to promote among them all  FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation,  IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.

राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व |Directive Principles of State Policy

  36. परिभाषा- इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' का वही अर्थ है जो भाग 3 में है। 37. इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना- इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। 38. राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा- राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूंप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा। राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा। 39. राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व- राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनि

राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर/very important question and answer of polity

 राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्‍न – किस संविधान संशोधन अधिनियम ने राज्‍य के नीति निर्देशक तत्‍वों को मौलिक अधिकारों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली बनाया?  उत्‍तर – 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) ने प्रश्‍न – भारत के कौन से राष्‍ट्रपति ‘द्वितीय पसंद'(Second Preference) के मतों की गणना के फलस्‍वरूप अपना निश्चित कोटा प्राप्‍त कर निर्वाचित हुए?  उत्‍तर – वी. वी. गिरि प्रश्‍न – संविधान के किस अनुच्‍छेद के अंतर्गत वित्‍तीय आपातकाल की व्‍यवस्‍था है?  उत्‍तर – अनुच्‍छेद 360 प्रश्‍न – भारतीय संविधान कौन सी नागरिकता प्रदान करता है?  उत्‍तर – एकल नागरिकता प्रश्‍न – प्रथम पंचायती राज व्‍यवस्‍था का उद्घाटन पं. जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्‍टूबर, 1959 को किस स्‍थान पर किया था ? उत्‍तर – नागौर (राजस्‍थान) प्रश्‍न – लोकसभा का कोरम कुल सदस्‍य संख्‍या का कितना होता है?  उत्‍तर – 1/10 प्रश्‍न – पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन तथा पुनर्निरीक्षण किसके द्वारा किया जाताहै? उत्‍तर – राष्‍ट्रीय विकास परिषद प्रश्‍न – राज्‍य स्‍तर पर मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है?  उत्‍तर – राज्‍यपाल प्रश्‍न – नए

केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद | Center-State Relations and Inter-State Council

  केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद केन्द्र-राज्य सम्बन्ध- सांविधानिक प्रावधान अनुच्छेद 246:- संसद को सातवीं अनुसूची की सूची 1 में प्रगणित विषयों पर विधि बनाने की शक्ति। अनुच्छेद 248:- अवशिष्ट शक्तियां संसद के पास अनुच्छेद 249:-राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की शक्ति संसद के पास अनुच्छेद 250:- यदि आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में विधि बनाने की संसद की शक्ति अनुच्छेद 252:- दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति अनुच्छेद 257:- संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को निदेश दे सकती है अनुच्छेद 257 क:- संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अभिनियोजन द्वारा राज्यों की सहायता अनुच्छेद 263:- अन्तर्राज्य परिषद का प्रावधान भारत के संविधान ने केन्द्र-राज्य सम्बन्ध के बीच शक्तियों के वितरण की निश्चित और सुस्पष्ट योजना अपनायी है। संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के सम्बन्धों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: 1. केन्द्र तथा राज्यों के बीच विधायी सम्बन्ध। 2. केन्द्र तथा राज्यों के बीच प्रशासन