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भारतीय नागरिकता | Indian citizenship

 

नागरिकता की व्यवस्था
भारतीय संविधान के 5 से 11 तक के अनुच्छेदों में नागरिकता सम्बन्धी व्यवस्था की गयी है। संविधान अग्रांकित श्रेणी के व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करता है:
(1) जन्मजात नागरिक:-संविधान लागू होने के समय (26 जनवरी, 1950 ई.) निम्न तीन श्रेणियों के व्यक्ति भारत के जन्मजात नागरिक माने गये:
प्रथम श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो भारत भूमि में पैदा हुए हों,
दूसरी श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जिनके माता-पिता या इन दोनों में से कोई एक भारत की भूमि में पैदा हुए हों, तथा
तृतीय श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो भारतीय संविधान के घोषित होने के पूर्व कम-से-कम 5 वर्ष से भारत भूमि पर निवास कर रहे हों।
(2) शरणार्थी नागरिक:-संविधान में उन व्यक्तियों की नागरिकता का भी विवेचन किया गया है जो पाकिस्तान से भारत आये हैं। संविधान के अनुसार वे व्यक्ति जो 19 जुलाई, 1948 के पूर्व पाकिस्तान से भारत आये हैं, भारत के नागरिक समझे जायेंगे। जो व्यक्ति 19 जुलाई, 1948 के बाद पाकिस्तान से भारत आये और जिन्होंने भारत में कम-से-कम 6 मास रहने के बाद उचित अधिकारी के समक्ष नागरिक बनने के लिए प्रार्थना-पत्र देकर संविधान लागू होने के पूर्व अपना नाम रजिस्टर्ड करा लिया, उन्हें भी नागरिकता का अधिकार प्रदान कर दिया गया।
1 मार्च, 1947 के बाद जो व्यक्ति भारत से पाकिस्तान चले गये हैं, सामान्यतया उन्हें भारतीय नागरिकता से वंचित कर दिया गया है, लेकिन इनमें से भी उन लोगों को, जो भारत में स्थायी निवास का परमिट लेकर पाकिस्तान से भारत में चले आये हैं, 6 महीने भारत में रहने के बाद प्रार्थना-पत्र देकर रजिस्टेशन करवा लेने पर भारत की नागरिकता मिल सकती है।
(3) विदेशों में रहने वाले भारतीय:-विदेशों में जो भारतीय रहते हैं, यदि वे निम्न दो शर्तें पूरी करते हों तो भारतीय नागरिक बन सकते हैं: ;उनका या उनके माता-पिता या उनके दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो, उन्होंने विदेश में स्थित भारतीय राजदूत के पास भारत का नागरिक बनने के लिए आवेदन-पत्र देकर अपना नाम रजिस्टर में लिखा लिया हो।
संविधान लागू होने के बाद नागरिकता की व्यवस्था

भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955

हमारे संविधान ने संसद को यह अधिकार दिया है कि वह भारतीय नागरिकता से सम्बन्धित सभी विषयों के सम्बन्ध में व्यवस्था करे। अतः संसद ने 1955 ई0 में ’भारतीय नागरिकता अधिनियम’ पारित किया। इस अधिनियम में स्पष्ट किया गया है कि भारतीय नागरिकता की प्राप्ति किस प्रकार होगी तथा किन परिस्थितियों में भारतीय नागरिकता का अन्त हो जाएगा।

नागरिकता की प्राप्ति:-उपर्युक्त अधिनियम के अनुसार निम्न में से किसी एक आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है:

(1) जन्म से-प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म संविधान लागू होने अर्थात् 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् भारत में हुआ हो वह जन्म से भारत का नागरिक होगा। (कुछ अपवादों जैसे राजनयिकों तथा शत्रु विदेशियों के बच्चे भारत के नागरिक नहीं माने जायेंगे)।
(2) रक्त सम्बन्ध या वंशाधिकार से-26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् भारत के बाहर जन्मा कोई भी व्यक्ति, कतिपय अपेक्षाओं के अधीन रहते हुए भारत का नागरिक होगा, यदि उसके जन्म के समय उसकी माता या पिता भारत का नागरिक था।
(3) पंजीकरण द्वारा-निम्न श्रेणी के व्यक्ति पंजीकरण के आधार पर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं: ऐसे व्यक्ति जो 26 जुलाई, 1947 के बाद पाकिस्तान से आए हैं, उस दशा में भारतीय नागरिक माने जायेंगे जब वे आवेदन-पत्र देकर अपना नाम ’भारतीय नियुक्ति अधिकारी’ के पास नागरिकता के रजिस्टर में दर्ज करा लें। परन्तु ऐसे लोगों के लिए शर्त यह होगी कि आवेदन-पत्र देने से पूर्व कम-से-कम 6 माह से भारत में रहते हों तथा उनका या उनके माता-पिता अथवा दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो।

  1. ऐसे भारतीय जो विदेशों में जाकर बस गए हैं, भारतीय दूतावासों में आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे।
  2. विदेशी स्त्रियां, जिन्होंने भारतीय नागरिकों से विवाह कर लिया हो, आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगी।
  3. भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।
  4. राष्ट्रमण्डलीय देशों के नागरिक, यदि वे भारत में ही रहते हों या भारत सरकार की नौकरी कर रहे हों। आवेदन पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।

(4) देशीकरण द्वारा-विदेशी नागरिक भी निम्न शर्तों को पूरा करने पर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं:

  1. वह किसी ऐसे देश का नागरिक न हो जहां भारतीय देशीयकरण द्वारा नागरिक बनने से रोक दिए जाते हों।
  2. वह अपने देश की नागरिकता का परित्याग कर चुका हो और केन्द्रीय सरकार को इस बात की सूचना दे दी हो।
  3. वह आवेदन देने के पूर्व कम-से-कम एक वर्ष से लगातार भारत में रह रहा हो
  4. वह उपरोक्त एक वर्ष से पहले कम-से-कम 5 वर्षों तक भारत में रह चुका हो या भारत सरकार की नौकरी में रह चुका हो अथवा दोनों मिलाकर 7 वर्ष हो पर किसी हालत में 4 वर्ष से कम समय न हो।
  5. उसका आचरण अच्छा हो।
  6. वह भारत की किसी प्रादेशिक भाषा या राजभाषा का अच्छा जानकार हो।

संविधान में ऐसे व्यक्ति को विशेष छूट दी गई है जो दर्शन, विज्ञान, कला, साहित्य विश्वशान्ति या मानव विकास के क्षेत्र में विशेष कार्य कर चुका हो। उपरोक्त श्रेणी के व्यक्तियों को संविधान में निर्दिष्ट शर्तों को पूरा किए बिना भी नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
(5) भूमि विस्तार द्वारा-यदि किसी नवीन क्षेत्र को भारत में शामिल किया जाए तो वहां की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाएगी। जैसे 1961 ई0 में गोवा को भारत में शामिल किए जाने पर वहां की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो गई।

नागरिकता का अन्त

भारत नागरिकता का अन्त निम्न प्रकार से हो सकता है:
(1) नागरिकता परित्याग करने से:-यदि कोई वयस्क व्यक्ति भारतीय नागरिकता के परित्याग की घोषणा करता है तो वह घोषणा विशेष अधिकारी द्वारा पंजीकृत कर ली जायेगी और वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं रहेगा। इसके साथ ही उस व्यक्ति के नाबालिग बच्चों की भारतीय नागरिकता भी समाप्त हो जायेगी।
(2) स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार कर लेने से :- यदि भारत का कोई नागरिक पंजीकरण देशीयकरण या अन्य किसी प्रकार से किसी दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, तो ऐसी स्थिति में वह भारत का नागरिक नहीं रहेगा।
(3) संघ सरकार द्वारा नागरिकता का अपहरण:- भारत की संघ सरकार निम्नलिखित कारणों के आधार पर नागरिकता का अपहरण कर सकती है:

  1. असत्य अभिलेख:-यदि किसी व्यक्ति ने धोखा देकर या गलत बयान देकर या आवश्यक बातों को छिपाकर नागरिकता प्राप्त कर ली है तो सही जानकारी प्राप्त होने पर उसकी नागरिकता समाप्त की जा सकती है।
  2. देशद्रोह से:-यदि किसी व्यक्ति ने भारत के प्रति देशद्रोह किया है, या युद्ध के समय शत्रु की सहायता की है।
  3. दीर्घ प्रवास से:-यदि कोई व्यक्ति भारत सरकार की अनुमति के बिना लगातार सात वर्ष तक विदेश में रहे और विदेश के भारतीय दूतावास में अपनी भारतीय नागरिकता बनाये रखने की इच्छा से प्रतिवर्ष पंजीकरण भी न कराये तो उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त की जा सकती है।
  4. अपराध से:- यदि किसी व्यक्ति ने पंजीकरण या देशीयकरण से नागरिकता प्राप्त की है और नागरिकता प्राप्त करने के पांच वर्ष के भीतर किसी देश में उसे कम-से-कम दो वर्ष की सजा हुई है, तो उसकी नागरिकता समाप्त की जा सकती है।

संघ सरकार किसी व्यक्ति की नागरिकता का अन्त करे, इसके पहले उसे अपनी सफाई देने का पूरा अवसर दिया जायेगा।
राष्ट्रमण्डलीय नागरिकता:-नागरिकता अधिनियम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि राष्ट्रमण्डल के सदस्य देशों के नागरिकों को भारत की राष्ट्रमण्डलीय नागरिकता प्राप्त होगी। केन्द्रीय सरकार पारस्परिक के आधार पर राष्ट्रमण्डलीय देशों के नागरिकों को भारतीय नागरिकता के कुछ अधिकार प्रदान कर सकती है।

नागरिकों को प्राप्त विशेषाधिकार
(नागरिकता का महत्व)

निम्नलिखित मूल अधिकार और अधिकार संविधान में केवल नागरिकों को ही प्रदान किए गए हैं:
(1) राज्य नागरिकों के बीच केवल मूल वंश जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा-अनुच्छेद 15
(2) राज्य द्वारा प्रदत्त नौकरियों के विषय में अवसर की समानता का अधिकार-अनुच्छेद 16
(3) अनुच्छेद 19 में उल्लिखित मूल स्वतन्त्रताएं, जैसे भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, सभा, संघ, आवास, सम्पत्ति तथा पेशे की स्वतन्त्रता।
(4) अनुच्छेद 29 एवं 30 द्वारा प्रदत्त सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार।
(5) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीश, राज्यपाल, महान्यायवादी, महाधिवक्ता, आदि पद केवल नागरिकों द्वारा ही प्राप्त किए जा सकते हैं।
(6) केन्द्रीय विधानमण्डल और राज्य विधानमण्डलों के प्रतिनिधियों के चुनने का मताधिकार और इन संस्थाओं के सदस्य बनने के अधिकार केवल नागरिकों को ही प्रदान किए गए हैं।
(7) भारत में इन अधिकारों के साथ नागरिकों के कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं।

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हीगल की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Hegel)/हीगल की रचनाएँ/विश्वात्मा पर विचार /विश्वात्मा पर विचार / जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल

  जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल  हीगल (Hegel) जर्मन आदर्शवादियों में होगल का नाम शीर्षस्य है। इनका पूरा नाम जार्ज विल्हेम फ्रेडरिक हीगल था। 1770 ई. में दक्षिण जर्मनी में बर्टमवर्ग में उसका जन्म हुआ और उसकी युवावस्था फ्रांसीसी क्रान्ति के तुफानी दौरे से बीती हींगल ने विवेक और ज्ञान को बहुत महत्त्व प्रदान किया। उसके दर्शन का महत्त्व दो ही बातों पर निर्भर करता है- (क) द्वन्द्वात्मक पद्धति, (ख) राज्य का आदर्शीकरण। हीगल की रचनाएँ लीगल की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं 1. फिनोमिनोलॉजी ऑफ स्पिरिट (1807)  2. साइन्स ऑफ लॉजिक (1816) 3. फिलॉसफी ऑफ लॉ या फिलॉसफी ऑफ राइट (1821) 4. कॉन्सटीट्शन ऑफ जर्मनी  5. फिलॉसफी ऑफ हिस्ट्री (1886) मृत्यु के बाद प्रकाशित विश्वात्मा पर विचार  हीगल के अनुसार इतिहास विश्वात्मा की अभिव्यक्ति की कहानी है या इतिहास में घटित होने वाली सभी घटनाओं का सम्बन्ध विश्वात्मा के निरन्तर विकास के विभिन्न चरणों से है। विशुद्ध अद्वैतवादी विचारक हीगल सभी जड़ एवं चेतन वस्तुओं का उद्भव विश्वात्मा के रूप में देखता है वेदान्तियों के रूप में देखता है वेदान्तियों के '...

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Dr. Bhimrao Ambedkar

   डॉ. भीमराव अम्बेडकर  की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of  Dr. Bhimrao Ambedkar डॉ. भीमराव अम्बेडकर डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने 1907 ई. में हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद बड़ीदा के महाराज ने उच्च शिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। तत्पश्चात् 1919 ई. में इन्होंने अमेरिका के कोलम्विया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. सेल्गमैन उनके प्राध्यापक थे। इसके उपरान्त डॉक्टरेट के लिए अम्बेडकर ने लन्दन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में एडमिशन लिया।      अम्बेडकर साहब का जन्म चूँकि एक अस्पृश्य परिवार में हुआ था जिस कारण इस घटना ने इनके जीवन को बहुत ही ज्यादा प्रभावित किया जिससे ये भारतीय समाज की जाति व्यवस्था के विरोध में आगे आए। डॉ. अम्बेडकर ने 1925 ई. में एक पाक्षिक समाचार पत्र 'बहिष्कृत भारत' का प्रकाशन बम्बई से प्रारम्भ किया। इसके एक वर्ष पश्चात् (1924 ई. में) इन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इनके अलावा कुछ संस्थाएँ और थी- समता सैनिक दल, स्वतन्त्र लेबर...

भारतीय संविधान के विकास का इतिहास | History of development of Indian constitution

  1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई. बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन का शिकंजा कसा. इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियां बनीं. वे निम्न हैं: 1. 1773 ई. का रेग्‍यूलेटिंग एक्ट:  इस एक्ट के अंतर्गत कलकत्ता प्रेसिडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता का उपयोग संयुक्त रूप से करते थे. इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं - (i)  कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया. (ii)  बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेंसियों का जनरल नियुक्त किया गया. (iii)  कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई. 2. 1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट:  इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ- (i) कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स - व्यापारिक मामलों के लिए (ii) बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर- राजनीतिक मामलों के लिए. 3. 1793 ई. का चार्टर अधिनियम:  इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा...

राजनीति विज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर | Important Quetions and Answers of Political Science

  राजनीति विज्ञान के 100 महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 1. दार्शनिक राजा का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया था ? उत्तर. प्लेटो ने। 2. संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव हैं ? उत्तर. एंटोनियो गुटेरेश है जो पुर्तगाल के हैं, जिन्होने 1 जनवरी 2017 को अपना कार्यकाल सँभाला 3. श्रेणी समाजवाद का संबंध निम्नलिखित में से किस देश से रहा है ? उत्तर. बिर्टेन से। 4. राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया था ? उत्तर. जेम्स प्रथम ने 5. मुख्य सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर. राष्ट्रपति 6. संसद का चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी की न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए? उत्तर. 25 वर्ष 7. भारतीय संविधान के किस संशोधन द्वारा प्रस्तावना में दो शब्द ‘समाजवादी’ और धर्मनिरपेक्ष जोड़े गए थे? उत्तर. 42वें 8. भारतीय संविधान के कौनसे भाग में नीति निदेशक तत्वों का वर्णन है ? उत्तर. चतुर्थ। 9. जस्टिस शब्द जस से निकला है जस का संबंध किस भाषा से है ? उत्तर. लैटिन 10. पंचायत समिति का गठन होता है? उत्तर. प्रखंड स्तर पर 11. “मेरे पास खून, पसीना और आँसू के अतिरिक्त देने के लिए कुछ भी नहीं है ” यह किस...

केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद | Center-State Relations and Inter-State Council

  केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद केन्द्र-राज्य सम्बन्ध- सांविधानिक प्रावधान अनुच्छेद 246:- संसद को सातवीं अनुसूची की सूची 1 में प्रगणित विषयों पर विधि बनाने की शक्ति। अनुच्छेद 248:- अवशिष्ट शक्तियां संसद के पास अनुच्छेद 249:-राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की शक्ति संसद के पास अनुच्छेद 250:- यदि आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में विधि बनाने की संसद की शक्ति अनुच्छेद 252:- दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति अनुच्छेद 257:- संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को निदेश दे सकती है अनुच्छेद 257 क:- संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अभिनियोजन द्वारा राज्यों की सहायता अनुच्छेद 263:- अन्तर्राज्य परिषद का प्रावधान भारत के संविधान ने केन्द्र-राज्य सम्बन्ध के बीच शक्तियों के वितरण की निश्चित और सुस्पष्ट योजना अपनायी है। संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के सम्बन्धों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: 1. केन्द्र तथा राज्यों के बीच विधायी सम्बन्ध। 2. केन्द्र तथा राज्यों के बीच प्र...

भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making

  भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making संविधान निर्माण की सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 में "स्वराज विधेयक" द्वारा की गई। 1916 में होमरूल लीग आन्दोलन चलाया गया।जिसमें घरेलू शासन सचांलन की मांग अग्रेजो से की गई। 1922 में गांधी जी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग प्रबलतम तरीके से की और कहा- कि जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी भारतीय संविधान का निर्माण -भारतीय लोगों की इच्छाओं के अनुकुल किया जाएगा। अगस्त 1928 में नेहरू रिपोर्ट बनाई गई। जिसकी अध्यक्षता पं. मोतीलाल नेहरू ने की। इसका निर्माण बम्बई में किया गया। इसके अन्तर्गत ब्रिटीश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया। जिसमें मौलिक अधिकारों अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा अखिल भारतीय संघ एवम् डोमिनियम स्टेट के प्रावधान रखे गए। इसका सबसे प्रबलतम विरोध मुस्लिम लीग और रियासतों के राजाओं द्वारा किया गया। 1929 में जवाहर लाला नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर सम्मेलन हुआ। जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई। 1936 में कांग्रेस का फैजलपुर सम्मेलन आयोजित किया गय...

गांधी की जीवनी एवं विचार/गांधीवाद (Gandhism)/ आधुनिक भारतीय विचारक /Biography and Thoughts of Mahatama Gandhi

 गांधीवाद (Gandhism)/ आधुनिक भारतीय विचारक /Deep study on Mahatama Gandhi गांधीवाद (Gandhism) बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारतीय राजनीतिक आन्दोलन में एक ऐसे व्यक्ति का प्रवेश हुआ जिसने पूरी भारतीय राजनीति को अपनी छवि से ढक लिया। यदि कहा जाए कि सम्पूर्ण भारतीय जनता को एक सूत्र में बाँधने का श्रेय गांधी जी को जाता है तो यह अतिश्योक्ति न होगी। गांधी एक ऐसे विचारक हैं जिन्होंने स्वयं अपने दर्शन का निर्माण नहीं किया, बल्कि पूर्व के दार्शनिक विचारों को अपने जीवन के व्यवहार में लाने का प्रयत्न किया। वह स्वयं कहा करते थे कि मैं किसी नवीन विचारधारा का प्रतिपादन नहीं कर रहा हूँ अपितु जो कुछ अच्छा है उसे में भारत की परिस्थिति के अनुसार व्यवहार में लाना चाहता हूँ सत्य और अहिंसा के विचार उतने ही पुराने हैं जितनी पुरानी पहाड़ियाँ हैं। श्री पटाभिसीता रमेया ने लिखा है कि "सिद्धान्तों का, मतों का, नियमों का, विनियमों का और प्रदेशों का समूह नहीं है प्रत्युत वह एक जीवन शैली या जीवन दर्शन है। यह शैली एक नई दिशा की ओर संकेत रकती है अथवा मनुष्य जीवन की समस्याओं के विषय में पुरानी दशा की पुनः स्था...

विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Vinayak Damodar Savarkar

   विनायक दामोदर सावरकर/Vinayak Damodar Savarkar विनायक दामोदर सावरकर विनायक दामोदर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (आधुनिक मुम्बई) प्रान्त के नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर एवं माता का नाम राधाबाई था। विनायक दामोदर सावरकर की पारिवारिक स्थिति आर्थिक क्षेत्र में ठीक नहीं थी। सावरकर ने पुणे से ही अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति की झलक दिखानी शुरू कर दी थी जिसमें 1908 ई. में स्थापित अभिनवभारत एक क्रान्तिकारी संगठन था। लन्दन में भी ये कई शिखर नेताओं (जिनमें लाला हरदयाल) से मिले और ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों का संचालन करते रहे। सावरकर की इन्हीं गतिविधियों से रुष्ट होकर ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें दो बार 24 दिसम्बर, 1910 को और 31 जनवरी, 1911 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। विनायक दामोदर द्वारा लिखित पुस्तकें (1) माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ (ii) हिन्दू-पद पादशाही (iii) हिन्दुत्व (iv) द बार ऑफ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स ऑफ 1851 सावरकर के ऊपर कलेक्टर जैक्सन की हत्या का आरोप लगाया गया जिसे नासिक षड्यंत्र केस में ना...