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माओ त्से तुंग की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Mao-tse Tung)

माओ त्से तुंग (Mao-tse Tung)


मार्क्सवाद के व्याख्याकारों में विचारक और राजमर्मज्ञ दोनों तरह के लोग आते हैं। लेनिन और स्टालिन के बाद जिन राजमर्मज्ञों ने मार्क्सवादी परंपरा को आगे बढ़ाया उनमें चीन के माओ त्से-तुंग का नाम अग्रणी है। माओ ने चीन में साम्यवादी आंदोलन का नेतृत्त्व संभालकर 1949 में वहाँ समाजवादी राज्य की स्थापना की।

    माओ त्से तुंग ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांतों में अपना दृढ विश्वास करते हुए उसके कार्यान्वयन में कुछ परिवर्तनों का सुझाव दिया। माओ ने मार्क्स और एंगेल्स के कुछ सिद्धांतों को भी नई व्यवस्था दी। मार्क्स और एंगेल्स का विश्वास या कि 'सर्वहारा का अधिनायकतंत्र' एक अल्पस्थायी व्याख्या होगी क्योंकि इसकी स्थापना के बाद राज्य के लुप्त होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। परंतु माओ ने यह अनुभव किया कि जब सर्वहारा वर्ग सत्ता संभाल लेगा तब भी वर्ग संघर्ष एक ऐसे वस्तुपरक नियम के रूप में जारी रहेगा जिस पर मनुष्य का वश नहीं होगा, केवल उसका रूप बदल जाएगा माओ ने यह तर्क दिया कि आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने पर भी समाजवादी व्यवस्था अपने आप सुदृढ़ नहीं हो सकेगी, अर्थात् उत्पादन के धनों का समाजीकरण हो जाना सच्चे अर्थों में समाजवाद की स्थापना के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए राजनीतिक और वैचारिक मोचों पर भी समाजवादी क्रांति जरूरी होगी, और उसमें लंबा समय लगेगा। इसके लिए कुछ दशक पर्याप्त नहीं होंगे, बल्कि शताब्दियां लग जाएंगी माओ ने लेनिन और स्टालिन से मतभेद प्रकट करते हुए यह मत रखा कि सर्वहारा और बुर्जुआ का वर्ग संघर्ष समाजवादी अवस्था में भी लगातार चलता रहेगा। यह संघर्ष राजनीतिक, आर्थिक, वैचारिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों में जारी रहेगा। यह लंबा चलने वाला, बार-बार पैदा होने वाला, दारुण और जटिल संघर्ष है। समुद्र की लहरों की तरह यह कभी बहुत उग्र हो जाता है, कभी कुछ शांत हो जाता है। इस सारी तर्कशृंखला का तात्पर्य यह है कि सर्वहारा का अधिनायकतंत्र अनिश्चित काल तक बना रहेगा, और तब तक सर्वहारा की अग्रपंक्ति के रूप में साम्यवादी दल को भी बने रहना है। माओ ने अपनी प्रसिद्ध कृति ऑन कंट्राडिक्शन्स के अंतर्गत यह दर्शाया है कि सामाजिक स्थिति में अंतर्विरोध लगातार बने रहते हैं। साम्यवादी राज्य स्थापित हो जाने के बाद ये अंतर्विरोध लुप्त नहीं हो जाते बल्कि नया रूप धारण कर लेते हैं। ये अंतर्विरोध प्रगतिवाद और रूढ़िवाद के बीच उन्नत और पिछड़े हुए के बीच, सकारात्मक और नकारात्मक के बीच यहाँ तक कि उत्पादक शक्तियों और उत्पादन की हालतों के बीच बना रहता है। एक अंतर्विरोध दूसरे को जन्म देता है और जब पुराने अंतर्विरोध सुलझ जाते हैं तो नए पैदा हो जाते हैं। इन अंतर्विरोधों के प्रतिकार के लिए राज्य को अधिकाधिक शक्तियाँ अपने हाथों में लेनी होंगी। इस तरह जहाँ मार्क्सवाद-लेनिनवाद के प्रवर्तक यह सोचते थे कि क्रांति एक त्वरित घटना होगी जो रातों-रात समाज का कायाकल्प कर देगी, या फिर इसमें कुछ ही वर्ष लगेंगे, वहाँ माओ के विचार से समाजवादी पुनर्निर्माण इतनी लंबी प्रक्रिया है कि देश को निरंतर क्रांति से गुजरना होगा। इस माओ का 'निरंतर क्रांति का सिद्धांत' (doctrine of permanent revolution) कहा जाता है।