केन्द्र-राज्य सम्बन्ध और अंतर्राज्य परिषद
केन्द्र-राज्य सम्बन्ध- सांविधानिक प्रावधानअनुच्छेद 248:-अवशिष्ट शक्तियां संसद के पास
अनुच्छेद 249:-राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की शक्ति संसद के पास
अनुच्छेद 250:-यदि आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची के विषय के सम्बन्ध में विधि बनाने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 252:-दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति
अनुच्छेद 257:-संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को निदेश दे सकती है
अनुच्छेद 257 क:-संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अभिनियोजन द्वारा राज्यों की सहायता
अनुच्छेद 263:-अन्तर्राज्य परिषद का प्रावधान
भारत के संविधान ने केन्द्र-राज्य सम्बन्ध के बीच शक्तियों के वितरण की निश्चित और सुस्पष्ट योजना अपनायी है। संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के सम्बन्धों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. केन्द्र तथा राज्यों के बीच विधायी सम्बन्ध।
2. केन्द्र तथा राज्यों के बीच प्रशासनिक सम्बन्ध।
3. केन्द्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय सम्बन्ध।
1.भारतीय संघ में केन्द्र-राज्य विधायी सम्बन्ध का नाम दिया गया है। इन सूचियों को सातवीं अनुसूची में रखा गया है।
संघ सूची:-इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के ऐसे विषयों को रखा गया है जिनके सम्बन्ध में सम्पूर्ण देश में एक ही प्रकार की नीति को अपनाना आवश्यक कहा जा सकता है। इस सूची के सभी विषयों में विधि निर्माण का अधिकार संघीय संसद को प्राप्त है। इस सूची में कुल 99 विषय हैं जिनमें से कुछ प्रमुख ये हैं-रक्षा, वैदेशिक मामले, युद्ध व सन्धि, देशीकरण व नागरिकता, विदेशियों का आना-जाना, रेल, बन्दरगाह, हवाई मार्ग, डाकतार, टेलीफोन व बेतार, मुद्रा निर्माण, बैंक, बीमा, खानें व खनिज, आदि।
राज्य सूची:-इस सूची में साधारणतया वे विषय रखे गये हैं जो क्षेत्रीय महत्व के हैं। इस सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार सामान्यतया राजयों की व्यवस्थापिकाओं को प्राप्त है। इस सूची में 61 विषय हैं, जिनमें कुछ प्रमुख हैं: पुलिस, न्याय, जेल, स्थानीय स्वशासन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई और सड़कें आदि।
समवर्ती सूची:-औपचारिक रूप में और कानूनी दृष्टि से इन तीनों सूचियों के विषयों की संख्या वही बनी हुई है, जो मूल संविधान में थी। लेकिन 42वें संवैधानिक संशोधन (1976) द्वारा राज्य सूची के चार विषय (शिक्षा, वन, जंगली जानवर तथा पक्षियों की रक्षा और नाप-तौल) समवर्ती सूची में कर दिए गए हैं और समवर्ती सूची में एक नवीन विषय ’जनसंख्या नियन्त्रण और परिवार नियोजन’ शामिल किया गया है। इस प्रकार आज स्थिति यह है कि गणना की दृष्टि से समवर्ती सूची के विषयों की संख्या 52 हो गई है, लेकिन संवैधानिक दृष्टि से समवर्ती सूची के विषयों की संख्या आज भी 47 ही है। इस सूची में साधारणतया वे विषय रखे गए हैं, जिनका महत्व संघीय और क्षेत्रीय, दोनों ही दृष्टियों से है। इस सूची के विषयों पर संघ तथा राज्यों दोनों को ही कानून निर्माण का अधिकार प्राप्त है। यदि इस सूची के किसी विषय पर संघ तथा राज्य सरकार द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हों, तो सामान्यतः संघ का कानून मान्य होगा। इस सूची में कुल 47 विषय हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख विषय हैं: फौजदारी, विधि तथा प्रक्रिया, निवारक निरोध, विवाह और विवाह-विच्छेद, दत्तक और उत्तराधिकार, कारखाने, श्रमिक संघ, औद्योगिक विवाद, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा, पुनर्वास और पुरातत्व, शिक्षा और वन, आदि।
अंतर्राज्य परिषद
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में भारत के राज्यों के मुख्यमंत्री गण के साथ महत्वपूर्ण विषयों पर विचार विमर्श करने हेतु अंतर्राज्य परिषद सचिवालय द्वारा अंतर्राज्य परिषद की बैठकें आयोजित की जाती हैं.अंतर्राज्य परिषद(1) संविधान के अनुच्छेद 263 के अंतर्गत केंद्र एवं राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति एक अंतर्राज्य परिषद की स्थापना कर सकता है.
(2) पहली बार जून, 1990 ई० में अंतर्राज्य परिषद की स्थापना की गई, जिसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर, 1990 को हुई थी.
(3) इसमें निम्न सदस्य होते हैं:
(i) प्रधानमंत्री तथा उनके द्वारा मनोनीत 6 कैबिनेट स्तर के मंत्री,
(ii) सभी राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्यमंत्री एवं संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासक
(4) अंतर्राज्य परिषद की बैठक साल में तीन बार की जाएगी जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री या उनकी अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त कैबिनेट स्तर का मंत्री करता है. परिषद की बैठक के लिए आवश्यक है कि कम-से-कम 10 सदस्य अवश्य उपस्थित हों.
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