लोकनायक जयप्रकाश नारायण/Lok Nayak Jayaprakash Narayan |
लोकनायक जयप्रकाश नारायण
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और अग्रणी नेता जयप्रकाश नारायण का जन्म बिहार के सारण जिले में 11 अक्तूबर, 1902 में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पटना में हुई। उन्होंने समाजशास्त्र में अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा के डिग्री प्राप्त की।जयप्रकाश नारायण ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कैलिफोर्निया जाने के पूर्व 1921 ई. में असहयोग आन्दोलन में भाग लेकर शुरू कर चुके थे। राजनीति के दूसरे पड़ाव में 1994 ई. में उन्होंने मीनू मसानी, अच्युत पटवर्द्धन के साथ मिलकर काँग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना की। इसके पूर्व असहयोग आन्दोलन के दौरान 1992 ई. में गांधीजी, नेहरू और अन्य बड़े नेताओं के जेल जाने के बाद उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में आन्दोलन का नेतृत्व किया था।
1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जब काँग्रेस के सभी कड़े राजनीतिक नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था। उस समय जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में रखा गया। जयप्रकाश नारायण ने जेल से फरार होकर और भूमिगत रहकर देश की जनता को अपना अद्भुत नेतृत्व प्रदान किया था। 1946 ई. में गांधीजी ने काँग्रेस की अध्यक्षता के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया किन्तु काँग्रेस कार्यकारिणी ने उसे स्वीकार नहीं किया जयप्रकाश नारायण 1954 ई. में प्रजा समाजवादी पार्टी से त्याग-पत्र देकर विनोबा भावे के साथ सर्वोदय आन्दोलन से जुड़ गए और अपने प्रभाव से नक्सलियों और डाकुओं का आत्मसमर्पण करवाया। जिससे भारत के समकालीन राजनीति के इतिहास में सम्पूर्ण क्रान्ति के कारण भी जाना जाता है। उनका मानना था कि सम्पूर्ण क्रान्ति नाम शब्द में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बैंकिंग, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रान्ति का सम्पूर्ण रूप है।
जयप्रकाश की प्रमुख रचनाएँ
जयप्रकाश नारायण की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं(i) व्हाई सोशलिज्म
(ii) टूवर्डस स्ट्रगल
(III) एप्ली फॉर द रिकन्स्ट्रक्शन ऑ द इण्डियन पॉलिटी
(iv) फ्रॉम सोशलिज्म टू सर्वोदय
(v) स्वराज फॉर द पीपल
(vi) द प्रिजन डायरी
(v) स्वराज फॉर द पीपल
(vi) द प्रिजन डायरी
(vii) प्रीवेतिक प्रॉब्लम ऑफ फ्री इण्डिया
पूर्ण रूप से सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान उन्होंने 5 जून, 1976 को श्रीमती इन्दिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था। जे पी सम्पूर्ण क्रान्ति ने केन्द्र का सत्ता से हाथ धुला दिया। इस क्रान्ति ने पूरे देश के वातावरण में अपना प्रभाव फैला दिया था। और इसी क्रान्ति का यह प्रभाव रहा कि 1976 के बाद की आने वाली राजनीति के लिए धुरंधर नेता निकलकर आए।
जयप्रकाश नारायण के जीवन यात्रा के ए आर प्रसाद ने चार चरणों में रेखांकित किया है
1. मार्क्सवादी
2. लोकतांत्रिक समाजवादी
3. गांधीवादी
पूर्ण रूप से सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान उन्होंने 5 जून, 1976 को श्रीमती इन्दिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था। जे पी सम्पूर्ण क्रान्ति ने केन्द्र का सत्ता से हाथ धुला दिया। इस क्रान्ति ने पूरे देश के वातावरण में अपना प्रभाव फैला दिया था। और इसी क्रान्ति का यह प्रभाव रहा कि 1976 के बाद की आने वाली राजनीति के लिए धुरंधर नेता निकलकर आए।
जयप्रकाश नारायण पर वैचारिक प्रभाव
जयप्रकाश नारायण के विचारों पर अनेक तत्त्वों का प्रभाव पड़ा। उन्होंने गीता से कर्म करो का सन्देश लिया। एम एन रॉय से लाकतन्त्र का सन्देश लिया तथा गांधीजी व विनोबा भावे से प्रभावित होकर सर्वोदय लिए कार्य किया।जयप्रकाश नारायण के जीवन यात्रा के ए आर प्रसाद ने चार चरणों में रेखांकित किया है
1. मार्क्सवादी
2. लोकतांत्रिक समाजवादी
3. गांधीवादी
4. समग्र क्रान्ति का चरण
जयप्रकाश नारायण के प्रमुख विचार
जयप्रकाश नारायण को गाँधीजी ने भारतीय समाजवाद का सबसे बड़ा विद्वान् कहा था जयप्रकाश नारायण के प्रमुख विचार निम्नलिखित हैंसमाजवाद सम्बन्धी विचार
सन् 1940 के रायगढ़ काँग्रेस में प्रस्तुत अपने प्रस्ताव में जयप्रकाश नारायण ने सामूहिक स्वामित्व एवं नियन्त्रण के सिद्धान्त की चर्चा की अपनी पुस्तक Towards Freedom में उन्होंने लिखा है कि इस देश का कानून जनता की स्वतन्त्र रूप से व्यक्त इच्छा पर आधारित होगा।समाजवाद सम्बन्धी विचारधारा के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं-
- उत्पादन के साधनों का समाजीकरण
- लोकतन्त्रीय समाजवाद पर बल
- ग्राम पुनर्गठन पर बल
- साध्य व साधनों की पवित्रता
- विश्व समुदाय की स्थापना पर बत
राज्य नागरिकों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। प्रत्येक नागरिक के पास समान अधिकार होंगे। जन्म तथा विशेषाधिकार सम्बन्धी सभी भेदभाव गिरा दिए जाएंगे। सामाजिक विरासत तथा राज्य द्वारा प्रदत्त सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया जाएगा।
ग्राम जीवन को पुनर्संगठित किया जाएगा तथा ग्रामों को जहाँ तक सम्भव हो सके स्वशासित एवं स्वावलम्बी इकाइयों में बदलना होगा। देश के भूमि कानून में भारी बदलाव करने की आवश्यकता है जिससे भूमि पर वास्तव में उस भूमि पर कार्य कर रहे किसानों का हो लेकिन साथ ही किसी किसान के पास अपनी आवश्यकता से अधिक भूमि न हो।
सम्पूर्ण क्रान्ति की अवधारणा
गाँधीजी का ही अनुसरण करते हुए जयप्रकाश ने भी सामाजिक परिवर्तन लाने की दिशा में कार्यरत व्यक्तियों को सर्वप्रथम अपने आचार-विचार में परिवर्तन लाने को कहा। 5 जून, 1975 को पटना स्थित गाँधी मैदान में लगभग पाँच लाख लोगों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए जयप्रकाश नारायण ने सरकार, बुरी अर्थव्यवस्था तथा जाति प्रथा के दोषों से समाज को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से एक क्रान्तिकारी कार्यक्रम का आरम्भ किया, जिसे सम्पूर्ण क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इसके लिए उन्होंने एक ठोस योजना का प्रारूप भी प्रस्तुत किया- विधानसभाओं को भंग करना
- सरकार के कार्य-कलापों को ठप्प करना
- विद्यालयों एवं महाविद्यालयों को एक वर्ष के लिए बन्द करना
- लोगों को संगठित करना तथा लोगों की प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संगठनों को चलाना।
- निर्धनों तथा दुर्बलों की समस्याओं का समाधान करना।
- समाज में नैतिक मूल्यों का प्रचार करना।
जयप्रकाश नारायण ने इस मुहिम को वर्ष 1942 के आन्दोलन की पुनरावृत्ति की संज्ञा दी। उनके अनुसार सम्पूर्ण क्रान्ति में समाज एवं व्यक्ति के जीवन का कोई भी पहलू अधूरा नहीं रहेगा। जयप्रकाश नारायण ने सात क्षेत्रों में क्रान्ति की एक सम्मिलित योजना प्रस्तुत की जिसका सुल क्रियान्वयन व्यक्ति के लिए सांस्कृतिक सृजनात्मकता, नैतिक स्वायत्तता तथा आध्यात्मिक स्वतन्त्रता सुनिश्चित करेगा। उनके अनुसार, सम्पूर्ण क्रान्ति मानव जीवन के सात विभिन्न क्षेत्रों को अपने में समाहित करती है
1. सामाजिक
1. सामाजिक
2. आर्थिक
3. राजनीतिक
4. सांस्कृतिक
5. वैचारिक अथवा बौद्धिक
6. आध्यात्मिक
3. राजनीतिक
4. सांस्कृतिक
5. वैचारिक अथवा बौद्धिक
6. आध्यात्मिक
जयप्रकाश के आधुनिक लोकतन्त्र सम्बन्धी विचार
जयप्रकाश का मानना था कि लोकतन्त्र की समस्या मूलतः एक नैतिक समस्या है। लोकतन्त्र में संविधान, शासन प्रणाली, दलों और चुनावों की विशिष्ट भूमिका है। लोकतन्त्र के सफल संचाल की कसीटियाँ हैं सत्य प्रियता, अहिंसावाद स्वतन्त्रता प्रेम कर्तव्य परायणता सहिष्णुता उत्तरदायित्व तथा समानता की भावना जयप्रकाश नारायण ने आधुनिक संसदीय पद्धति को अनुपयुक्त बताया है। उनके अनुसार संसदीय पद्धति दलगत राजनीति से ग्रसित है। इसके अतिरिक्त चुनावों में सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए शक्तिशाली दल धन तथा कपटपूर्ण साधनों का प्रयोग करते हैं।
जयप्रकाश नारायण ने भारत की एकता तथा अखण्डता के लिए राष्ट्रवाद का समर्थन किया है। उनके अनुसार भारतीय उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक एक साझा सांस्कृतिक धरोहर के सहभागी हैं। जयप्रकाश धर्मनिरपेक्षवाद का समर्थन करते ये तथा उन्होंने धर्मनिरपेक्षवाद को राष्ट्रवाद की अवधारणा का आधार माना है। जयप्रकाश नारायण के अनुसार धर्मनिरपेक्षतावाद की राज्य तथा सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में भी देखा जाना चाहिए। जयप्रकाश के अनुसार राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ही राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक नहीं है। राज्य के साथ लोगों के व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन में भी धर्मनिरपेक्षता के आदर्श को मान्यता मिलनी चाहिए। भारतीय एकता की प्रक्रिया मूलतः बौद्धिक एवं आध्यात्मिक चेतना की प्रक्रिया है।
राष्ट्रवाद सम्बन्धी विचार
जयप्रकाश नारायण ने भारत की एकता तथा अखण्डता के लिए राष्ट्रवाद का समर्थन किया है। उनके अनुसार भारतीय उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक एक साझा सांस्कृतिक धरोहर के सहभागी हैं। जयप्रकाश धर्मनिरपेक्षवाद का समर्थन करते ये तथा उन्होंने धर्मनिरपेक्षवाद को राष्ट्रवाद की अवधारणा का आधार माना है। जयप्रकाश नारायण के अनुसार धर्मनिरपेक्षतावाद की राज्य तथा सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में भी देखा जाना चाहिए। जयप्रकाश के अनुसार राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ही राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक नहीं है। राज्य के साथ लोगों के व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन में भी धर्मनिरपेक्षता के आदर्श को मान्यता मिलनी चाहिए। भारतीय एकता की प्रक्रिया मूलतः बौद्धिक एवं आध्यात्मिक चेतना की प्रक्रिया है।
जयप्रकाश परिवर्तन की कुंजी लोकशक्ति
जयप्रकाश कम्यूनिज्म से समाजवाद की ओर तथा समाजवाद से गांधीवाद की ओर तथा अन्ततः सर्वोदय तक आ पहुंचे। उनकी इच्छा थी कि एक ऐसे आधुनिक भारत की स्थापना करना जहाँ आर्थिक न्याय पर आधारित लोकतन्त्र का वर्चस्व हो ।जयप्रकाश नारायण का सर्वोदय दर्शन
जयप्रकाश गाँधीजी के सर्वोदय दर्शन में विश्वास करते थे। सर्वोदय का तात्पर्य सभी के कल्याण से है। सर्वोदय समाज के सभी वर्गों एवं सभी व्यक्तियों के उत्थान से सम्बन्धित होता है। सर्वोदय के पाँच आधार हैं
जाति रहित और वर्ग रहित समाज की स्थापना करना।
जाति रहित और वर्ग रहित समाज की स्थापना करना।
सार्वजनिक क्षेत्र में स्वच्छ और कुशल प्रशासन की स्थापना।
सामाजिक व्यवस्था का आधार विकेन्द्रीकरण
समस्त शक्ति जनता को प्राप्त होना।
अधिकारी वर्ग द्वारा अपने आपको जनता का स्वामी नहीं वरन् सेवक समझना जयप्रकाश के अनुसार, सर्वोदय सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के उत्कर्ष का एक प्रमुख साधन है। इसमें समाजवाद की स्थापना के अधिकांश कार्यक्रम सम्मिलित हैं। इसका आदर्श एक अहिंसारहित शोषित सहकारिता पर आधारित समाज की स्थापना करना है।
सामाजिक व्यवस्था का आधार विकेन्द्रीकरण
समस्त शक्ति जनता को प्राप्त होना।
अधिकारी वर्ग द्वारा अपने आपको जनता का स्वामी नहीं वरन् सेवक समझना जयप्रकाश के अनुसार, सर्वोदय सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के उत्कर्ष का एक प्रमुख साधन है। इसमें समाजवाद की स्थापना के अधिकांश कार्यक्रम सम्मिलित हैं। इसका आदर्श एक अहिंसारहित शोषित सहकारिता पर आधारित समाज की स्थापना करना है।
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