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भारतीय संविधान के अनुच्छेद | Article of Indian Constitution Article: - Description

 


अनुच्‍छेद :- विवरण

  • 1:- संघ का नाम और राज्‍य क्षेत्र
  • 2:- नए राज्‍यों का प्रवेश या स्‍थापना
  • 2क:- [निरसन]
  • 3:- नए राज्‍यों का निर्माण और वर्तमान राज्‍यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
  • 4:- पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक, और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्‍छेद 2 और अनुच्‍छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां
  • 5:- संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
  • 6:- पाकिस्‍तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
  • 7:- पाकिस्‍तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
  • 8:- भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
  • 9:- विदेशी राज्‍य की नागरिकता, स्‍वेच्‍छा से अर्जित करने वाले व्‍यक्तियों का नागरिक न होना
  • 10:- नागरिकता के अधिकारों को बना रहना
  • 11:- संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना
  • 12:- परिभाषा
  • 13:- मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्‍पीकरण करने वाली विधियां
  • 14:- विधि के समक्ष समानता
  • 15:- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
  • 16:- लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता
  • 17:- अस्‍पृश्‍यता का अंत
  • 18:- उपाधियों का अंत
  • 19:- वाक-स्‍वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
  • 20:- अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
  • 21:- प्राण और दैहिक स्‍वतंत्रता का संरक्षण
  • 22:- कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण
  • 23:- मानव और दुर्व्‍यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
  • 24:- कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध
  • 25:- अंत:करण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्‍वतंत्रता
  • 26:- धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्‍वतंत्रता
  • 27:- किसी विशिष्‍ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्‍वतंत्रता
  • 28:- कुल शिक्षा संस्‍थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्‍वतंत्रता
  • 29:- अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों के हितों का संरक्षण
  • 30:- शिक्षा संस्‍थाओं की स्‍थापना और प्रशासन करने का अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों का अधिकार
  • 31:- [निरसन]
  • 31क:- संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्‍यावृत्ति
  • 31ख:- कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्‍यकरण
  • 31ग:- कुछ निदेशक तत्‍वों को प्रभाव करने वाली विधियों की व्‍यावृत्ति
  • 31घ:- [निरसन]
  • 32:- इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
  • 32A:- [निरसन]
  • 33:- इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति
  • 34:- जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्‍धन
  • 35:- इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने का विधान
  • 36:- परिभाषा
  • 37:- इस भाग में अंतर्विष्‍ट तत्‍वों का लागू होना
  • 38:- राज्‍य लोक कल्‍याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्‍यवस्‍था बनाएगा
  • 39:- समान न्‍याय और नि:शुल्‍क विधिक सहायता
  • 40:- ग्राम पंचायतों का संगठन
  • 41:- कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
  • 42:- काम की न्‍यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध
  • 43:- कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
  • 43क:- उद्योगों के प्रबंध में कार्मकारों का भाग लेना
  • 44:- नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
  • 45:- बालकों के लिए नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध
  • 46:- पोषाहार स्‍तर और जीवन स्‍तर को ऊंचा करने तथा लोक स्‍वास्‍थ्‍य को सुधार करने का राज्‍य का कर्तव्‍य
  • 48:- कृषि और पशुपालन का संगठन
  • 48क:- पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन और वन तथा वन्‍य जीवों की रक्षा
  • 49:- राष्‍ट्रीय महत्‍व के संस्‍मारकों, स्‍थानों और वस्‍तुओं का संरक्षण
  • 50:- कार्यपालिका से न्‍यायपालिका का पृथक्‍करण
  • 51:- अंतरराष्‍ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि
  • 51A:- मूल कर्तव्‍य
  • 52:- भारत के राष्‍ट्रपति
  • 53:- संघ की कार्यपालिका शक्ति
  • 54:- राष्‍टप्रति का निर्वाचन
  • 55:- राष्‍ट्रपति के निर्वाचन की रीति
  • 56:- राष्‍ट्रपति की पदावधि
  • 57:- पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
  • 58:- राष्‍ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं
  • 59:- राष्‍टप्रति के पद के लिए शर्तें
  • 60:- राष्‍ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
  • 61:- राष्‍ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रकिया
  • 62:- राष्‍ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्‍यक्ति की पदावधि
  • 63:- भारत का उप राष्‍ट्रपति
  • 64:- उप राष्‍ट्रपति का राज्‍य सभा का पदेन सभापति होना
  • 65:- राष्‍ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उप राष्‍टप्रति का राष्‍ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्‍यों का निर्वहन
  • 66:- उप राष्‍ट्रपति का निर्वाचन
  • 67:- उप राष्‍ट्रपति की पदावधि
  • 68:- उप राष्‍ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्‍यक्ति की पदावधि
  • 69:- उप राष्‍ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
  • 70:- अन्‍य आकस्मिकताओं में राष्‍ट्रपति के कृत्‍यों का निर्वहन
  • 71:- राष्‍ट्रपति या उप राष्‍ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित या संसक्‍त विषयत
  • 72:- क्षमता आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्‍ट्रपति की शक्ति
  • 73:- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्‍तार
  • 74:- राष्‍ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद
  • 75:- मंत्रियों के बारे में अन्‍य उपबंध
  • 76:- भारत का महान्‍यायवादी
  • 77:- भारत सरकार के कार्य का संचालन
  • 78:- राष्‍ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्‍य
  • 79:- संसद का गठन
  • 80:- राज्‍य सभा की संरचना
  • 81:- लोक सभा की संरचना
  • 82:- प्रत्‍येक जनगणना के पश्‍चात पुन: समायोजन
  • 83:- संसद के सदनों की अवधि
  • 84:- संसद की सदस्‍यता के लिए अर्हता
  • 85:- संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन
  • 86:- सदनों के अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्‍टप्रति का अधिकार
  • 87:- राष्‍ट्रपति का विशेष अभिभाषण
  • 88:- सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्‍यायवादी के अधिकार
  • 89:- राज्‍य सभा का सभापति और उप सभापति
  • 90:- उप सभापति का पद रिक्‍त होना, पदत्‍याग और पद से हटाया जाना
  • 91:- सभापति के पद के कर्तव्‍यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्‍य व्‍यक्ति की शक्ति
  • 92:- जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
  • 93:- लोक सभा और अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष
  • 94:- अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष का पद रिक्‍त होना, पद त्‍याग और पद से हटाया जाना
  • 95:- अध्‍यक्ष के पद के कर्तव्‍यों को पालन करने या अध्‍यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्‍यक्ष या अन्‍य व्‍यक्ति की शक्ति
  • 96:- जब अध्‍यक्ष या उपाध्‍यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
  • 97:- सभापति और उप सभापति तथा अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष के वेतन और भत्ते
  • 98:- संसद का सचिवालय
  • 99:- सदस्‍यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
  • 100:- सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति सदस्‍यों की निरर्हताएं
  • 101:- स्‍थानों का रिक्‍त होना
  • 102:- सदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
  • 103:- सदस्‍यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्‍नों पर विनिश्‍चय
  • 104:- अनुच्‍छेद 99 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति
  • 105:- संसद के सदनों की तथा उनके सदस्‍यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि
  • 106:- सदस्‍यों के वेतन और भत्ते
  • 107:- विधेयकों के पुर: स्‍थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपलबंध
  • 108:- कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्‍त बैठक
  • 109:- धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
  • 111:- विधेयकों पर अनुमति
  • 112 :-वार्षिक वित्तीय विवरण
  • 113:-संसद में प्राक्‍कलनों के संबंध में प्रक्रिया
  • 114:- विनियोग विधेयक
  • 115:- अनुपूरक, अतिरिक्‍त या अधिक अनुदान
  • 116:- लेखानुदान, प्रत्‍ययानुदान और अपवादानुदान
  • 117:- वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध
  • 118:- प्रक्रिया के नियम
  • 119:- संसद में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
  • 120:- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
  • 121:- संसद में चर्चा पर निर्बंधन
  • 122:- न्‍यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना
  • 123:- संसद के विश्रांतिकाल में अध्‍यादेश प्रख्‍यापित करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति
  • 124 :-उच्‍चतम न्‍यायालय की स्‍थापना और गठन
  • 125:- न्‍यायाधीशों के वेतन आदि
  • 126 :-कार्यकारी मुख्‍य न्‍यायमूर्ति की नियुक्ति
  • 127:- तदर्थ न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
  • 128:- उच्‍चतम न्‍यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्‍यायाधीशों की उपस्थिति
  • 129:- उच्‍चतम न्‍यायालय का अभिलेख न्‍यायालय होना
  • 130:- उच्‍चतम न्‍यायालय का स्‍थान
  • 131:- उच्‍चतम न्‍यायालय की आरंभिक अधिकारिता
  • 132:- कुछ मामलों में उच्‍च न्‍यायालयों से अपीलों में उच्‍चतम न्‍यायालय की अपीली अधिकारिता
  • 133:- उच्‍च न्‍यायालयों में सिविल विषयों से संबंधित अपीलों में उच्‍चतम न्‍यायालय की अपीली अधिकारिता
  • 134क:- उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र
  • 135:- विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्‍यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा प्रयोक्‍तव्‍य होना
  • 136:- अपील के लिए उच्‍चतम न्‍यायालय की विशेष इजाजत
  • 137:- निर्णयों या आदेशों का उच्‍चतम न्‍यायालयों द्वारा पुनर्विलोकन
  • 138:- उच्‍चतम न्‍यायालय की अधिकारिता की वृद्धि
  • 139:- कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्‍चतम न्‍यायालय को प्रदत्त किया जाना
  • 139क:- कुछ मामलों का अंतरण
  • 140:- उच्‍चतम न्‍यायालय की आनुषंगिक शक्तिया
  • 141:- उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्‍यायालयों पर आबद्धकर होना
  • 142:- उच्‍चतम न्‍यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश
  • 143:- उच्‍चतम न्‍यायालय से परामर्श करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति
  • 144:- सिविल और न्‍यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्‍चतम न्‍यायालय
  • 144क:- [निरसन]
  • 145:- न्‍यायालय के नियम आदि
  • 146:- उच्‍चतम न्‍यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्‍यय
  • 147:- निर्वचन
  • 149:- नियंत्रक महा लेखापरीक्षक के कर्तव्‍य और शक्तियां
  • 150:- संघ के और राज्‍यों के लेखाओं का प्ररूप
  • 151:- संपरीक्षा प्रतिवेदन
  • 152:- परिभाषा
  • 153:- राज्‍यों के राज्‍यपाल
  • 154:- राज्‍य की कार्यपालिका शक्ति
  • 155:- राज्‍यपाल की नियुक्ति
  • 156:- राज्‍य की पदावधि
  • 157:- राज्‍यपाल के पद के लिए शर्तें
  • 158:- राज्‍यपाल के पद के लिए शर्तें
  • 160:- कुछ आकस्मिकताओं में राज्‍यपाल के कृत्‍यों का निर्वहन
  • 161:- क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राज्‍यपाल की शक्ति
  • 162:- राज्‍य की कार्यपालिका शक्ति का विस्‍तार
  • 163:- राज्‍यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि परिषद
  • 164:- मंत्रियों के बारे में अन्‍य उपबंध
  • 165:- राज्‍य का महाधिवक्‍ता
  • 166:- राज्‍य की सरकार के कार्य का संचालन
  • 167:- राज्‍यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में मुख्‍यमंत्री के कर्तव्‍य
  • 168:- राज्‍यों के विधान - मंडलों का गठन
  • 169:- राज्‍यों में विधान परिषदों का उत्‍सादन या सृजन
  • 170:- विधान सभाओं की संरचना
  • 171:- विधान परिषदों की संरचना
  • 172:- राज्‍यों के विधान-मंडलों की अवधि
  • 173:- राज्‍य के विधान-मंडल की सदस्‍यता के लिए अर्हता
  • 174:- राज्‍य के विधान-मंडल के सत्र, सत्रावहसान और विघटन
  • 175:- सदन और सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्‍यपाल का अधिकार
  • 176:- राज्‍यपाल का विशेष अभिभाषण
  • 177:- सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्‍ता के अधिकार
  • 178:- विधान सभा का अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष
  • 179:- अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष का पद रिक्‍त होना, पदत्‍याग और पद से हटाया जाना
  • 180:- अध्‍यक्ष के पद के कर्तव्‍यों का पालन करने या अध्‍यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्‍यक्ष या अन्‍य व्‍यक्ति की शाक्ति
  • 181:- जब अध्‍यक्ष या उपाध्‍यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
  • 182:- विधान परिषद का सभापति और उप सभापति
  • 183:- सभापति और उप सभापति का पद रिक्‍त होना, पदत्‍याग और पद से हटाया जाना
  • 184:- सभापति के पद के कर्तव्‍यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उप सभापति या अन्‍य व्‍यक्ति की शक्ति
  • 185:- जब सभापति या उप सभापति को पद से हटाने का कोई संकल्‍प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न
  • होना
  • 186:- अध्‍यक्ष और उपाध्‍यक्ष तथ सभापति और उप सभापति के वेतन और भत्ते
  • 187:- राज्‍य के विधान मंडल का सचिवालय
  • 188:- सदस्‍यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
  • 189:- सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
  • 190:- स्‍थानों का रिक्‍त होना
  • 191:- सदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
  • 192:- सदस्‍यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्‍नों पर विनिश्‍चय
  • 193:- अनुच्‍छेद 188 के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञा करने से पहले या अर्हित न होते हुए या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति
  • 194:- विधान-मंडलों के सदनों की तथा सदस्‍यों और समितियों की शक्तियां, विशेषधिकार आदि
  • 195:- सदस्‍यों के वेतन और भत्ते
  • 196:- विधेयकों के पुर: स्‍थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध
  • 197:- धन विधेयकों से भिन्‍न विधेयकों के बारे में विधान परिषद की शक्तियों पर निर्बंधन
  • 198:- धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया
  • 199:- "धन विधेयक" की परिभाषा
  • 200:- विधेयकों पर अनुमति
  • 201:- विचार के लिए आरक्षित विधेयक
  • 202:- वार्षिक वित्तीय विवरण
  • 203:- विधान-मंडल में प्राक्‍कलनों के संबंध में प्रक्रिया
  • 204:- विनियोग विधेयक
  • 205:- अनुपूरक, अतिरिक्‍त या अधिक अनुदान
  • 206:- लेखानुदान, प्रत्‍ययानुदान और अपवादानुदान
  • 207:- वित्त विधेयकों के बारे में विशेष उपबंध
  • 208:- प्रक्रिया के नियम
  • 209:- राज्‍य के विधान-मंडल में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन
  • 210 :-विधान मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा
  • 211 :-विधान-मंडल में चर्चा पर निर्बंधन
  • 212:- न्‍यायालयों द्वारा विधन मंडल की कार्यवाहियों की जांच न किया जाना
  • 213:- विधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्‍यादेश प्रख्‍याति करने की राज्‍यपाल की शक्ति
  • 214:- राज्‍यों के लिए उच्‍च न्‍यायालय
  • 215:- उच्‍च न्‍यायालयों का अभिलेख न्‍यायालय होना
  • 216:- उच्‍च न्‍यायालयों का गठन
  • 217:- उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद की शर्तें
  • 218:- उच्‍चतम न्‍यायालय से संबंधित कुछ उपबंधों का उच्‍च न्‍यायालयों का लागू होना
  • 219:- उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
  • 220:- स्‍थायी न्‍यायाधीश रहने के पश्‍चात विधि-व्‍यवसाय पर निर्बंधन
  • 221:- न्‍यायाधीशों के वेतन आदि
  • 222:- किसी न्‍यायाधीश का एक उच्‍च न्‍यायालय से दूसरे उच्‍च न्‍यायालय को अंतरण
  • 223:- कार्यकारी मुख्‍य न्‍यायमूर्ति की नियुक्ति
  • 224:- अपर और कार्यकारी न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
  • 224क:- उच्‍च न्‍यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
  • 225:- विद्यमान उच्‍च न्‍यायालयों की अधिकारिता
  • 226:- कुछ रिट निकालने की उच्‍च न्‍यायालय की शक्ति
  • 226क:- [निरसन]
  • 227:- सभी न्‍यायालयों के अधीक्षण की उच्‍च न्‍यायालय की शक्ति
  • 228:- कुछ मामलों का उच्‍च न्‍यायालय को अंतरण
  • 228क:- [निरसन]
  • 229:- उच्‍च न्‍यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्‍यय
  • 230:- उच्‍च न्‍यायालयों की अधिकारिता का संघ राज्‍य क्षेत्रों पर विस्‍तार
  • 231:- दो या अधिक राज्‍यों के लिए एक ही उच्‍च न्‍यायालय की स्‍थापना
  • 233:- जिला न्‍यायाधीशों की नियुक्ति
  • 233क:- कुछ जिला न्‍यायाधीशों की नियुक्तियों का और उनके द्वारा किए गए निर्णयों आदि का विधिमान्‍यकरण
  • 234:- न्‍यायिक सेवा में जिला न्‍यायाधीशों से भिन्‍न व्‍यक्तियों की भर्ती
  • 235:- अधीनस्‍थ न्‍यायालयों पर नियंत्रण
  • 236:- निर्वचन
  • 237:- कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्‍ट्रेटों पर इस अध्‍याय के उपबंधों का लागू होना
  • 238:- [निरसन]
  • 239:- संघ राज्‍यक्षेत्रों का प्रशासन
  • 239क:- कुछ संघ राज्‍य क्षेत्रों के लिए स्‍थानीय विधान मंडलों या मं‍त्रि-परिषदों का या दोनों का सृजन
  • 239क :-दिल्‍ली के संबंध में विशेष उपबंध
  • 239कक:- सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध
  • 239कख:- विधान मंडल के विश्रांतिकाल में अध्‍यादेश प्रख्‍यापित करने की प्रशासक की शक्ति
  • 240:- कुछ संघ राज्‍य क्षेत्रों के लिए विनियम बनाने की राष्‍ट्रपति की शक्ति
  • 241:- संघ राज्‍य क्षेत्रों के लिए उच्‍च न्‍यायालय
  • 242:- [निरसन]
  • 243:- परिभाषाएं
  • 243क:- ग्राम सभा
  • 243ख:- पंचायतों का गठन
  • 243ग:- पंचायतों की संरचना
  • 243घ:- स्‍थानों का आरक्षण
  • 243ड:- पंचायतों की अवधि, आदि
  • 243च:- सदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
  • 243छ :-पंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्‍व
  • 243ज :-पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां
  • 243-झ :-वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
  • 243ञ:- पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
  • 243ट:- पंचायतों के लिए निर्वाचन
  • 243ठ:- संघ राज्‍य क्षेत्रों को लागू होना
  • 243ड:- इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू नह होना
  • 243ढ:- विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
  • 243-ण:- निर्वाचन संबंधी मामलों में न्‍यायालयों के हस्‍तक्षेप का वर्जन
  • 243त:- परिभाषाएं
  • 243थ:- नगरपालिकाओं का गठन
  • 243द:- नगरपालिकाओं की संरचना
  • 243ध:- वार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना
  • 243न:- स्‍थानों का आरक्षण
  • 243प :-नगरपालिकाओं की अवधि, आदि
  • 243फ:- सदस्‍यता के लिए निरर्हताएं
  • 243ब:- नगरपालिकाओं, आदि की शक्तियां, प्राधिकार और उत्तरदायित्‍व
  • 243भ:- नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियां
  • 243म:- वित्त आयोग
  • 243य:- नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
  • 243यक:- नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
  • 243यख:- संघ राज्‍यक्षेत्रों को लागू होना
  • 243यग:- इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
  • 243यघ:- जिला योजना के लिए समिति
  • 243यच:- विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना
  • 243यछ:- निर्वाचन संबंधी मामलों में न्‍यायालयों के हस्‍तक्षेप का वर्जन
  • 244:- अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन.
  • 244क:- असम के कुछ जनजाति क्षेत्रों को समाविष्‍ट करने वाला एक स्‍वशासी राज्‍य बनाना और उसके लिए स्‍थानीय विधान मंडल या मंत्रि परिषद का या दोनों का सृजन.
  • 245 :-संसद द्वारा राज्‍यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्‍तार.
  • 246:- संसद द्वारा और राज्‍य के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषयवस्‍तु.
  • 247:- कुछ अतिरिक्‍त न्‍यायालयों की स्‍थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति.
  • 248:- अवशिष्‍ट विधायी शक्तियां.
  • 249:- राज्‍य सूची में के विषय के संबंध में राष्‍ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति.
  • 250:- यदि आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्‍य सूची में के विषय के संबंध में विधि.
  • 251:- संसद द्वारा अनुच्‍छेद 249 और अनुच्‍छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्‍यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.
  • 252:- दो या अधिक राज्‍यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्‍य राज्‍य द्वारा अंगीकार किया जाना.
  • 253:- अंतरराष्‍ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान.
  • 254:- संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्‍यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति.
  • 255:- सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना.
  • 256:- राज्‍यों की ओर संघ की बाध्‍यता.
  • 257 :-कुछ दशाओं में राज्‍यों पर संघ का नियंत्रण.
  • 257क:- [निरसन]
  • 258:- कुछ दशाओं में राज्‍यों को शक्ति प्रदान करने आदि की संघ की शक्ति.
  • 258क:- संघ को कृत्‍य सौंपने की राज्‍यों की शक्ति.
  • 259:- [निरसन]
  • 260:- भारत के बाहर के राज्‍य क्षेत्रों के संबंध में संघ की अधिकारिता.
  • 261:- सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्‍यायिक कार्यवाहियां.
  • 262:- अंतरराज्यिक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी विवादों का न्‍यायनिर्णयन.
  • राज्‍यों के बीच समन्‍वय अनुच्‍छेद विवरण
  • 263:- अंतरराज्‍य परिषद के संबंध में उपबंध.
  • 264:- विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना.
  • 265:- विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना.
  • 266:- भारत और राज्‍यों के संचित निधियां और लोक लेखे.
  • 267:- आकस्मिकता निधि.
  • 268:- संघ द्वारा उदगृहीत किए जाने वाले किन्‍तु राज्‍यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्‍क.
  • 269:- संघ द्वारा उदगृहीत और संगृहीत किन्‍तु राज्‍यों को सौंपे जाने वाले कर.
  • 270:- उदगृहीत कर और उनका संघ तथा राज्‍यों के बीच वितरण.
  • 271:- कुछ शुल्‍कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार.
  • 272:- [निरसन]
  • 273:- जूट पर और जूट उत्‍पादों का निर्यात शुल्‍क के स्‍थान पर अनुदान.
  • 274:- ऐसे कराधान पर जिसमें राज्‍य हितबद्ध है, प्रभाव डालने वाले विधेयकों के लिए राष्‍ट्रपति की पूर्व सिफारिश की अपेक्षा.
  • 275:- कुछ राज्‍यों को संघ अनुदान.
  • 276:- वृत्तियों, व्‍यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर.
  • 277:- व्‍यावृत्ति.
  • 278:- [निरसन]
  • 279:- "शुद्ध आगम", आदि की गणना.
  • 280:- वित्त आयोग.
  • 281:- वित्त आयोग की सिफारिशें.
  • 282:- संघ या राज्‍य द्वारा अपने राजस्‍व के लिए जाने वाले व्‍यय.
  • 283:- संचित निधियों, आकस्मिकता निधियों और लोक लेखाओं में जमा धनराशियों की अभिरक्षा आदि.
  • 284:- लोक सेवकों और न्‍यायालयों द्वारा प्राप्‍त वादकर्ताओं की जमा राशियों और अन्‍य धनराशियों की अभिरक्षा.
  • 285:- संघ और संपत्ति को राजय के कराधान से छूट.
  • 286:- माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधिरोपण के बारे में निर्बंधन.
  • 288:- जल या विद्युत के संबंध में राज्‍यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट.
  • 289:- राज्‍यों की संपत्ति और आय को संघ और कराधार से छूट.
  • 290:- कुछ व्‍ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन.
  • 290क:- कुछ देवस्‍वम निधियों की वार्षिक संदाय.
  • 291:- [निरसन]
  • 292:- भारत सरकार द्वारा उधार लेना.
  • 293:- राज्‍यों द्वारा उधार लेना.
  • 294:- कुछ दशाओं में संपत्ति, अ‍ास्तियों, अधिकारों, दायित्‍वों और बाध्‍यताओं का उत्तराधिकार.
  • 295:- अन्‍य दशाओं में संपत्ति, अ‍ास्तियों, अधिकारों, दायित्‍वों और बाध्‍यताओं का उत्तराधिकार.
  • 296:- राजगामी या व्‍यपगत या स्‍वामीवि‍हीन होने से प्रोदभूत संपत्ति.
  • 297:- राज्‍य क्षेत्रीय सागर खण्‍ड या महाद्वीपीय मग्‍नतट भूमि में स्थित मूल्‍यवान चीजों और अनन्‍य आर्थिक क्षेत्र संपत्ति स्रोतों का संघ में निहित होना.
  • 298:- व्‍यापार करने आदि की शक्ति.
  • 299:- संविदाएं.
  • 300:- वाद और कार्यवाहियां.
  • 300क:- विधि के प्राधिकार के बिना व्‍यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना.
  • 301:- व्‍यापार, वाणज्यि और समागम की स्‍वतंत्रता.
  • 302:- व्‍यापार, वाणज्यि और समागम पर निर्बंधन अधिरोपित करने की संसद की शक्ति.
  • 303:- व्‍यापार और वाणिज्‍य के संबंध में संघ और राज्‍यों की विधायी शक्तियों पर निर्बंधन.
  • 304:- राज्‍यों के बीच व्‍यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन.
  • 305:- विद्यमान विधियों और राज्‍य के एकाधिकार का उपबंध करने वाली विधियों की व्‍यावृत्ति.
  • 306:- [निरसन]
  • 307:- अनुच्‍छेद 301 से अनुच्‍छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति.
  • 308:- निर्वचन.
  • 309:- संघ या राज्‍य की सेवा करने वाले व्‍यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तें.
  • 311:- संघ या राज्‍य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्‍यक्तियों का पदच्‍युत किया जाना या पंक्ति में अवनत किया जाना.
  • 312:- अखिल भारतीय सेवाएं.
  • 313:- संक्रमण कालीन उपबंध.
  • 314:- [निरसन]
  • 315:- संघ और राज्‍यों के लिए लोक सेवा आयोग.
  • 316:- सदस्‍यों की नियुक्ति और पदावधि.
  • 318:- आयोग के सदस्‍यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति.
  • 319:- आयोग के सदस्‍यों द्वारा ऐसे सदस्‍य न रहने पर पद धारण करने के सबंध में प्रतिषेध.
  • 320:- लोक सेवा आयोगों के कृत्‍य.
  • 321:- लोक सेवा आयोगों के कृत्‍यों का विस्‍तार करने की शक्ति.
  • 322:- लोक सेवा आयोगों के व्‍यय.
  • 323:- लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन.
  • 323क:- प्रशासनिक अधिकरण.
  • 323ख:- अन्‍य विषयों के लिए अधिकरण.
  • 324:- निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना.
  • 325:- धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्‍यक्ति का निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना और उसके द्वारा किसी विशेष निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए जाने का दावा न किया जाना.
  • 326:- लोक सभा और राज्‍यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का वयस्‍क मताधिकार के आधार पर होना.
  • 327:- विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति.
  • 328:- किसी राज्‍य के विधान मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की उस विधान मंडल की शक्ति.
  • 329:- निर्वाचन संबंधी मामलों में न्‍यायालयों के हस्‍तक्षेप का वर्जन.
  • 329क:- [निरसन]
  • 330:- लोक सभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्‍थानों का आरक्षण.
  • 331:- लोक सभा में आंग्‍ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्‍व.
  • 332:- राज्‍यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्‍थानों का आरक्षण.
  • 333:- राज्‍यों की विधान सभाओं में आंग्‍ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्‍व.
  • 334:- स्‍थानों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्‍व का साठ वर्ष के पश्‍चात न रहना.
  • 335:- सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे.
  • 336:- कुछ सेवाओं में आंग्‍ल भारतीय समुदाय के लिए विशेष उपबंध.
  • 337:- आंग्‍ल भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शैक्षिक अनुदान के लिए विशेष उपबंध.
  • 338:- राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग.
  • 338क:- राष्‍ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग.
  • 339:- अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्‍याण के बारे में संघ का नियंत्रण.
  • 340:- पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्‍वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति.
  • 341:- अनुसूचित जातियां.
  • 342:- अनुसूचित जनजातियां.
  • 343:- संघ की राजभाषा.
  • 344:- राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति
  • 345:- राज्‍य की राजभाषा या राजभाषाएं.
  • 346:- एक राज्‍य और दूसरे राज्‍य के बीच या किसी राज्‍य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा.
  • 347:- एक राज्‍य और दूसरे राज्‍य के बीच या किसी राज्‍य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा.
  • 348:- उच्‍चतम न्‍यायालय और उच्‍च न्‍यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा.
  • 349:- भाषा से संबंधित कुछ विधियां अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया.
  • 350:- व्‍यथा के निवारण के लिए अभ्‍यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा.
  • 350क:- प्राथमिक स्‍तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं.
  • 350ख:- भाषाई अल्‍पसंख्‍यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी.
  • 351:- हिन्‍दी भाषा के विकास के लिए निदेश.
  • 352:- आपात की उदघोषणा.
  • 353:- आपात की उदघोषणा का प्रभाव.
  • 354:- जब आपात की उदघोषणा प्रवर्तन में है तब राजस्‍वों के वितरण संबंधी उपबंधों का लागू होना.
  • 355:- बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्‍य की संरक्षा करने का संघ का कर्तव्‍य
  • 356:- राज्‍यों सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध.
  • 357:- अनुच्‍छेद 356 के अधीन की गई उदघोषणा के अधीन विधायी शाक्तियों का प्रयोग.
  • 358:- आपात के दौरान अनुच्‍छेद 19 के उपबंधों का निलंबन.
  • 359:- आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलबंन.
  • 359क:- [निरसन]
  • 360:- वित्तीय आपात के बारे में उपबंध.
  • 361:- राष्‍ट्रपति और राज्‍यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण.
  • 361क:- संसद और राज्‍यों के विधान मंडलों की कार्यवाहियों की प्रकाशन का संरक्षण.
  • 361ख:- लाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए निरर्हता.
  • 363क:- देशी राज्‍यों के शासकों को दी गई मान्‍यता की समाप्ति और निजी थौलियों का अंत.
  • 364:- महापत्तनों और विमानक्षेत्रों के बारे में विशेष उपबंध.
  • 365:- संघ द्वारा दिए गए निदेशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव.
  • 366:- परिभाषाएं.
  • 367:- निर्वचन.
  • 368:- संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया.
  • 369:- राज्‍य सूची के कुछ विषयों के सबंध में विधि बनाने की संसद की इस प्रकार अस्‍थायी शक्ति मानो वे समवर्ती सूची के विषय हों.
  • 370:- जम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य के संबंध में अस्‍थायी उपबंध.
  • 371:- महाराष्‍ट्र और गुजरात राज्‍यों के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 371क:- नागालैंड राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 371ख:- असम राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 371ग:- मणिपुर राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 371घ:- आंध्र प्रदेश राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 371ड:- आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना.
  • 371च:- सिक्किम राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 371छ:- मिजोरम राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 371-झ:- गोवा राज्‍य के संबंध में विशेष उपबंध.
  • 372:- विद्यमान विधियों का प्रवृत्त बने रहना और उनका अनुकूलन.
  • 372क:- विधियों का अनुकूलन करने की राष्‍ट्रपति की शक्ति.
  • 373:- निवारक निरोध में रखे गए व्‍यक्तियों के संबंध में कुछ दशाओं में आदेश करने की राष्‍ट्रपति की शाक्ति.
  • 374:- फेडरल न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों और फेडरल न्‍यायालय में या सपरिषद हिज मेजेस्‍टी के समक्ष लंबित कार्यवाहियों के बारे में उपबंध.
  • 375:- संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्‍यायालयों, प्राधिकारियों और अधिकारियों का कृत्‍य करते रहना.
  • 376:- उच्‍च न्‍यायालयों के न्‍यायाधीशों के बारे में उपबंध.
  • 377:- भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध.
  • 378:- लोक सेवा आयोगों के बारे में उपबंध.
  • 378क:- आंध्र प्रदेश विधान सभा की अवधि के बारे में विशेष उपबंध.
  • 379-391:- [निरसन]
  • 392 :-कठिनाइयों को दूर करने की राष्‍ष्‍ट्रपति की शक्ति.
  • 393:- संक्षिप्‍त नाम.
  • 394:- प्रारंभ.
  • 394क :-हिन्‍दी भाषा में प्राधिकृत पाठ
  • 395 :- निरसन.

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      भाग 1  संघ और उसके क्षेत्र- अनुच्छेद 1-4 भाग 2  नागरिकता- अनुच्छेद 5-11 भाग 3  मूलभूत अधिकार- अनुच्छेद 12 - 35 भाग 4  राज्य के नीति निदेशक तत्व- अनुच्छेद 36 - 51 भाग 4 A  मूल कर्तव्य- अनुच्छेद 51A भाग 5  संघ- अनुच्छेद 52-151 भाग 6  राज्य- अनुच्छेद 152 -237 भाग 7  संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम,- 1956 द्वारा निरसित भाग 8  संघ राज्य क्षेत्र- अनुच्छेद 239-242 भाग 9  पंचायत - अनुच्छेद 243- 243O भाग 9A  नगर्पालिकाएं- अनुच्छेद 243P - 243ZG भाग 10  अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र- अनुच्छेद 244 - 244A भाग 11  संघ और राज्यों के बीच संबंध- अनुच्छेद 245 - 263 भाग 12  वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद -अनुच्छेद 264 -300A भाग 13  भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम- अनुच्छेद 301 - 307 भाग 14  संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं- अनुच्छेद 308 -323 भाग 14A  अधिकरण- अनुच्छेद 323A - 323B भाग 15 निर्वाचन- अनुच्छेद 324 -329A भाग 16  कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध संबंध- अनुच्छेद 330- 342 भाग 17  राजभाषा- अनुच्छेद 343- 351 भाग 18  आपात उपबंध अनुच्छेद- 352 - 360 भाग 19  प्रकीर्ण- अनुच्छेद 361 -367

    संविधान की प्रस्तावना प्रस्तावना संविधान के लिए एक परिचय के रूप में कार्य |Preamble to the Constitution Preamble Acts as an introduction to the Constitution

      प्रस्तावना उद्देशिका संविधान के आदर्शोँ और उद्देश्योँ व आकांक्षाओं का संछिप्त रुप है। अमेरिका का संविधान प्रथम संविधान है, जिसमेँ उद्देशिका सम्मिलित है। भारत के संविधान की उद्देशिका जवाहरलाल नेहरु द्वारा संविधान सभा मेँ प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है। उद्देश्यिका 42 वेँ संविधान संसोधन (1976) द्वारा संशोधित की गयी। इस संशोधन द्वारा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता शब्द सम्मिलित किए गए। प्रमुख संविधान विशेषज्ञ एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को  संविधान का परिचय पत्र  कहा है। हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिक को : सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक नयाय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब मेँ व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा मेँ आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत २००६ विक्रमी) को एतद् द्वारा

    भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत कौन कौन से है |Which are the foreign sources of Indian constitution

      भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव भारतीय शासन अधिनियम 1935 का है। भारत के संविधान का निर्माण 10 देशो के संविधान से प्रमुख तथ्य लेकर बनाया गया है। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है।भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गई है: संयुक्त राज्य अमेरिका:  मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात, न्यायपालिका की स्वतंत्रता ब्रिटेन:  संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि निर्माण प्रक्रिया, विधि का शासन, मंत्रिमंडल प्रणाली, परमाधिकार लेख, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनवाद आयरलैंड:  नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन ऑस्ट्रेलिया:  प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूच

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      जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल  हीगल (Hegel) जर्मन आदर्शवादियों में होगल का नाम शीर्षस्य है। इनका पूरा नाम जार्ज विल्हेम फ्रेडरिक हीगल था। 1770 ई. में दक्षिण जर्मनी में बर्टमवर्ग में उसका जन्म हुआ और उसकी युवावस्था फ्रांसीसी क्रान्ति के तुफानी दौरे से बीती हींगल ने विवेक और ज्ञान को बहुत महत्त्व प्रदान किया। उसके दर्शन का महत्त्व दो ही बातों पर निर्भर करता है- (क) द्वन्द्वात्मक पद्धति, (ख) राज्य का आदर्शीकरण। हीगल की रचनाएँ लीगल की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं 1. फिनोमिनोलॉजी ऑफ स्पिरिट (1807)  2. साइन्स ऑफ लॉजिक (1816) 3. फिलॉसफी ऑफ लॉ या फिलॉसफी ऑफ राइट (1821) 4. कॉन्सटीट्शन ऑफ जर्मनी  5. फिलॉसफी ऑफ हिस्ट्री (1886) मृत्यु के बाद प्रकाशित विश्वात्मा पर विचार  हीगल के अनुसार इतिहास विश्वात्मा की अभिव्यक्ति की कहानी है या इतिहास में घटित होने वाली सभी घटनाओं का सम्बन्ध विश्वात्मा के निरन्तर विकास के विभिन्न चरणों से है। विशुद्ध अद्वैतवादी विचारक हीगल सभी जड़ एवं चेतन वस्तुओं का उद्भव विश्वात्मा के रूप में देखता है वेदान्तियों के रूप में देखता है वेदान्तियों के 'तत्वमसि', 'अ

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    भारतीय संविधान के भाग |Part of Indian Constitution

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    भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making

      भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making संविधान निर्माण की सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 में "स्वराज विधेयक" द्वारा की गई। 1916 में होमरूल लीग आन्दोलन चलाया गया।जिसमें घरेलू शासन सचांलन की मांग अग्रेजो से की गई। 1922 में गांधी जी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग प्रबलतम तरीके से की और कहा- कि जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी भारतीय संविधान का निर्माण -भारतीय लोगों की इच्छाओं के अनुकुल किया जाएगा। अगस्त 1928 में नेहरू रिपोर्ट बनाई गई। जिसकी अध्यक्षता पं. मोतीलाल नेहरू ने की। इसका निर्माण बम्बई में किया गया। इसके अन्तर्गत ब्रिटीश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया। जिसमें मौलिक अधिकारों अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा अखिल भारतीय संघ एवम् डोमिनियम स्टेट के प्रावधान रखे गए। इसका सबसे प्रबलतम विरोध मुस्लिम लीग और रियासतों के राजाओं द्वारा किया गया। 1929 में जवाहर लाला नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर सम्मेलन हुआ। जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई। 1936 में कांग्रेस का फैजलपुर सम्मेलन आयोजित किया गय

    PREAMBLE of India

     PREAMBLE WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political, LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship, EQUALITY of status and of opportunity: and to promote among them all  FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation,  IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.

    राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व |Directive Principles of State Policy

      36. परिभाषा- इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' का वही अर्थ है जो भाग 3 में है। 37. इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना- इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। 38. राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा- राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूंप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा। राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा। 39. राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व- राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनि

    राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर/very important question and answer of polity

     राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्‍न – किस संविधान संशोधन अधिनियम ने राज्‍य के नीति निर्देशक तत्‍वों को मौलिक अधिकारों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली बनाया?  उत्‍तर – 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) ने प्रश्‍न – भारत के कौन से राष्‍ट्रपति ‘द्वितीय पसंद'(Second Preference) के मतों की गणना के फलस्‍वरूप अपना निश्चित कोटा प्राप्‍त कर निर्वाचित हुए?  उत्‍तर – वी. वी. गिरि प्रश्‍न – संविधान के किस अनुच्‍छेद के अंतर्गत वित्‍तीय आपातकाल की व्‍यवस्‍था है?  उत्‍तर – अनुच्‍छेद 360 प्रश्‍न – भारतीय संविधान कौन सी नागरिकता प्रदान करता है?  उत्‍तर – एकल नागरिकता प्रश्‍न – प्रथम पंचायती राज व्‍यवस्‍था का उद्घाटन पं. जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्‍टूबर, 1959 को किस स्‍थान पर किया था ? उत्‍तर – नागौर (राजस्‍थान) प्रश्‍न – लोकसभा का कोरम कुल सदस्‍य संख्‍या का कितना होता है?  उत्‍तर – 1/10 प्रश्‍न – पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन तथा पुनर्निरीक्षण किसके द्वारा किया जाताहै? उत्‍तर – राष्‍ट्रीय विकास परिषद प्रश्‍न – राज्‍य स्‍तर पर मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है?  उत्‍तर – राज्‍यपाल प्रश्‍न – नए

    केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद | Center-State Relations and Inter-State Council

      केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद केन्द्र-राज्य सम्बन्ध- सांविधानिक प्रावधान अनुच्छेद 246:- संसद को सातवीं अनुसूची की सूची 1 में प्रगणित विषयों पर विधि बनाने की शक्ति। अनुच्छेद 248:- अवशिष्ट शक्तियां संसद के पास अनुच्छेद 249:-राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की शक्ति संसद के पास अनुच्छेद 250:- यदि आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में विधि बनाने की संसद की शक्ति अनुच्छेद 252:- दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति अनुच्छेद 257:- संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को निदेश दे सकती है अनुच्छेद 257 क:- संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अभिनियोजन द्वारा राज्यों की सहायता अनुच्छेद 263:- अन्तर्राज्य परिषद का प्रावधान भारत के संविधान ने केन्द्र-राज्य सम्बन्ध के बीच शक्तियों के वितरण की निश्चित और सुस्पष्ट योजना अपनायी है। संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के सम्बन्धों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: 1. केन्द्र तथा राज्यों के बीच विधायी सम्बन्ध। 2. केन्द्र तथा राज्यों के बीच प्रशासन