ग्राम्शी (Gramsci)
ग्राम्शी 20वीं सदी में परम्पराबादी मार्क्सवादी के विशिष्ट सिद्धान्तकार थे। लिनोवस्की के अनुसार लेनिन के बाद मार्क्सवादी विचारकों में ग्राम्शी सबसे स्वाभाविक क्रान्तिकारी तथा साम्यवादी सिद्धान्तकार कहे जा सकते है।
ग्राम्शी ने 20वीं सदी के अन्य मार्क्सवादी सिद्धान्तकारों की तरह इस प्रश्न पर विचार किया पूँजीवादी का अन्त क्यों नहीं हो सका तथा पूंजीवाद किन कारकों से अग्रसरित होता रहा है। क्रोश प्रत्यक्षवाद के विरोधी थे तथा उन्होंने मार्क्स से भिन्न इतिहास के निर्धारण में व्यक्तिनिष्ठ कारकों की भूमिका को माना था। क्रोश प्रत्यक्षवाद के विरोधी थे तथा उन्होंने मार्क्स से भिन्न इतिहास के निर्धारण में व्यक्तिनिष्ठ कारकों की भूमिका को माना था। क्रोश के अनुसार इतिहास का अध्ययन मनुष्य की सभी गतिविधियों अर्थात् सामाजिक-सांस्कृतिक नैतिकता से सम्बन्धित अध्ययन के आधार पर ही किया जा सकता है। क्रोश के प्रभाव में ही ग्राम्शी ने नागरिक समाज तथा उसमें बुद्धिजीवी वर्ग की भूमिका को स्वीकारा है।
ग्राम्शी ने मार्क्स के इस विचार का समर्थन किया कि राज्य में दमन शक्ति होती है परन्तु उन्होंने यह भी स्थापित करने की कोशिश की है कि बल के अतिरिक्त राज्य तथा पूँजीपति विचारों के आधार पर सहमति की स्थापना कर भी सर्वहारा का निरीक्षण करते हैं।
ग्राम्शी के अनुसार पूँजीवादी वर्ग का विश्वास सिर्फ राज्य की दमनात्मक शक्ति में नहीं होता इसलिए वह अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक सुरक्षा कवच के रूप में नागरिक समाज की स्थापना करती है। नागरिक समाज में भिन्न राजनैतिक समाज है तथा इसका अभिप्राय ऐसे लोग संस्थाओं से है जिनमें बल की प्रधानता होती है तथा सेना, पुलिस, न्यायालय इत्यादि इसके उदाहरण हैं।
ग्राम्शी के अनुसार नागरिक समाज में बुद्धिजीवी वर्ग की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है जो अपने रचनात्मक व नूतन विचारों के आधार पर आधिपत्य की स्थापना करते हैं। नागरिक समाज अपने विचारों को इस तरह प्रस्तुत करता है कि सर्वहारा इसे तटस्थ स्वाभाविक मान लेती है तथा इन विचारों को वास्तविक मानकर राज्य की नीतियों का अनुसरण सहमति व सहजता से करती है। इनके अनुसार मध्ययुग में चर्च की सत्ता के द्वारा बुद्धिजीवियों ने सामन्तवादी हितों का संरक्षण किया।
ग्राम्शी के अनुसार जिस राज्य में नागरिक समाज की अवधारणा कमजोर थी वहां प्रत्यक्ष शोषण के कारण क्रान्ति लाई जा सकी तथा रूस इसका एक उदाहरण है परन्तु वैसे समाजों में जहां लोकतान्त्रिक आधारों पर इस तरह के नागरिक समाज की स्थापना हो चुकी है वहां सर्वहारा दोहरी रणनीति से ही सृष्टि कर सकता है।
क्रान्ति के स्तर
ग्राम्सी ने इसे दोहरी क्रान्ति के स्तरों पर देखा है1. प्रत्यक्ष आक्रमण
2. ग्राम्शी आक्रमण
ग्राम्शी ने अपने आक्रमण को चार ऑफ मूवमेन्ट तथा दूसरे को बार ऑफ पॉजीशन की संज्ञा दी है। ग्राम्शी ने अपरिपक्व व अविकसित राज्यों में पहले बार ऑफ मूवमेण्ट की अनुशंसा की है जबकि विकसित पूंजीवादी राज्यों के लिए ग्राम्शी ने दूसरे को उपयुक्त माना है।
ग्राम्शी के अनुसार बार ऑफ पॉजीशन के लिए यह आवश्यक है कि सर्वहारा अपने बुद्धिजीवियों का निर्माण करें। इन बुद्धिजीवियों के कारण ही श्रमिक वर्ग की संचेतना का विकास संभव है। ग्राम्शी ने सर्वहारा के बुद्धिजीवियों को अवयवी बुद्धिजीवी, उद्भवकारी की संज्ञा दी हैं ग्राम्शी की यह मान्यता थी कि साम्यवादी आन्दोलन की मूल राजनीति पूँजीवादी राज्य की संस्थाओं को छिन्न-भिन्न करने की बजाए उसे मूल्यों व मान्यताओं के अन्त में पारम्परिक आधिपत्य के अन्त के प्रति समर्पित होना चाहिए।
सर्वहारा के बुद्धिजीवियों की उत्पत्ति पर विचार करते हुए ग्राम्शी ने उद्योग परिषद् या फैक्ट्री परिषद् में भी विचार प्रतिपादित किए है। ग्राम्शी की मान्यता थी कि विभिन्न फैक्ट्रियों के भिन्न-भिन्न विभागों के द्वारा अपने प्रतिनिधि का चयन किया जाना चाहिए तथा इन प्रतिनिधियों के द्वारा ही एक कार्यकारी परिषद् की स्थापना की जा सकती है। ग्राम्शी ने इन परिषदों को आन्तरिक आयोगों की तरह देखा जिनका तात्कालिक कार्य पूंजीपति की शक्तियों का सीमन तथा दीर्घकालिक कार्य सर्वहारा की शक्ति की स्थापना थी। ग्राम्शी ने लेनिन की दलवादी अवधारणाओं की आलोचना की है। ग्राम्शी के अनुसार लोकतान्त्रिक केन्द्र वाद पर आधारित दल विमर्शी संस्थाओं की अपेक्षा दमनात्मक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मिश्रित नैतिक लक्षणों की प्राप्ति के लिए सांस्कृतिक सहमति को ग्राम्शी ने आवश्यक माना ग्राम्शी तकनीक व उत्पादन विरोधी नहीं थे उन्होंने समाजवादी व्यवस्था के विकास के लिए इन्हें महत्त्वपूर्ण माना।
ग्राम्शी ने अपने आक्रमण को चार ऑफ मूवमेन्ट तथा दूसरे को बार ऑफ पॉजीशन की संज्ञा दी है। ग्राम्शी ने अपरिपक्व व अविकसित राज्यों में पहले बार ऑफ मूवमेण्ट की अनुशंसा की है जबकि विकसित पूंजीवादी राज्यों के लिए ग्राम्शी ने दूसरे को उपयुक्त माना है।
ग्राम्शी के अनुसार बार ऑफ पॉजीशन के लिए यह आवश्यक है कि सर्वहारा अपने बुद्धिजीवियों का निर्माण करें। इन बुद्धिजीवियों के कारण ही श्रमिक वर्ग की संचेतना का विकास संभव है। ग्राम्शी ने सर्वहारा के बुद्धिजीवियों को अवयवी बुद्धिजीवी, उद्भवकारी की संज्ञा दी हैं ग्राम्शी की यह मान्यता थी कि साम्यवादी आन्दोलन की मूल राजनीति पूँजीवादी राज्य की संस्थाओं को छिन्न-भिन्न करने की बजाए उसे मूल्यों व मान्यताओं के अन्त में पारम्परिक आधिपत्य के अन्त के प्रति समर्पित होना चाहिए।
सर्वहारा के बुद्धिजीवियों की उत्पत्ति पर विचार करते हुए ग्राम्शी ने उद्योग परिषद् या फैक्ट्री परिषद् में भी विचार प्रतिपादित किए है। ग्राम्शी की मान्यता थी कि विभिन्न फैक्ट्रियों के भिन्न-भिन्न विभागों के द्वारा अपने प्रतिनिधि का चयन किया जाना चाहिए तथा इन प्रतिनिधियों के द्वारा ही एक कार्यकारी परिषद् की स्थापना की जा सकती है। ग्राम्शी ने इन परिषदों को आन्तरिक आयोगों की तरह देखा जिनका तात्कालिक कार्य पूंजीपति की शक्तियों का सीमन तथा दीर्घकालिक कार्य सर्वहारा की शक्ति की स्थापना थी। ग्राम्शी ने लेनिन की दलवादी अवधारणाओं की आलोचना की है। ग्राम्शी के अनुसार लोकतान्त्रिक केन्द्र वाद पर आधारित दल विमर्शी संस्थाओं की अपेक्षा दमनात्मक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मिश्रित नैतिक लक्षणों की प्राप्ति के लिए सांस्कृतिक सहमति को ग्राम्शी ने आवश्यक माना ग्राम्शी तकनीक व उत्पादन विरोधी नहीं थे उन्होंने समाजवादी व्यवस्था के विकास के लिए इन्हें महत्त्वपूर्ण माना।
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