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जे.एस. मिल की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of J.S. Mill)

 

जे.एस. मिल (J.S. Mill)

जे.एस. मिल (J.S. Mill)


जे.एस. मिल ने राज्य की उत्पत्ति का कारण व्यक्ति की स्वार्थ सिद्धि न मानकर व्यक्ति की सकारात्मक इच्छा माना और राज्य की उत्पत्ति के उस यांत्रिक दृष्टिकोण को गलत माना जो व्यक्ति की इच्छा और उसके व्यक्तित्व की उपेक्षा करता है उसने स्वतंत्रता और प्रतिनिधि सरकार को इन आधारों पर न्यायसंगत ठहराने की चेष्टा की कि यह व्यक्ति के पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। उसने स्वतंत्रता को भी सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा। यद्यपि मिल ने वैथम की इस धारणा को अस्वीकार नहीं किया कि राज्य का हस्तक्षेप व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक है, तथापि उसने यह भी अवश्य अनुभव किया कि यदि व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत का विकास करना है तो कुछ आधारों पर राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक है। अपनी पुस्तक पॉलिटिकल इकॉनॉमी (Political Economy) में मिल ने लिखा है: "यह आवश्यक नहीं कि व्यक्तिगत सुख सामाजिक सुख की वृद्धि भी करे। समाज में सभी व्यक्ति अपना जीवन संघर्ष समानता के आधार पर आरंभ नहीं करते।" भूमि, उद्योग, ज्ञान आदि कुछ व्यक्तियों के एकाधिकार में होने के कारण और पूर्ण सामाजिक व्यवस्था का निर्माण एक अल्पमत को लाभ पहुंचाने के दृष्टिकोण से होने के कारण मिल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यदि समाज में व्यक्तिगत जीवन को जीने योग्य बनाना है और विकास के अवसर आम लोगों तक पहुँचाने हैं तो सामाजिक विषमताओं को समाप्त करने के लिए राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक होगा। अतः मिल ने अनिवार्य शिक्षा, उद्योगों से संबंधित कानून, काम करने के निश्चित करना, आदि कार्यो में राज्य के हस्तक्षेप को गलत नहीं माना मिल ने राज्य के हस्तक्षेप का नया मापदंड बनाया। उसके अनुसार व्यक्ति के कार्यों को दो भागों में बांटा जा सकता है: (1) वे कार्य जिनका प्रभाव स्वयं व्यक्ति पर ही पड़ता है तथा (i) वे कार्य जिनका प्रभाव समाज के अन्य लोगों पर पड़ता है। व्यक्ति के व्यवहार के जिस भाग का प्रभाव समाज के अन्य लोगों पर पड़ता है, केवल उसी के संदर्भ में मिल ने राज्य के हस्तक्षेप को उचित माना। जिन कार्यों का प्रभाव केवल व्यक्ति पर ही पड़ता है, उनके मामले में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। मिल ने राज्य के हस्तक्षेप के भी दो आधार बताएः (1) आधिकारिक हस्तक्षेप, और (i) ऐच्छिक हस्तक्षेप आधिकारिक हस्तक्षेप में राज्य व्यक्ति को कुछ कार्य करने से रोक सकता है, कुछ कार्य करने के लिए बाध्य कर सकता है, या कुछ कार्य बिना आज्ञा के न करने के लिए कह सकता है। सुरक्षा, व्यवस्था कर लगाना, भूमि और संपत्ति से संबंधित कानून, न्याय आदि कार्य इस श्रेणी में आ सकते हैं। इसी के साथ-साथ मिल के अनुसार एक हस्तक्षेप दूसरे प्रकार का है जो कि आधिकारिक नहीं होता, जिसमें राज्य आदेश नहीं देता था आदेश उल्लंघन करने वालों को सजा नहीं देता परंतु जिस हस्तक्षेप का लाभ समाज का कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार हटा सकता है। उदाहरण के तौर पर ये कार्य हो सकते हैं व्यक्ति को सलाह देने का कार्य, सूचनाएँ प्रदान करने का कार्य, व्यक्ति की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं बनाई गई संस्थाओं के साथ-साथ राज्य द्वारा भी वैसी संस्थाओं का निर्माण किया जाना जिनका लाभ समाज का कोई भी व्यक्ति चाह तो उठा सकता है, जैसे समाज में निजी स्कूल के साथ-साथ राज्य द्वारा स्कूलों की स्थापना, निजी बैंकों के साथ-साथ राज्य द्वारा बैंकों का निर्माण, निजी डाकघर के साथ-साथ राज्य द्वारा भी डाक-तार व्यवस्था की स्थापना आदि। इसी प्रकार राज्य कुछ समझीतों से व्यक्ति को सदा के लिए मुक्त कर सकता है जैसे कि विवाह या गुलामी के समझौते। वंशानुगत संपत्ति के परिणामस्वरूप भारी सामाजिक असमानताओं को नियंत्रित करने के लिए भी राज्य द्वारा कदम उठाए जा सकते हैं।

संक्षेप में, मिल ने राज्य के कार्यों को आधिकारिक और ऐच्छिक कार्यों में बांटा और राज्य और व्यक्ति के विकास में योगदान देने वाली एक सकारात्मक संस्था माना। परंतु उदारवाद को व्यक्तिवादी प्रवृत्ति को समाप्त करने में मिल बहुत आगे नहीं बढ़ सका। आत्म-हित और सामाजिक हित संबंधी कार्यों का अंतर तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। व्यक्ति और समाज के परस्पर विरोध पर मिल पूरी तरह से विजय नहीं पा सका जो कि मिल की विचाधारा की एक बहुत बड़ी कमजोरी रही।