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मैकियावेली /Machiavelli/ यूरोपीय और आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचार

मैकियावेली /Machiavelli/ यूरोपीय और आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचार


मैकियावेली (Machiavelli)

मैकाइवली (मैकाइवर) ने सामाजिक आधारों को राजनीति के मूल में मानते हुए सामाजिक इकाईयों के आधार पर राज्य की उत्पत्ति का सिद्धान्त दिया है।
मैकाइवर के अनुसार नेतृत्व का प्रदर्शन तथा सत्ता का प्रयोग वहाँ होता है जहाँ समाज होता है। मैकाइवर का विचार है कि इस समाज के वातावरण ने प्रत्येक परिवार से 'पिता' को तथा परिवारों से 'पिताओं' और 'मुखियाओं' को जन्म दिया। परिवार का पिता परिवार का तथा परिवारों के बहुपिता परिवारों से संबंधित विषयों का शासन प्रबंध चलाने लग गए। पिताओं तथा 'मुखियाओं' में से किसी एक विषय 'पिता' अथवा 'मुखिया' ने अपने शक्तिशाली तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व के बल से 'सरदार' का रूप धारण कर लिया। यहीं नेतृत्व का आरंभ था। इस तरह सरदार के कार्य भिन्न प्रकार के होने के कारण उसने समूह के परिवारों के अन्य अनेक 'पिताओं' से अपनी अलग पहचान बना ली। उसकी स्थिति अन्य 'मुखियाओं' की अपेक्षा अधिक गौरवपूर्ण बन गई। धीरे-धीरे उसके विशेषाधिकारों को परिभाषित कर दिया गया। 'नेता' अथवा 'सरदार' का पद जब वंशानुगत बन गया तो 'सरदार' का परिवार भी अन्य परिवारों से अलग समझा जाने लगा। 'सरदार' की स्थिति 'राजा' जैसी बन गई, उसका परिवार शासक परिवार बन गया। जब और जहाँ कहीं भी सरदार की सत्ता सरकार बनी तथा रीति-रिवाज ने कानून का स्थान प्राप्त किया, यहाँ से राज्य का उद्गम हुआ कहा जा सकता है।

प्राथमिक समाज के छोटे तथा अलग-अलग समूहों और कबीलों में जहां कहीं भी 'सरदार' का उद्गम हुआ, राज्य का अस्तित्व वहीं से आरंभ हो गया। अनुशासन तथा व्यवस्था स्थापित करने के लिए 'नेता' अथवा कबीले के सरदार के लिए यह आवश्यक हो गया कि वह शांति भंग करने वालों तथा अनुशासनहीन लोगों को दंड दे। सामाजिक विकास के इस चरण में दंड की व्यवस्था रीति-रिवाज को बचाने के लिए न होकर समूह, कबीले, समुदाय अथवा समाज को बचाने के लिए की गई। जब दंड की व्यवस्था बदला लेने की भावना से हटकर सुरक्षा के उद्देश्य से गई तब से राज्य में सत्ता का उद्भव हुआ। दंड देने की व्यवस्था का आधार न्याय स्थापना के विचार से प्रेरित हुआ। प्रारम्भिक समाज का चित्रण करते हुए मैकाबइर कहता है कि किसी भी ऐसे वातावरण में जहाँ, अनुशासनहीनता असुरक्षा, अपव्ययिता तथा कभी भी समाप्त न होने वाले तथा विरोध होंगे, राज्य का अस्तित्व आवश्यक हो जाएगा। ऐसे वातावरण में किसी 'नेता' की विशेष भूमिका, सत्ता का क्रमिक विकास, विभिन्न अधिकारियों का उद्भव, सत्ताओं की अटूट श्रृंखला आदि 'स्वाभाविक' तथा अनिवार्य हो जाएंगे... सर्वोच्च तथा अधीनस्थ का भेद तथा निम्नतर का उच्चतर के प्रभुत्व को स्वीकार करने विचार राज्य का आरंभ था।

अन्य समूहों तथा कबीलों पर अपने प्रभुत्व को स्थापित करने का एकमात्र साधन युद्ध था युद्ध तथा विजय ने राज्य के आकार को ही नहीं बढ़ाया, बल्कि इनसे राज्यों का एकीकरण भी हुआ। युद्ध के कारण, अनुशासन स्थापित होता है जो शांति के अनुशासन से भी अधिक दृढ़ होता है। युद्ध नेता के प्रभुत्व को स्थापित करता है तथा बंधुत्व-समूह मिलकर एक हो जाते हैं जब कि युद्ध के फलस्वरूप कोई विजेता अपने क्षेत्राधिकार में वृद्धि भी कर लेता है। अतः यह स्पष्ट है कि बाहरी दृष्टि से प्रत्येक समूह तथा कबीले का अन्य समूहों तथा कबीलों से लड़ना एक अनिवार्यता के साथ-साथ स्वाभाविकता भी थी। समूहों तथा कबीलों की आपसी लड़ाइयों ने समूहों तथा कबीलों के सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक विस्तार में काफी सहायता की। मैकाइवर के अनुसार कानून, सत्ता, विभिन्न अधिकारियों की व्यवस्था, दंड देने का राजनीतिक आधार, समाज का अनेक

प्रकार की श्रेणियों में बंट जाना आदि राज्य की उत्पत्ति में प्रमुख तत्व रहे हैं। मैकाइवर ने यह स्पष्ट किया है कि आधुनिक राज्य शुरू के राज्यों से बहुत भिन्न है। आरंभिक राज्य प्रत्येक दृष्टि से आधुनिक राज्य की अपेक्षा सरल था तथा इस संदर्भ में राज्य अपनी सरलता की स्थिति से जटिलता की ओर बढ़ा है। आरंभिक राज्य अपने उद्देश्यों तथा शक्तियों की दृष्टि से अति सीमित थे। प्रतिरक्षा, अपराध तथा न्याय से संबंधित विषयों को छोड़कर, आरंभिक राज्य समस्त समुदाय के हितों का उतना ध्यान नहीं रखते थे जितना शक्तिशाली अल्पसंख्यकों के अधिकारों का रखते थे। उस समय के शासक नेता 'देव-तुल्य', 'योद्धा' अथवा उनके उत्तराधिकारी होते थे जो सत्ता का प्रयोग कानून निर्माताओं के रूप में न करके इस आधार पर करते थे कि उनका संबंध समाज के शक्तिशाली वर्ग से था। समय के साथ-साथ राज्यों के उद्देश्य बदलते रहे, शक्तियों बढ़ती रही, आकार में विस्तार आता गया तथा उसके आधार का रूप निखरता रहा। एक बार जहाँ कहीं भी शासक तथा उसकी सत्ता अस्तित्व में आई, सामाजिक शृंखलाओं का क्रम बन गया, विभिन्न अधिकारियों की आवश्यकता महसूस की गई, उच्चतर तथा निम्नतर का भेद स्पष्ट हुआ, तब राज्य के अस्तित्व में कोई संदेह शेष न रहा। एक बार अस्तित्व में आ जाने के बाद, राज्य के विकास में अन्य अनेक तत्त्वों ने अपनी भूमिका निभाई। शासकों ने बल-प्रदर्शन की भावना, अन्य शासकों पर प्रभुत्व स्थापित करने की लालसा, आपसी लड़ाइयाँ, क्षेत्र विस्तार की नीति आदि ऐसे अन्य अनेक तत्त्व थे जिनके कारण आरंभिक राज्यों में राज्य-समूह भी बने, संघियों भी हुई, युद्ध भी हुए और परिणामस्वरूप 'राज्य' का विकास हुआ। मैकाइवर का मत है कि राज्य के विस्तार में विजय तथा प्रभुत्व स्थापित करने की भावना ने एक पगडंडी का काम किया है।

संक्षेप में, मैकाइवर के अनुसार राज्य की उत्पत्ति केवल युद्ध, विजय अथवा शोषण के कारण न होकर मानवीय स्वाभाविकता के फलस्वरूप हुई है। मैकाइवर यह नहीं मानता कि राज्य एक शोषण का साधन है और भविष्य में किसी समय यह स्पधन लुप्त हो जाएगा। मैकाइवर की दृष्टि में राज्य का वर्तमान जटिल रूप उसके आरंभिक सरल रूप का विस्तार है, और राज्य का आरंभिक रूप स्वयं किन्हीं विशेष कारणों का परिणाम या जिनमें बंधुत्व-समूह, रीति-रिवाज, शासक तथा उसकी सत्ता का उद्गम, बल तथा शक्ति की भूमिका आदि उल्लेखनीय हैं। राज्य की उत्पत्ति उसमें निहित विशेष लक्षणों के उद्गम से जुड़ी हुई है।