डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Dr. Bhimrao Ambedkar |
डॉ. भीमराव अम्बेडकर
डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने 1907 ई. में हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद बड़ीदा के महाराज ने उच्च शिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। तत्पश्चात् 1919 ई. में इन्होंने अमेरिका के कोलम्विया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो. सेल्गमैन उनके प्राध्यापक थे। इसके उपरान्त डॉक्टरेट के लिए अम्बेडकर ने लन्दन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में एडमिशन लिया।
अम्बेडकर साहब का जन्म चूँकि एक अस्पृश्य परिवार में हुआ था जिस कारण इस घटना ने इनके जीवन को बहुत ही ज्यादा प्रभावित किया जिससे ये भारतीय समाज की जाति व्यवस्था के विरोध में आगे आए।
डॉ. अम्बेडकर ने 1925 ई. में एक पाक्षिक समाचार पत्र 'बहिष्कृत भारत' का प्रकाशन बम्बई से प्रारम्भ किया। इसके एक वर्ष पश्चात् (1924 ई. में) इन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इनके अलावा कुछ संस्थाएँ और थी- समता सैनिक दल, स्वतन्त्र लेबर पार्टी, अनुसूचित जाति फेडरेशन, भारत की बौद्ध सोसायटी आदि।
डॉ. अम्बेडकर की प्रमुख पुस्तकें
(1) स्माल होल्डिंग्स इन इण्डिया एण्ड देयर रिमैडीज
(ii) द कास्ट इन इण्डिया, देयर मेकेनिज्म जेनेसिस एण्ड डेवलपमेंट
(iii) द प्रॉब्लम ऑफ द रूसो इट्स ओरिजन एण्ड इट्स सोल्यूशन
(iv) नेशनल डिविडेण्ड फॉर इण्डिया ए हिस्टोरिक एण्ड एनेलिटिकल स्टडी।
अम्बेडकर के दलितों पर सम्बन्धित विचार
भारत में अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन दलितोद्धार में समर्पित कर दिया। अम्बेडकर के दलितोद्धार के विचारों एवं कार्यों में जाति प्रथा और हिन्दू समाज के परम्परागत विधान पर विरोध व्यक्त करते हुए अन्तर जातीय विवाह का समर्थन किया था।
डॉ. अम्बेडकर अछूतोद्धार पर विशेष ध्यान रखते थे। वे उन्हें यह शिक्षा देते थे कि वे साफ-सुथरा रहे और शिक्षित हाँ ताकि समाज में उन पर की जाने वाली दुर्दशा को रोका या कम किया जा सके। इसी प्रयास में उन्होंने अछूतों को सभी सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग का समान अधिकार दिया था जिसने 1929 ई. में महद तालाब सत्याग्रह, 1990 ई. में कालाराम मन्दिर प्रवेश आन्दोलन प्रमुख माने जा सकते हैं।
सामाजिक-आर्थिक विचार
सामाजिक विचार में अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था पर प्रहार किया है जिस व्यवस्था की उपस्थिति ने समाज में असमानता, अछूतों के सम्मान की उपस्थिति दर्ज करा दी है इसलिए उनका मत था कि अगर ये परम्परागत जातिवादी व्यवस्था का उन्मूलन हो जाता है तो समाज को विकास के उच्च पायदान में देखा जा सकता है।
आर्थिक विचारों में अम्बेडकर साहब का मानना था कि औद्योगीकरण और शहरीकरण की स्थापना से इन समाजों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर, स्वास्थ्य स्तर, शिक्षा स्तर जैसी आवश्यकताओं की प्राप्ति बड़ी आसानी से हो सकती है।
राजनीतिक विचार
डॉ. अम्बेडकर ने मार्क्स के क्रान्ति सम्बन्धी दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए सवैधानिक शासन में आस्था व्यक्त की एवं गांधी के धर्म और राजनीति के दृष्टिकोण का विरोध करते हुए इसे विशिष्ट धर्मों के हितों का पोषण बताया, अम्बेडकर साहब ने संसदीय शासन प्रणाली का समर्थन करते हुए लोकतन्त्र में अगाध आस्था व्यक्त करते हुए संविधान के मौलिक अधिकारों को संविधान की आत्मा की संज्ञा दे डाली। इसके अलावा ये एकात्मक व सहकारी संघवाद के समर्थक थे।
अम्बेडकर के जनतन्त्र सम्बन्धी विचार
अम्बेडकर ने जनतन्त्र के सम्बन्ध में विभिन्न परिभाषाओं पर विचार किया है। बेजहॉट के अनुसार, लोकतन्त्र एक विचार-विमर्श का शासन है जहाँ निर्णय विचार-विमर्श के पश्चात् लिए जाते हैं।
अम्बेडकर संसदीय शासन प्रणाली के समर्थक थे। उनके अनुसार संसदीय शासन प्रणाली के तीन गुण हैं।
(i) इसमें वंशानुगत शासन नहीं होता है।
(ii) इसमें किसी एक व्यक्ति की सत्ता नहीं होती है।
(iii) निर्वाचन प्रतिनिधियों में जनता का पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
अम्बेडकर ने संसदीय प्रणाली की असफलता के निम्नलिखित कारण बतलाए
(i) इसके सभी अंग बहुत धीमी गति से कार्य करते हैं।
(ii) कार्यपालिका के मार्ग में विधायिका तथा न्यायपालिका कभी-कभी बाधा उत्पन्न करती हैं।
(iii) संसदीय प्रणाली में जनता के अधिकारों की बात तो की जाती है किन्तु उनकी आर्थिक विषमता को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है।
अम्बेडकर का मानना था कि बिना सामाजिक और आर्थिक समानता के राजनीतिक लोकतन्त्र की स्थाना नहीं हो सकती है। एक स्थायी लोकतन्त्र की सफलता के लिए स्थायी सिविल सेवा तथा संवैधानिक नैतिकता को आवश्यक मानते थे।लोकतन्त्र में अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों का वर्चस्य नहीं होना चाहिए।
धर्म तथा राज्य के सम्बन्ध में अम्बेडकर के विचार
अम्बेडकर के अनुसार प्रत्येक नागरिक को अन्तःकरण की स्वतन्त्रता तथा किसी भी धर्म को मानने व उसका प्रचार करने की आजादी होनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को जबरदस्ती किसी भी धर्म का अनुयायी नहीं बनाया जाना चाहिए। राष्ट्र का कोई भी धर्म नहीं होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति पर ऐसा कोई कर नहीं थोपा जाना चाहिए जिससे प्राप्त होने वाली आय किसी धर्म विशेष को बढ़ाए रखने के लिए खर्च की जाए।
अम्बेडकर के अनुसार विवेक और अधिकार
अम्बेडकर का तर्क था कि विश्व और मानव को मानव के विवेक और उद्यम से समझा जा सकता है। मानव विवेक की अभिव्यक्ति सकारात्मक रूप से विज्ञान और आधुनिक प्रौद्योगिकी में निहित है। उन्होंने ज्ञान को मीमांसात्मक और गोपनीय मानने की बजाय अत्यन्त व्यावहारिक समझा धर्म के प्रति अम्बेडकर का दृष्टिकोण मिश्रित रहा। अतः धर्म लक्ष्यों को ऊपर उठाता है। उनका कहना था कि श्रेष्ठ जीवन के लिए स्वतन्त्रता, समानता तथा बन्धुता अनिवार्य है। उन्होंने अधिकारों को विरोध के रूप में नहीं देखा बल्कि एक-दूसरे को मजबूत करने की दृष्टि से देखा।
उन्होंने समानता के कारणों से न केवल सुविधा वंचित समुदायों को विशेष व्यवहार बल्कि असमतावादी सामाजिक संरचनाओं के आधार पर स्वस्थ श्रेष्ठ समाज के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इन्हें उपलब्ध कराने का समर्थन किया।
जाति
प्रारम्भ में अम्बेडकर ने जाति की विशेषताओं को मिश्रित सांस्कृतिक वातावरण में विजातीयता पर थोपी गई सजातीयता माना। उनका कहना था कि सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा विवाह प्रतिषेध जैसी बुराइयाँ वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को नियंत्रित करने वाले सिद्धान्त एक ही प्रकार के हैं। दोनों श्रेणीबद्ध असमानता को स्वीकार करते हैं और बुद्धि के बजाय जन्म के सिद्धान्त का समर्थन करते हैं। अम्बेडकर का तर्क था कि सामुदायिक बन्धनों को संचालित किए बिना और स्वतंत्रता तथा समानता को प्रोत्साहित किए बिना जाति का उन्मूलन प्रायः असम्भव हो जाता है। उनका कहना था कि जो ‘शास्त्र वर्णश्रम धर्म' का समर्थन करते हैं उन्हें छोड़ देना चाहिए क्योंकि ये समाज के श्रेणीबद्ध संगठन को उचित और वैध ठहराते हैं।
छुआछूत
अम्बेडकर ने छुआछूत पर भी कटाक्ष किया। उनका कहना था कि छुआछूत न केवल जाति अपमान का चरम रूप है बल्कि गुणात्मक रूप से यह अलग रूप है क्योंकि इस व्यवस्था ने अछूतों को दायरे से बाहर रखा और सामाजिक अन्तःसम्पर्क को दूषित और शोचनीय बताया। उनका कहना था कि अछूतों के साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जाता और उनका सर्वत्र तिरस्कार किया जाता है। वे यह नहीं मानते थे कि हुआछूत का आधार जाति में निहित है। उन्होंने इसे ब्राह्मणवाद की विचारधारा से समर्थित सामाजिक संस्था माना। भारत में व्याप्त गहरे विश्वासों और छुआछूत की प्रथाओं के बारे में अम्बेडकर का कहना था कि इस बीमारी का कोई उपाय नहीं है। इसके लिए पूरे समाज का परिवर्तन आवश्यक है।
छुआछूत के इर्द-गिर्द निहित स्वार्थों और पूर्वाग्रहों के कारण स्थापित समूहों से ज्यादा कुछ आशा नहीं की जा सकती है।
संवैधानिक लोकतन्त्र
अम्बेडकर के कार्य का मुख्य क्षेत्र संवैधानिक लोकतन्त्र पर था। लोगों को एकता के बन्धन में बाँधने के लिए और सामूहिक कार्यों में लोगों को समान सहभागिता प्रदान करने के लिए विधि का शासन उनकी कल्पना के लिए अत्यन्त आवश्यक था। उनका कहना था कि रीति-रिवाज संकीर्ण हितों का समर्थन कर सकते हैं और लोकप्रिय विश्वास पूर्वाग्रहों में गहराई में जकड़े जा सकते हैं तथा यह भी सम्भव है कि न्याय न हो सके। यदि कानून स्वतन्त्रता तथा लोकतन्त्र पर कायम है तो इसे सामान्य कल्याण के कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
कानून में विवेक और नैतिकता होनी चाहिए परन्तु कानून के आधिकारिक निषेधादेश के बिना लोकतन्त्र का कोई महत्व नहीं है। उनका कहना था कि बहुसंख्यक वर्ग जो स्थायी है और राजनीतिक विघटन और पुनर्गठन के लिए जिम्मेदार नहीं है परन्तु साथ ही इनका कहना था कि वे संवैधानिक लोकतन्त्र को बनाए रखे हुए हैं।
सामाजिक न्याय और सहायक राजव्यवस्था
अम्बेडकर का मानना था कि यदि राज्य अधिकारों को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे चाहिए कि वह सुविधा वंचितों के लिए राज्य के संवैधानिक आधार पर विचार करें ये सामाजिक सम्बन्ध स्वाभाविक प्रतिकूल दशाओं में बदलने का प्रयास करते हैं और समाज के बड़े भाग को उनके प्रति जिम्मेदारी से वंचित करते हैं। उनका मानना था कि सकारात्मक उपाय ही समाज के केवल नैतिक अन्तःकरण की अपेक्षा बेहतर गारंटी है हालांकि नैतिक अन्तःकरण ऐसे उपायों को बरकरार रखने की प्रथम शर्त है।
उन्होंने वचित समूहों के लिए स्वायत्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व की माँग की ताकि उनकी न केवल राजनीतिक उपस्थिति सुनिश्चित हो सके बल्कि सम्बन्धी समूह स्थिति के अनुसार स्वयं अपने विकास और परिरक्षण के कार्य सुनिश्चित कर सकें। उन्होंने वंचित समूहों के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण की उस सीमा तक माँग का कि वे इसे इस प्रकार के रोजगार के लिए शर्तें पूरी कर सकें। उन्होंने इन समूहों के लिए विस्तृत सहायक नीति उपायों की माँग की ताकि राज्य द्वारा शुरू किए जाने वाले विभिन्न विकासात्मक और कल्याणकारी उपायों के लाभ उन तक पहुँच सकें।
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