भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक
भारतीय संविधान के अध्याय 5 द्वारा स्थापित एक प्राधिकारी है जो भारत सरकार तथा सभी प्रादेशिक सरकारों के आय-व्यय का लेखांकन करता है। वह सरकार के स्वामित्व वाली कम्पनियों का भी लेखांकन करता है। उसकी रिपोर्ट पर सार्वजनिक लेखा समितियाँ ध्यान देती है। नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ही भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा का भी मुखिया होता है। यही संस्था सार्वजनिक धन की बरबादी के मामलों को समय-समय पर प्रकाश में लाती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन किया गया है
सीएजी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और इसे उसके पद से केवल उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा, जिस प्रकार से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
सीएजी भारत सरकार और राज्य सरकार के व्यय के खातो की लेखा जांचना करने का उत्तरदायी होता है, कैग सुनिश्चित करता है की धन का विवेकपूर्ण ढंग से, विधि पूर्वक वैध साधनों के माध्यम से उपयोग किया गया है और वित्तीय अनियमित्ता की भी जांच करता है।
डा. भीमराव अंबेडकर के अनुसार, कैग भारतीय संविधान का चौथा स्तम्भ है, अन्य तीन हैं, सर्वोच्च न्यायालय, लोक सेवा आयोग, चुनाव आयोग।
सीएजी का कार्यकाल, वेतन और सेवानिवृत्त होने की आयु का निर्धारण संसद में पारित किये गए कानून के अनुसार किया जायेगा। सीएजी का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है और सेवानिवृत्त होने की आयु 65 वर्ष होती है। सीएजी के हाथों में मामलो आने के बाद वह किसी अन्य सरकारी या सावर्जनिक पद को ग्रहण करने का अधिकारी नहीं होता है।
सीएजी के रूप में नियुक्त व्यक्ति तीसरी अनुसूची में दिए प्रयोजन के अनुसार, अपना कार्यभार सँभालने से पूर्व राष्ट्रपति के समक्ष शपथ लेते है।अनुच्छेद 149 कैग के कर्तव्यों और शक्तियों को निर्धारित करने के लिए संसद को अधिकृत करता है। वह भारत के संचित निधि और प्रत्येक राज्य की संचित निधि तथा प्रत्येक संघ राज्य क्षेत्र की संचित निधि का ऑडिट (लेखा परीक्षा) करता है। इसी तरह, प्रत्येक राज्य और भारत की आकस्मिकता निधि के व्यय का ऑडिट करता है। वह अपनी सुनिश्चितता हेतु प्रत्येक राज्य तथा केंद्र की प्राप्तियों और व्यय ऑडिट करता है। तथा नियम और प्रक्रियाएं जिनकी रचना अनियमित खर्च की प्रभावी परीक्षा निश्चित करने के लिए हुई है।
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