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डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Dr. Bhimrao Ambedkar

 
 डॉ. भीमराव अम्बेडकर  की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of  Dr. Bhimrao Ambedkar

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने 1907 ई. में हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद बड़ीदा के महाराज ने उच्च शिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। तत्पश्चात् 1919 ई. में इन्होंने अमेरिका के कोलम्विया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. सेल्गमैन उनके प्राध्यापक थे। इसके उपरान्त डॉक्टरेट के लिए अम्बेडकर ने लन्दन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में एडमिशन लिया।
    अम्बेडकर साहब का जन्म चूँकि एक अस्पृश्य परिवार में हुआ था जिस कारण इस घटना ने इनके जीवन को बहुत ही ज्यादा प्रभावित किया जिससे ये भारतीय समाज की जाति व्यवस्था के विरोध में आगे आए।
डॉ. अम्बेडकर ने 1925 ई. में एक पाक्षिक समाचार पत्र 'बहिष्कृत भारत' का प्रकाशन बम्बई से प्रारम्भ किया। इसके एक वर्ष पश्चात् (1924 ई. में) इन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इनके अलावा कुछ संस्थाएँ और थी- समता सैनिक दल, स्वतन्त्र लेबर पार्टी, अनुसूचित जाति फेडरेशन, भारत की बौद्ध सोसायटी आदि।

डॉ. अम्बेडकर की प्रमुख पुस्तकें

(1) स्माल होल्डिंग्स इन इण्डिया एण्ड देयर रिमैडीज
(ii) द कास्ट इन इण्डिया, देयर मेकेनिज्म जेनेसिस एण्ड डेवलपमेंट
(iii) द प्रॉब्लम ऑफ द रूसो इट्स ओरिजन एण्ड इट्स सोल्यूशन
(iv) नेशनल डिविडेण्ड फॉर इण्डिया ए हिस्टोरिक एण्ड एनेलिटिकल स्टडी।

अम्बेडकर के दलितों पर सम्बन्धित विचार


भारत में अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन दलितोद्धार में समर्पित कर दिया। अम्बेडकर के दलितोद्धार के विचारों एवं कार्यों में जाति प्रथा और हिन्दू समाज के परम्परागत विधान पर विरोध व्यक्त करते हुए अन्तर जातीय विवाह का समर्थन किया था।

डॉ. अम्बेडकर अछूतोद्धार पर विशेष ध्यान रखते थे। वे उन्हें यह शिक्षा देते थे कि वे साफ-सुथरा रहे और शिक्षित हाँ ताकि समाज में उन पर की जाने वाली दुर्दशा को रोका या कम किया जा सके। इसी प्रयास में उन्होंने अछूतों को सभी सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग का समान अधिकार दिया था जिसने 1929 ई. में महद तालाब सत्याग्रह, 1990 ई. में कालाराम मन्दिर प्रवेश आन्दोलन प्रमुख माने जा सकते हैं।

सामाजिक-आर्थिक विचार

सामाजिक विचार में अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था पर प्रहार किया है जिस व्यवस्था की उपस्थिति ने समाज में असमानता, अछूतों के सम्मान की उपस्थिति दर्ज करा दी है इसलिए उनका मत था कि अगर ये परम्परागत जातिवादी व्यवस्था का उन्मूलन हो जाता है तो समाज को विकास के उच्च पायदान में देखा जा सकता है।
    आर्थिक विचारों में अम्बेडकर साहब का मानना था कि औद्योगीकरण और शहरीकरण की स्थापना से इन समाजों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर, स्वास्थ्य स्तर, शिक्षा स्तर जैसी आवश्यकताओं की प्राप्ति बड़ी आसानी से हो सकती है।

राजनीतिक विचार

डॉ. अम्बेडकर ने मार्क्स के क्रान्ति सम्बन्धी दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए सवैधानिक शासन में आस्था व्यक्त की एवं गांधी के धर्म और राजनीति के दृष्टिकोण का विरोध करते हुए इसे विशिष्ट धर्मों के हितों का पोषण बताया, अम्बेडकर साहब ने संसदीय शासन प्रणाली का समर्थन करते हुए लोकतन्त्र में अगाध आस्था व्यक्त करते हुए संविधान के मौलिक अधिकारों को संविधान की आत्मा की संज्ञा दे डाली। इसके अलावा ये एकात्मक व सहकारी संघवाद के समर्थक थे।

अम्बेडकर के जनतन्त्र सम्बन्धी विचार

अम्बेडकर ने जनतन्त्र के सम्बन्ध में विभिन्न परिभाषाओं पर विचार किया है। बेजहॉट के अनुसार, लोकतन्त्र एक विचार-विमर्श का शासन है जहाँ निर्णय विचार-विमर्श के पश्चात् लिए जाते हैं।
अम्बेडकर संसदीय शासन प्रणाली के समर्थक थे। उनके अनुसार संसदीय शासन प्रणाली के तीन गुण हैं।
(i) इसमें वंशानुगत शासन नहीं होता है।
(ii) इसमें किसी एक व्यक्ति की सत्ता नहीं होती है।
(iii) निर्वाचन प्रतिनिधियों में जनता का पूर्ण विश्वास होना चाहिए।

अम्बेडकर ने संसदीय प्रणाली की असफलता के निम्नलिखित कारण बतलाए
 (i) इसके सभी अंग बहुत धीमी गति से कार्य करते हैं।
(ii) कार्यपालिका के मार्ग में विधायिका तथा न्यायपालिका कभी-कभी बाधा उत्पन्न करती हैं। 
(iii) संसदीय प्रणाली में जनता के अधिकारों की बात तो की जाती है किन्तु उनकी आर्थिक विषमता को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है।

अम्बेडकर का मानना था कि बिना सामाजिक और आर्थिक समानता के राजनीतिक लोकतन्त्र की स्थाना नहीं हो सकती है। एक स्थायी लोकतन्त्र की सफलता के लिए स्थायी सिविल सेवा तथा संवैधानिक नैतिकता को आवश्यक मानते थे।लोकतन्त्र में अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों का वर्चस्य नहीं होना चाहिए।

धर्म तथा राज्य के सम्बन्ध में अम्बेडकर के विचार 

अम्बेडकर के अनुसार प्रत्येक नागरिक को अन्तःकरण की स्वतन्त्रता तथा किसी भी धर्म को मानने व उसका प्रचार करने की आजादी होनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को जबरदस्ती किसी भी धर्म का अनुयायी नहीं बनाया जाना चाहिए। राष्ट्र का कोई भी धर्म नहीं होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति पर ऐसा कोई कर नहीं थोपा जाना चाहिए जिससे प्राप्त होने वाली आय किसी धर्म विशेष को बढ़ाए रखने के लिए खर्च की जाए।

अम्बेडकर के अनुसार विवेक और अधिकार

अम्बेडकर का तर्क था कि विश्व और मानव को मानव के विवेक और उद्यम से समझा जा सकता है। मानव विवेक की अभिव्यक्ति सकारात्मक रूप से विज्ञान और आधुनिक प्रौद्योगिकी में निहित है। उन्होंने ज्ञान को मीमांसात्मक और गोपनीय मानने की बजाय अत्यन्त व्यावहारिक समझा धर्म के प्रति अम्बेडकर का दृष्टिकोण मिश्रित रहा। अतः धर्म लक्ष्यों को ऊपर उठाता है। उनका कहना था कि श्रेष्ठ जीवन के लिए स्वतन्त्रता, समानता तथा बन्धुता अनिवार्य है। उन्होंने अधिकारों को विरोध के रूप में नहीं देखा बल्कि एक-दूसरे को मजबूत करने की दृष्टि से देखा।

उन्होंने समानता के कारणों से न केवल सुविधा वंचित समुदायों को विशेष व्यवहार बल्कि असमतावादी सामाजिक संरचनाओं के आधार पर स्वस्थ श्रेष्ठ समाज के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इन्हें उपलब्ध कराने का समर्थन किया।

जाति

प्रारम्भ में अम्बेडकर ने जाति की विशेषताओं को मिश्रित सांस्कृतिक वातावरण में विजातीयता पर थोपी गई सजातीयता माना। उनका कहना था कि सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा विवाह प्रतिषेध जैसी बुराइयाँ वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को नियंत्रित करने वाले सिद्धान्त एक ही प्रकार के हैं। दोनों श्रेणीबद्ध असमानता को स्वीकार करते हैं और बुद्धि के बजाय जन्म के सिद्धान्त का समर्थन करते हैं। अम्बेडकर का तर्क था कि सामुदायिक बन्धनों को संचालित किए बिना और स्वतंत्रता तथा समानता को प्रोत्साहित किए बिना जाति का उन्मूलन प्रायः असम्भव हो जाता है। उनका कहना था कि जो ‘शास्त्र वर्णश्रम धर्म' का समर्थन करते हैं उन्हें छोड़ देना चाहिए क्योंकि ये समाज के श्रेणीबद्ध संगठन को उचित और वैध ठहराते हैं।

छुआछूत

अम्बेडकर ने छुआछूत पर भी कटाक्ष किया। उनका कहना था कि छुआछूत न केवल जाति अपमान का चरम रूप है बल्कि गुणात्मक रूप से यह अलग रूप है क्योंकि इस व्यवस्था ने अछूतों को दायरे से बाहर रखा और सामाजिक अन्तःसम्पर्क को दूषित और शोचनीय बताया। उनका कहना था कि अछूतों के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जाता और उनका सर्वत्र तिरस्कार किया जाता है। वे यह नहीं मानते थे कि हुआछूत का आधार जाति में निहित है। उन्होंने इसे ब्राह्मणवाद की विचारधारा से समर्थित सामाजिक संस्था माना। भारत में व्याप्त गहरे विश्वासों और छुआछूत की प्रथाओं के बारे में अम्बेडकर का कहना था कि इस बीमारी का कोई उपाय नहीं है। इसके लिए पूरे समाज का परिवर्तन आवश्यक है।
छुआछूत के इर्द-गिर्द निहित स्वार्थों और पूर्वाग्रहों के कारण स्थापित समूहों से ज्यादा कुछ आशा नहीं की जा सकती है।

संवैधानिक लोकतन्त्र

अम्बेडकर के कार्य का मुख्य क्षेत्र संवैधानिक लोकतन्त्र पर था। लोगों को एकता के बन्धन में बाँधने के लिए और सामूहिक कार्यों में लोगों को समान सहभागिता प्रदान करने के लिए विधि का शासन उनकी कल्पना के लिए अत्यन्त आवश्यक था। उनका कहना था कि रीति-रिवाज संकीर्ण हितों का समर्थन कर सकते हैं और लोकप्रिय विश्वास पूर्वाग्रहों में गहराई में जकड़े जा सकते हैं तथा यह भी सम्भव है कि न्याय न हो सके। यदि कानून स्वतन्त्रता तथा लोकतन्त्र पर कायम है तो इसे सामान्य कल्याण के कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
कानून में विवेक और नैतिकता होनी चाहिए परन्तु कानून के आधिकारिक निषेधादेश के बिना लोकतन्त्र का कोई महत्व नहीं है। उनका कहना था कि बहुसंख्यक वर्ग जो स्थायी है और राजनीतिक विघटन और पुनर्गठन के लिए जिम्मेदार नहीं है परन्तु साथ ही इनका कहना था कि वे संवैधानिक लोकतन्त्र को बनाए रखे हुए हैं। 

सामाजिक न्याय और सहायक राजव्यवस्था

अम्बेडकर का मानना था कि यदि राज्य अधिकारों को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे चाहिए कि वह सुविधा वंचितों के लिए राज्य के संवैधानिक आधार पर विचार करें ये सामाजिक सम्बन्ध स्वाभाविक प्रतिकूल दशाओं में बदलने का प्रयास करते हैं और समाज के बड़े भाग को उनके प्रति जिम्मेदारी से वंचित करते हैं। उनका मानना था कि सकारात्मक उपाय ही समाज के केवल नैतिक अन्तःकरण की अपेक्षा बेहतर गारंटी है हालांकि नैतिक अन्तःकरण ऐसे उपायों को बरकरार रखने की प्रथम शर्त है।

उन्होंने वचित समूहों के लिए स्वायत्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व की माँग की ताकि उनकी न केवल राजनीतिक उपस्थिति सुनिश्चित हो सके बल्कि सम्बन्धी समूह स्थिति के अनुसार स्वयं अपने विकास और परिरक्षण के कार्य सुनिश्चित कर सकें। उन्होंने वंचित समूहों के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण की उस सीमा तक माँग का कि वे इसे इस प्रकार के रोजगार के लिए शर्तें पूरी कर सकें। उन्होंने इन समूहों के लिए विस्तृत सहायक नीति उपायों की माँग की ताकि राज्य द्वारा शुरू किए जाने वाले विभिन्न विकासात्मक और कल्याणकारी उपायों के लाभ उन तक पहुँच सकें।



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  निति आयोग और वित्त आयोग यह एक गैर संवैधानिक निकाय है | National Institution for Transforming India( NITI Aayog )(राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) इसकी स्थापना 1 जनवरी 2015 को हुई | मुख्यालय – दिल्ली भारत सरकार का मुख्य थिंक-टैंक है| जिसे योजना आयोग के स्‍थान पर बनाया गया है इस आयोग का कार्य सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर सरकार को सलाह देने का है जिससे सरकार ऐसी योजना का निर्माण करे जो लोगों के हित में हो। निति आयोग को 2 Hubs में बाटा गया है 1) राज्यों और केंद्र के बीच में समन्वय स्थापित करना | 2) निति आयोग को बेहतर बनाने का काम | निति आयोग की संरचना : 1. भारत के प्रधानमंत्री- अध्यक्ष। 2. गवर्निंग काउंसिल में राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्रशासित प्रदेशों(जिन केन्द्रशासित प्रदेशो में विधानसभा है वहां के मुख्यमंत्री ) के उपराज्यपाल शामिल होंगे। 3. विशिष्ट मुद्दों और ऐसे आकस्मिक मामले, जिनका संबंध एक से अधिक राज्य या क्षेत्र से हो, को देखने के लिए क्षेत्रीय परिषद गठित की जाएंगी। ये परिषदें विशिष्ट कार्यकाल के लिए बनाई जाएंगी। भारत के प्रधानमंत्री के निर्देश पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठक हो

भारतीय निर्वाचन आयोग और परिसीमन आयोग |Election Commission of India and Delimitation Commission

  भारतीय निर्वाचन आयोग और परिसीमन आयोग परिसीमन आयोग भारत के उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 12 जुलाई 2002 को परिसीमन आयोग का गठन किया गया। यह आयोग वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करेगा। दिसंबर 2007 में इस आयोग ने नये परिसीमन की संसुतिति भारत सरकार को सौंप दी। लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस पर उच्चतम न्यायलय ने, एक दाखिल की गई रिट याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी की। फलस्वरूप कैविनेट की राजनीतिक समिति ने 4 जनवरी 2008 को इस आयोग की संस्तुतियों को लागु करने का निश्चय किया। 19 फरवरी 2008 को राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इस परिसीमन आयोग को लागू करने की स्वीकृति प्रदान की। परिसीमन •    संविधान के अनुच्छेद 82 के अधीन, प्रत्येक जनगणना के पश्चात् कानून द्वारा संसद एक परिसीमन अधिनियम को अधिनियमित करती है. •    परिसीमन आयोग परिसीमन अधिनियम के उपबंधों के अनुसार संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के सीमाओं को सीमांकित करता है. •    निर्वाचन क्षेत्रों का वर्तमान परिसीमन 1971 के जनगणना आँकड़ों पर आधारित

भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making

  भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making संविधान निर्माण की सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 में "स्वराज विधेयक" द्वारा की गई। 1916 में होमरूल लीग आन्दोलन चलाया गया।जिसमें घरेलू शासन सचांलन की मांग अग्रेजो से की गई। 1922 में गांधी जी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग प्रबलतम तरीके से की और कहा- कि जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी भारतीय संविधान का निर्माण -भारतीय लोगों की इच्छाओं के अनुकुल किया जाएगा। अगस्त 1928 में नेहरू रिपोर्ट बनाई गई। जिसकी अध्यक्षता पं. मोतीलाल नेहरू ने की। इसका निर्माण बम्बई में किया गया। इसके अन्तर्गत ब्रिटीश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया। जिसमें मौलिक अधिकारों अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा अखिल भारतीय संघ एवम् डोमिनियम स्टेट के प्रावधान रखे गए। इसका सबसे प्रबलतम विरोध मुस्लिम लीग और रियासतों के राजाओं द्वारा किया गया। 1929 में जवाहर लाला नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर सम्मेलन हुआ। जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई। 1936 में कांग्रेस का फैजलपुर सम्मेलन आयोजित किया गय

राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व |Directive Principles of State Policy

  36. परिभाषा- इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' का वही अर्थ है जो भाग 3 में है। 37. इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना- इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। 38. राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा- राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूंप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा। राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा। 39. राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व- राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनि

राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर/very important question and answer of polity

 राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्‍न – किस संविधान संशोधन अधिनियम ने राज्‍य के नीति निर्देशक तत्‍वों को मौलिक अधिकारों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली बनाया?  उत्‍तर – 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) ने प्रश्‍न – भारत के कौन से राष्‍ट्रपति ‘द्वितीय पसंद'(Second Preference) के मतों की गणना के फलस्‍वरूप अपना निश्चित कोटा प्राप्‍त कर निर्वाचित हुए?  उत्‍तर – वी. वी. गिरि प्रश्‍न – संविधान के किस अनुच्‍छेद के अंतर्गत वित्‍तीय आपातकाल की व्‍यवस्‍था है?  उत्‍तर – अनुच्‍छेद 360 प्रश्‍न – भारतीय संविधान कौन सी नागरिकता प्रदान करता है?  उत्‍तर – एकल नागरिकता प्रश्‍न – प्रथम पंचायती राज व्‍यवस्‍था का उद्घाटन पं. जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्‍टूबर, 1959 को किस स्‍थान पर किया था ? उत्‍तर – नागौर (राजस्‍थान) प्रश्‍न – लोकसभा का कोरम कुल सदस्‍य संख्‍या का कितना होता है?  उत्‍तर – 1/10 प्रश्‍न – पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन तथा पुनर्निरीक्षण किसके द्वारा किया जाताहै? उत्‍तर – राष्‍ट्रीय विकास परिषद प्रश्‍न – राज्‍य स्‍तर पर मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है?  उत्‍तर – राज्‍यपाल प्रश्‍न – नए

भारतीय संविधान के भाग |Part of Indian Constitution

  भाग 1  संघ और उसके क्षेत्र- अनुच्छेद 1-4 भाग 2  नागरिकता- अनुच्छेद 5-11 भाग 3  मूलभूत अधिकार- अनुच्छेद 12 - 35 भाग 4  राज्य के नीति निदेशक तत्व- अनुच्छेद 36 - 51 भाग 4 A  मूल कर्तव्य- अनुच्छेद 51A भाग 5  संघ- अनुच्छेद 52-151 भाग 6  राज्य- अनुच्छेद 152 -237 भाग 7  संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम,- 1956 द्वारा निरसित भाग 8  संघ राज्य क्षेत्र- अनुच्छेद 239-242 भाग 9  पंचायत - अनुच्छेद 243- 243O भाग 9A  नगर्पालिकाएं- अनुच्छेद 243P - 243ZG भाग 10  अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र- अनुच्छेद 244 - 244A भाग 11  संघ और राज्यों के बीच संबंध- अनुच्छेद 245 - 263 भाग 12  वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद -अनुच्छेद 264 -300A भाग 13  भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम- अनुच्छेद 301 - 307 भाग 14  संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं- अनुच्छेद 308 -323 भाग 14A  अधिकरण- अनुच्छेद 323A - 323B भाग 15 निर्वाचन- अनुच्छेद 324 -329A भाग 16  कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध संबंध- अनुच्छेद 330- 342 भाग 17  राजभाषा- अनुच्छेद 343- 351 भाग 18  आपात उपबंध अनुच्छेद- 352 - 360 भाग 19  प्रकीर्ण- अनुच्छेद 361 -367

संघीय कार्यपालिका एवं भारत का राष्ट्रपति | Federal Executive and President of India

  भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है. 1.  भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है. इसलिए राष्ट्रपति नामपत्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है. राष्ट्रपति a.  राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रधान होता है. b.  भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम व्यक्ति कहलाता है. 2.   राष्ट्रपति पद की योग्यता:  संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्‍ट्रपति होने योग्य तब होगा, जब वह: (a)  भारत का नागरिक हो. (b)  35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो. (c)  लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किए जाने योग्य हो. (d)  चुनाव के समय लाभ का पद धारण नहीं करता हो. नोट:  यदि व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर हो या संघ अथवा किसी राज्य की मंत्रिपरिषद का सदस्य हो, तो वह लाभ का पद नहीं माना जाएगा. 3.   राष्‍ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल:  इसमें राज्य सभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य रहते हैं. नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पांडिचेरी विधानसभा तथा दिल्ली की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य को भी सम्मिलित किया गया है. 4.  राष्ट्रप

विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Vinayak Damodar Savarkar

   विनायक दामोदर सावरकर/Vinayak Damodar Savarkar विनायक दामोदर सावरकर विनायक दामोदर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (आधुनिक मुम्बई) प्रान्त के नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर एवं माता का नाम राधाबाई था। विनायक दामोदर सावरकर की पारिवारिक स्थिति आर्थिक क्षेत्र में ठीक नहीं थी। सावरकर ने पुणे से ही अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति की झलक दिखानी शुरू कर दी थी जिसमें 1908 ई. में स्थापित अभिनवभारत एक क्रान्तिकारी संगठन था। लन्दन में भी ये कई शिखर नेताओं (जिनमें लाला हरदयाल) से मिले और ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों का संचालन करते रहे। सावरकर की इन्हीं गतिविधियों से रुष्ट होकर ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें दो बार 24 दिसम्बर, 1910 को और 31 जनवरी, 1911 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। विनायक दामोदर द्वारा लिखित पुस्तकें (1) माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ (ii) हिन्दू-पद पादशाही (iii) हिन्दुत्व (iv) द बार ऑफ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स ऑफ 1851 सावरकर के ऊपर कलेक्टर जैक्सन की हत्या का आरोप लगाया गया जिसे नासिक षड्यंत्र केस में नाम से जाना

PREAMBLE of India

 PREAMBLE WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political, LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship, EQUALITY of status and of opportunity: and to promote among them all  FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation,  IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.