लेनिन (Lenin)
मार्क्सवाद के सिद्धांतों को सबसे पहले व्यवहारिक रूप देने का श्रेय सोवियत रूस की बोल्शेविक क्रांति (1917-1923) के कर्णधार लेनिन (1870-1924) को है। स्वयं लेनिन ने मार्क्स की नई व्याख्या देकर उसे व्यावहारिक दर्शन के रूप में परिणत कर दिया।मार्क्स ने अपना चिंतन उस दौर में प्रस्तुत किया था जब औद्योगिक क्रांति के बहुत बुरे प्रभाव दिखाई पड़ने लगे थे, और मजदूरों को अपनी दुर्दशा से उबरने की कोई आशा दिखाई नहीं देती थी। अतः उसे यह विश्वास हो गया था कि सर्वहारा अपने कष्टों से तब तक मुक्त नहीं हो सकते जब तक वे संगठित होकर संपूर्ण पूंजीवादी व्यवस्था को धराशायी नहीं कर देते। मार्क्स को यह आशा थी कि विश्व के सर्वहारा शीघ्र ही अपने सामान्य आर्थिक हित को समझकर संगठित हो जाएंगे और पूंजीपतियों के विरुद्ध क्रांति कर देंगे। लेनिन ने मार्क्स से प्रेरणा लेकर क्रांति का व्यावहारिक कार्यक्रम बनाया और उसे सायंक बनाने के लिए मार्क्सवाद की नई व्याख्या प्रस्तुत की। संक्षेप में, लेनिन ने मार्क्स की मान्यताओं में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए जो निम्नलिखित हैं:
- क्रांति का स्वरूप (Nature of the Revolution) मार्क्स का विचार था कि पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत केवल • मालिक और मजदूर रह जाएंगे और मजदूर वर्ग ही पूंजीपति मालिकों के विरुद्ध क्रांति करेगा। लेनिन के देश रूस में औद्योगिक क्रांति चरमोत्कर्ष पर नहीं पहुंची थी वहाँ जमींदार किसान और मालिक-मजदूर का संघर्ष साथ-साथ चल रहा था। अतः लेनिन ने यह मत प्रस्तुत किया कि क्रांतिकारी की भूमिका सैनिक, किसान और -मजदूर मिलकर संभालेंगे और यह क्रांति निरंकुश शासन, जमींदारी और पूंजीपतियों के विरुद्ध होगी।
- क्रांति का नेतृत्त्व (Leadership of the Revolution)-मार्क्स का विचार था कि वर्ग चेतना (class conscious ness) शीघ्र ही संपूर्ण सर्वहारा वर्ग में व्याप्त हो जाएगी और यह संपूर्ण वर्ग संगठित होकर क्रांतिकारी की भूमिका संभाल लेगा। परंतु लेनिन ने देखा कि संपूर्ण शोषिक वर्ग को सचेत होने में देर लगेगी। अतः उसने यह मान्यता रखी कि बुद्धिजीवियों का समूह दलित वर्ग को इस दिशा में नेतृत्व प्रदान करेगा, और यही समूह फ्रांति की ज्वाला को प्रज्वलित करेगा। इस तरह उसने एक विशिष्ट वर्ग (elite group) को क्रांति की बागडोर संभालने का अधिकार दे दिया। व्यवहार के स्तर पर यह प्रवर वर्ग रूस का साम्यवादी दल या जिसका संस्थापक स्वयं लेनिन था।
- विचारधारा का उपयोग (Use of Ideology)-मार्क्स ने यह विचार रखा था कि राज्य में शासक वर्ग अपने आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए शासितों का सम्मान प्राप्त करने की कोशिश करता है। इसके लिए वह ऐसे विचारों का प्रचार करता है जिससे शासित अपने शासकों को सच्चा हितैषी समझकर उनके इशारों पर चलते रहें। इन्हीं विचारों के समुच्चय को मतवाद कहा जाता है। अतः मतबाद शासक वर्ग की विशेषता है। सर्वहारा का कोई मतवाद नहीं होता क्योंकि वह सत्तारूढ़ नहीं है। जब वह क्रांति कर के सत्ता संभाल लेगा तब वह वर्ग-भेद को ही मिटा देगा। अतः उसे 'मतवाद' की जरूरत भी नहीं रह जाएगी। परंतु लेनिन ने सर्वहारा या शोषिक वर्ग के लिए भी मतवाद की आवश्यकता अनुभव करते हुए यह विचार प्रस्तुत किया कि मतवाद वर्ग हितों की उपज है, अतः यह दो तरह का होता है: बुर्जुआ मतवाद और समाजवादी मतबाद उसका विचार था कि वर्ग-चेतना के प्रसार के लिए समाजवादी मतवाद का प्रचार जरूरी है। अतः बौद्धिक प्रवर-वर्ग (intellectual elite) को संपूर्ण शोषित वर्ग का नेतृत्व संभालकर 'समाजवादी मतवाद' को उनके आंदोलन के साथ जोड़ देना चाहिए।
- अल्पविकसित देशों की भूमिका (Role of Underdeveloped Countries)-लेनिन ने मार्क्स की वर्ग-भेद की संकल्पना में संशोधन करते हुए यह मत प्रस्तुत किया कि अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में साम्राज्यवाद (imperialism), पूंजीवाद (capitalism) का प्रतिनिधित्व करता है, और अल्पविकसित देशों का अपने शोषण का शिकार बनाता है। उन्नत देशों के पूंजीपति अपने-अपने देश की मंडियों में खूब मुनाफा कमा लेने के बाद अल्पविकसित देशों पर अपनी गिद्ध दृष्टि डालते हैं जहाँ उन्हें कच्चा माल कोड़ियों के मोल मिल जाता है और तैयार माल मुंहमांगे दामों पर बिक जाता है। अतः इस शोषण-चक्र को समाप्त करने के लिए लेनिन ने सुझाव दिया कि 20वीं शताब्दी के विश्व में अल्पविकसित देशों को सर्वहारा की भूमिका संभाल कर साम्राज्यवादी देशों के विरुद्ध क्रांति करनी होगी।
स्वयं लेनिन ने रूस में बोल्शेविक क्रांति की बागडोर संभालकर मार्क्सवाद को व्यावहारिक कार्यक्रम में परिणत कर दिया। मार्क्सवाद के विकास में लेनिन का योगदान इतना महत्त्वपूर्ण है कि सोवियत रूस तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में मार्क्सवाद लेनिनवाद' (Marxism-Leninism) को आधिकाधिक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया जाता है।
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