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विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Vinayak Damodar Savarkar

 
 विनायक दामोदर सावरकर/Vinayak Damodar Savarkar

विनायक दामोदर सावरकर

विनायक दामोदर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (आधुनिक मुम्बई) प्रान्त के नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर एवं माता का नाम राधाबाई था। विनायक दामोदर सावरकर की पारिवारिक स्थिति आर्थिक क्षेत्र में ठीक नहीं थी।
सावरकर ने पुणे से ही अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति की झलक दिखानी शुरू कर दी थी जिसमें 1908 ई. में स्थापित अभिनवभारत एक क्रान्तिकारी संगठन था।
लन्दन में भी ये कई शिखर नेताओं (जिनमें लाला हरदयाल) से मिले और ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों का संचालन करते रहे। सावरकर की इन्हीं गतिविधियों से रुष्ट होकर ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें दो बार 24 दिसम्बर, 1910 को और 31 जनवरी, 1911 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी।

विनायक दामोदर द्वारा लिखित पुस्तकें

(1) माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ
(ii) हिन्दू-पद पादशाही
(iii) हिन्दुत्व
(iv) द बार ऑफ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स ऑफ 1851

सावरकर के ऊपर कलेक्टर जैक्सन की हत्या का आरोप लगाया गया जिसे नासिक षड्यंत्र केस में नाम से जाना जाता है। इस आरोप में सावरकर को सेलुलर जेल में रखा गया फिर उन्हें पोर्ट ब्लेयर जेल में ले जाया गया। इस प्रकार इनके क्रान्तिकारी या राजनीति के क्षेत्र में काफी उतार-चढ़ाव आए। अतः इन्हें राजनीति पटल से पूरी तरह निष्कासित होना पड़ा तब इन्होंने अपना रुझान सामाजिक क्षेत्र में लगाया। सावरकर ने सामाजिक उत्थान के प्रयास के लिए 1924 से 1997 ई. में पद यात्राएँ कीं। सावरकर ने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया था कि सामान्य जातियों में असमानता है और अगर समानता स्थापित कर दी जाए तो इस समस्या को समाप्त या कम किया जा सकता है। इसी को उन्होंने अन्जाम देने के लिए 1991 ई. में बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना की, जिसे हिन्दू धर्म की प्रत्येक जाति के लोगों के लिए समान रूप से खुला रखा गया।
सावरकर हिन्दुत्व विचारधारा को अपनी उच्चता तक पहुँचना चाहते थे, यहाँ सावरकर ने हिन्दूवाद से आशय यह बताया कि केवल हिन्दू तक सीमित था जबकि हिन्दुत्व एक व्यापक विचारधारा है।

सावरकर के अनुसार सामाजिक कुरीतियाँ

वेदोक्तवन्दी- वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध 
शुद्धिबन्दी- किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध
स्पर्शबन्दी- निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता
व्यवसायी- बन्दी कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध
सिन्धुबन्दी-  सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध 
रोटी बन्दी- निम्न जातियों के साथ खान-पान निषेध
बेटीबन्द- खास जातियों के संग विवाह सम्बन्ध निषेध

सावरकर के प्रमुख विचार

सावरकर ने अपनी पुस्तक 'हिन्दू पद पादशाही' में इतिहास की व्याख्या विशेषकर मराठा शक्ति के उदय की राष्ट्रवादी व्याख्या की
(i) सावरकर का यह भी कहना है कि मराठा राज्यतन्त्र में अनेक लोकतान्त्रिक तत्त्व भी देखने को मिलते हैं। 
(ii) सावरकर न्याय के लिए हिंसा अपनाने को भी उचित मानते थे।
(iii) सावरकर ने हिन्दू राष्ट्र की सांस्कृतिक तथा सावयदी एकता को स्वीकार किया। 
(iv) सावरकर ने अपनी पुस्तक 'हिन्दुत्व' में कहा कि 'हिन्दू वह है जो सिन्धु नदी से समुद्र तक सम्पूर्ण भारतवर्ष को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है।

हिन्दुत्व का सिद्धान्त

    विनायक दामोदर सावरकर उग्र राष्ट्रवादी तथा वीर क्रान्तिकारी थे। वर्ष 1937 के लगभग वे बालगंगाधर तिलक के लोकतान्त्रिक स्वराज दल में सम्मिलित हो गए और बाद में हिन्दू महासभा की सदस्यता स्वीकार कर ली। सावर को हिन्दुओं की सांस्कृतिक एवं दार्शनिक उपलब्धियों पर बड़ा गर्व था अपनी पुस्तक हिन्दुत्व में उन्होंने दावा किया है कि हिन्दू चिन्तन ने अज्ञात की प्रकृति के सम्बन्ध में मानव चिन्तन की सम्भावनाओं को ही निःशेष कर दिया है।

सावरकर ने हिन्दू राष्ट्र की सांस्कृतिक तथा अवयवी एकता को स्वीकार किया। वे हिन्दु पुनरुत्थान के आदर्श के भारत थे और हिन्दुत्व की सांस्कृतिक श्रेष्ठता में विश्वास करते थे। उन्होंने हिन्दू समाज के नैतिक एवं सामाजिक पुनरुत्थान पर चल दिया। उन्होंने कहा कि यदि हिन्दुत्व मृत्योपरान्त मोक्ष की समस्याओं में तथा ईश्वर एवं विश्व सम्बन्धी धारणाओं में व्यस्त है तो उसे रहने दीजिए। जहाँ तक भौतिक एवं ऐहिक जीवन का सम्बन्ध है, हिन्दू सामान्य संस्कृति, सामान्य इतिहास, सामान्य भाषा, सामान्य देश तथा सामान्य धर्म के द्वारा परस्पर आबद्ध होने के कारण एक राष्ट्र है।

सावरकर का 'हिन्दुत्व' 1923 ई में प्रकाशित हुआ था। यह आधुनिक हिन्दू राजनीतिक विचारधारा की प्रसिद्ध पुस्तक है। हिन्दुत्व अथवा हिन्दू होने के तीन लक्षण हैं। राष्ट्र अथवा प्रादेशिक एकता पहला तत्त्व है। हिन्दू यह है जिसके मन में सिन्धु से ब्रह्मपुत्र तक और हिमालय से कन्याकुमारी तक के समस्त भौगोलिक प्रदेश के प्रति अनुराग है। जाति अथवा रक्त सम्बन्ध दूसरा तत्त्व है। इसमें केवल एक तथ्य पर बल दिया गया है कि शताब्दियों के ऐतिहासिक जीवन के परिणामस्वरूप हिन्दुओं में ऐसी जातिगत विशेषताएँ विकसित हो गई हैं जो जर्मनी, चीनियों अथवा इथियापियों से भिन्न हैं। हिन्दुत्व को निर्धारित करने वाला सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व हिन्दू रक्त है।

सावरकर के अनुसार हिन्दुत्व के तीन लक्षण 

सावरकर के अनुसार राष्ट्र या प्रादेशिक एकता पहला तत्त्व है। सावरकर के शब्दों में, "हिन्दू वह है जिसके मन में सिन्धु से ब्रह्मपुत्र तक और हिमालय से कन्याकुमारी तक के समस्त भौगोलिक प्रदेश के प्रति अनुराग है।" 
(i) सावरकर ने जाति या रक्त सम्बन्ध को हिन्दुत्व का दूसरा तत्त्व बताया है। सावरकर के शब्दों में, "हिन्दू यह है जिसकी धमनियों में सप्त सैन्धव क्षेत्र की जाति का रक्त बहता है।
(ii) सावरकर ने हिन्दुत्व का तीसरा लक्षण 'संस्कृति' को माना है। सावरकर के शब्दों में, "जिस व्यक्ति को हिन्दू सभ्यता और संस्कृति पर गर्व है यह हिन्दू है!"
(iii) सावरकर हिन्दुत्व की धारणा को हिन्दुवाद से भी व्यापक मानते हैं, हिन्दूवाद हिन्दुओं के धार्मिक पक्ष की इंगित करता है, जबकि हिन्दुत्व हिन्दुओं के समस्त जीवन को स्पष्ट करता है। 

सावरकर और हिन्दू-मुस्लिम एकता 

सावरकर हिन्दुत्व के प्रति बहुत आस्थावान थे लेकिन उनका किसी अन्य धर्म को लेकर कोई वैर भाव नहीं था। उन्होंने सदैव हिन्दू-मुस्लिम एकता का समर्थन किया। एकता के नाम पर वे नेताओं द्वारा अपनाई जा रही तुष्टीकरण की नीति के विरोधी थे। उनका मानना था कि उन्हें मुसलमानों के सहयोग की आवश्यकता है लेकिन किसी भी बात को लेकर ये विरोधियों की परवाह नहीं करते थे। सावरकर और अखण्ड हिन्दुस्तान सावरकर ने सदैव अखण्ड हिन्दुस्तान की कामना की। पाकिस्तान के निर्माण का उन्होंने सदैव विरोध किया सावरकर मजबूत और शक्तिशाली राष्ट्र चाहते थे ताकि भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में जीवित रखा जा सके क्योंकि विभिन्न देशों के बीच चल रहे उग्र संघर्ष से वे चिन्तित थे।

सावरकर और अहिंसा

सावरकर का गांधीजी की अहिंसा में विश्वास नहीं था। वे क्रान्तिकारी थे तथा वे अपने हक को उड़कर या छीनकर लेने में विश्वास रखते थे। वे राजनीति का हिन्दूकरण तथा हिन्दुओं का सैनिकीकरण करने पर जोर देते थे।

सावरकर के सपनों का भारत

सावरकर ने अपने सपनों के भारत का आदर्श चित्र प्रस्तुत करते हुए निम्नलिखित बातों को स्पष्ट किया है 
(i) भारत में सभी जाति, धर्म, नस्ल अथवा किसी भी भेदभाव के बिना सभी नागरिकों के समान अधिकार तथा कर्तव्य होंगे और सभी भारतीय राष्ट्रभक्त होंगे।
(ii) सभी अल्पसंख्यकों को भाषा, धर्म, संस्कृति आदि की सुरक्षा का अधिकार दिया जाएगा, किन्तु किसी को भी एक राज्य के अन्तर्गत नवीन राज्य का निर्माण करने तथा बहुजनों के अधिकारों (वैधानिक) का हनन करने का अधिकार नहीं दिया जाएगा।
(III) व्यक्ति की स्वतन्त्रता से सम्बन्धित मौलिक अधिकार सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त होंगे। 
(iv) बिना किसी जाति, विश्वास, धर्म के भेदभाव के बिना ही सभी व्यक्तियों के लिए नियम सामान्य होंगे।
(v) संयुक्त प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की जाएगी। 
(vi) प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य तथा निःशुल्क होगी।
(vii) नियुक्तियों का आधार केवल व्यक्ति की योग्यता ही होगी। 
(viii) भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने के लिए पृथक विद्यालयों की स्थापना करने का अधिकार होगा, उनकी धार्मिक तथा सांस्कृतिक संस्थाएँ इस कार्य के लिए सरकार द्वारा सहायता प्राप्त करेगी, किन्तु यह सहायता उनके द्वारा शासन को दिए कर के अनुपात में होंगी। 
(ix) अवशिष्ट शक्तियों केन्द्रीय सरकार के अन्तर्गत होंगी।
(x) राष्ट्रभाषा हिन्दी तथा संस्कृत देवभाषा होगी।



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  निति आयोग और वित्त आयोग यह एक गैर संवैधानिक निकाय है | National Institution for Transforming India( NITI Aayog )(राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) इसकी स्थापना 1 जनवरी 2015 को हुई | मुख्यालय – दिल्ली भारत सरकार का मुख्य थिंक-टैंक है| जिसे योजना आयोग के स्‍थान पर बनाया गया है इस आयोग का कार्य सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर सरकार को सलाह देने का है जिससे सरकार ऐसी योजना का निर्माण करे जो लोगों के हित में हो। निति आयोग को 2 Hubs में बाटा गया है 1) राज्यों और केंद्र के बीच में समन्वय स्थापित करना | 2) निति आयोग को बेहतर बनाने का काम | निति आयोग की संरचना : 1. भारत के प्रधानमंत्री- अध्यक्ष। 2. गवर्निंग काउंसिल में राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्रशासित प्रदेशों(जिन केन्द्रशासित प्रदेशो में विधानसभा है वहां के मुख्यमंत्री ) के उपराज्यपाल शामिल होंगे। 3. विशिष्ट मुद्दों और ऐसे आकस्मिक मामले, जिनका संबंध एक से अधिक राज्य या क्षेत्र से हो, को देखने के लिए क्षेत्रीय परिषद गठित की जाएंगी। ये परिषदें विशिष्ट कार्यकाल के लिए बनाई जाएंगी। भारत के प्रधानमंत्री के निर्देश पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठक हो

भारतीय निर्वाचन आयोग और परिसीमन आयोग |Election Commission of India and Delimitation Commission

  भारतीय निर्वाचन आयोग और परिसीमन आयोग परिसीमन आयोग भारत के उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 12 जुलाई 2002 को परिसीमन आयोग का गठन किया गया। यह आयोग वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करेगा। दिसंबर 2007 में इस आयोग ने नये परिसीमन की संसुतिति भारत सरकार को सौंप दी। लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस पर उच्चतम न्यायलय ने, एक दाखिल की गई रिट याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी की। फलस्वरूप कैविनेट की राजनीतिक समिति ने 4 जनवरी 2008 को इस आयोग की संस्तुतियों को लागु करने का निश्चय किया। 19 फरवरी 2008 को राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इस परिसीमन आयोग को लागू करने की स्वीकृति प्रदान की। परिसीमन •    संविधान के अनुच्छेद 82 के अधीन, प्रत्येक जनगणना के पश्चात् कानून द्वारा संसद एक परिसीमन अधिनियम को अधिनियमित करती है. •    परिसीमन आयोग परिसीमन अधिनियम के उपबंधों के अनुसार संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के सीमाओं को सीमांकित करता है. •    निर्वाचन क्षेत्रों का वर्तमान परिसीमन 1971 के जनगणना आँकड़ों पर आधारित

भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making

  भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making संविधान निर्माण की सर्वप्रथम मांग बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 में "स्वराज विधेयक" द्वारा की गई। 1916 में होमरूल लीग आन्दोलन चलाया गया।जिसमें घरेलू शासन सचांलन की मांग अग्रेजो से की गई। 1922 में गांधी जी ने संविधान सभा और संविधान निर्माण की मांग प्रबलतम तरीके से की और कहा- कि जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी भारतीय संविधान का निर्माण -भारतीय लोगों की इच्छाओं के अनुकुल किया जाएगा। अगस्त 1928 में नेहरू रिपोर्ट बनाई गई। जिसकी अध्यक्षता पं. मोतीलाल नेहरू ने की। इसका निर्माण बम्बई में किया गया। इसके अन्तर्गत ब्रिटीश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया। जिसमें मौलिक अधिकारों अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा अखिल भारतीय संघ एवम् डोमिनियम स्टेट के प्रावधान रखे गए। इसका सबसे प्रबलतम विरोध मुस्लिम लीग और रियासतों के राजाओं द्वारा किया गया। 1929 में जवाहर लाला नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का लाहौर सम्मेलन हुआ। जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई। 1936 में कांग्रेस का फैजलपुर सम्मेलन आयोजित किया गय

राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व |Directive Principles of State Policy

  36. परिभाषा- इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' का वही अर्थ है जो भाग 3 में है। 37. इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना- इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। 38. राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा- राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूंप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा। राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा। 39. राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व- राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनि

राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर/very important question and answer of polity

 राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्‍न – किस संविधान संशोधन अधिनियम ने राज्‍य के नीति निर्देशक तत्‍वों को मौलिक अधिकारों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली बनाया?  उत्‍तर – 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) ने प्रश्‍न – भारत के कौन से राष्‍ट्रपति ‘द्वितीय पसंद'(Second Preference) के मतों की गणना के फलस्‍वरूप अपना निश्चित कोटा प्राप्‍त कर निर्वाचित हुए?  उत्‍तर – वी. वी. गिरि प्रश्‍न – संविधान के किस अनुच्‍छेद के अंतर्गत वित्‍तीय आपातकाल की व्‍यवस्‍था है?  उत्‍तर – अनुच्‍छेद 360 प्रश्‍न – भारतीय संविधान कौन सी नागरिकता प्रदान करता है?  उत्‍तर – एकल नागरिकता प्रश्‍न – प्रथम पंचायती राज व्‍यवस्‍था का उद्घाटन पं. जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्‍टूबर, 1959 को किस स्‍थान पर किया था ? उत्‍तर – नागौर (राजस्‍थान) प्रश्‍न – लोकसभा का कोरम कुल सदस्‍य संख्‍या का कितना होता है?  उत्‍तर – 1/10 प्रश्‍न – पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन तथा पुनर्निरीक्षण किसके द्वारा किया जाताहै? उत्‍तर – राष्‍ट्रीय विकास परिषद प्रश्‍न – राज्‍य स्‍तर पर मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है?  उत्‍तर – राज्‍यपाल प्रश्‍न – नए

भारतीय संविधान के भाग |Part of Indian Constitution

  भाग 1  संघ और उसके क्षेत्र- अनुच्छेद 1-4 भाग 2  नागरिकता- अनुच्छेद 5-11 भाग 3  मूलभूत अधिकार- अनुच्छेद 12 - 35 भाग 4  राज्य के नीति निदेशक तत्व- अनुच्छेद 36 - 51 भाग 4 A  मूल कर्तव्य- अनुच्छेद 51A भाग 5  संघ- अनुच्छेद 52-151 भाग 6  राज्य- अनुच्छेद 152 -237 भाग 7  संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम,- 1956 द्वारा निरसित भाग 8  संघ राज्य क्षेत्र- अनुच्छेद 239-242 भाग 9  पंचायत - अनुच्छेद 243- 243O भाग 9A  नगर्पालिकाएं- अनुच्छेद 243P - 243ZG भाग 10  अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र- अनुच्छेद 244 - 244A भाग 11  संघ और राज्यों के बीच संबंध- अनुच्छेद 245 - 263 भाग 12  वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद -अनुच्छेद 264 -300A भाग 13  भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम- अनुच्छेद 301 - 307 भाग 14  संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं- अनुच्छेद 308 -323 भाग 14A  अधिकरण- अनुच्छेद 323A - 323B भाग 15 निर्वाचन- अनुच्छेद 324 -329A भाग 16  कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध संबंध- अनुच्छेद 330- 342 भाग 17  राजभाषा- अनुच्छेद 343- 351 भाग 18  आपात उपबंध अनुच्छेद- 352 - 360 भाग 19  प्रकीर्ण- अनुच्छेद 361 -367

संघीय कार्यपालिका एवं भारत का राष्ट्रपति | Federal Executive and President of India

  भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है. 1.  भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है. इसलिए राष्ट्रपति नामपत्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है. राष्ट्रपति a.  राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रधान होता है. b.  भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम व्यक्ति कहलाता है. 2.   राष्ट्रपति पद की योग्यता:  संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्‍ट्रपति होने योग्य तब होगा, जब वह: (a)  भारत का नागरिक हो. (b)  35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो. (c)  लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किए जाने योग्य हो. (d)  चुनाव के समय लाभ का पद धारण नहीं करता हो. नोट:  यदि व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर हो या संघ अथवा किसी राज्य की मंत्रिपरिषद का सदस्य हो, तो वह लाभ का पद नहीं माना जाएगा. 3.   राष्‍ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल:  इसमें राज्य सभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य रहते हैं. नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पांडिचेरी विधानसभा तथा दिल्ली की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य को भी सम्मिलित किया गया है. 4.  राष्ट्रप

PREAMBLE of India

 PREAMBLE WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political, LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship, EQUALITY of status and of opportunity: and to promote among them all  FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation,  IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.