मार्क्स (Marx )
मार्क्स के अनुसार आधुनिक राज्य समाज (civil society) जो व्यक्तिवाद पर आधारित है-एक सामाजिक प्राणी के रूप में व्यक्ति के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है। व्यक्तिवाद से अभिप्राय एक ऐसे व्यक्ति के प्रतिमान से है जिसके सामाजिक संबंध उसके निजी स्वार्थों को पूरा करने के साधन मात्र हैं, जो व्यक्तिगत अस्तित्व को व्यक्ति का सर्वोच्च उद्देश्य मानता है और जो समाज को व्यक्ति के संदर्भ में बाह्य और औपचारिक वस्तु मानता है। आधुनिक नागरिक समाज व्यक्तिवाद का साकार रूप है जहाँ व्यक्ति का पृथक् अस्तित्व परम साध्य हैं और सारे क्रियाकलाप उसके साधन है। मार्क्स के अनुसार इस प्रकार का समाज एक सामाजिक व्यक्ति का प्रतिमान प्रस्तुत नहीं कर सकता।मार्क्स के अनुसार जो समाज व्यक्ति के इस अकेलेपन, (atomization) पर विजय पा लेगा, वही सच्चा लोकतंत्र होगा ।" 'लोकतंत्र 'व्यक्ति के सामुदायिक सार-तत्त्व' (man's.communist essence) पर आधारित है सच्चा लोकतंत्र समाज की वह व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति और समाज को एक-दूसरे के बिरुद्ध खड़ा नहीं किया जाता। "मार्क्स के अनुसार लोकतंत्र वहीं संभव हो सकता है जहाँ व्यक्ति और राजनीतिक ढांचे में कोई अलगाव न हो' 'सच्चे लोकतंत्र' का अर्थ है व्यक्ति पर व्यक्ति द्वारा. शासन, न कि एक प्रतिकूल व्यवस्था द्वारा शासन । लोकतंत्र का अभिप्राय है वर्ग-विभाजन तथा निजी संपत्ति की समाप्ति इसका अभिप्राय केवल औपचारिक लोकतंत्र नहीं है। व्यक्तिगत स्वार्थ और प्रतिस्पर्धात्मक सफलता पर आधारित बुर्जुआ 'समाज लोकतंत्र के संबंध में मार्क्स की धारणा से बिल्कुल भिन्न है क्योंकि यह परस्पर विरोधी हितों गले वर्ग विभाजित समाज को जन्म देता है
मार्क्स और एंगेल्स ने पूंजीवादी लोकतंत्र की बेरहमी से आलोचना की है। अपनी पुस्तक द क्लास स्ट्रगल इन फ्रांस (The Class Struggle in France) में 1848 के बुजुआ गणतंत्र के बारे में मार्क्स ने लिखा था कि यह संपूर्ण वर्जुआ वर्ग के "पूर्ण और परिशुद्ध शासन के अलावा और कुछ हो ही नहीं सकता। मार्क्स की रचनाओं में यह विषम काफी उभरकर सामने आता रहा कि इस प्रकार के लोकतंत्रीय राज्य के शासकों और लोभ-भोगियों को यदि मजदूर वर्ग की शक्ति का डर लगने लगे तो यह कितना उत्पीड़क और निर्दयी हो सकता है बुर्जुआ लोकतंत्रीय शासन अवसर पड़ने पर बुर्जुआ आतंक में बदल सकता है। मार्क्स के अनुसार बुर्जुआ लोकतंत्रीय शासन की सभ्यता और न्याय अपने विकराल रूप में तब प्रकट होते है जब मजदूर वर्ग और दास अपने शासकों के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं। जब यह सभ्यता और न्याय नंगी क्रूरता और कानूनरहित बदले के रूप में प्रकट होते हैं। मार्क्स ने बुर्जुआ लोकतंत्र को एक पाखंड के अलावा कुछ नहीं माना, क्योकि आर्थिक शक्ति तथा इसके परिणामस्वरूप वास्तविक राजनीतिक शक्ति समाज के एक वर्ग-बुर्जुआ वर्ग के पास बनी रहती है। अतः लोकतंत्र की मार्क्सवाद धारणा में आर्थिक ढांचे का लोकतंत्रीकरण राजनीतिक लोकतंत्र की आधारशिला है। परंतु इतना सब कुछ कहने के बावजूद मार्क्स और एंगेल्स ने बुर्जुआ लोकतंत्र को इसकी तमाम कमजोरियों के बावजूद अन्य वर्ग-शासित निरंकुश राज्यों की अपेक्षा बेहतर माना। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि बुर्जुआ शासन मजदूर वर्ग को वे अवसर और संघर्ष के साधन प्रदान करता है जो अन्य किसी भी प्रकार के राज्यों में उपलब्ध नहीं होते। इस संदर्भ में द क्लास स्ट्रगल इन फ्रांस (The Class Struggle in France) का निम्नलिखित अंश उल्लेखनीय है: "पूंजीवादी गंणतंत्रीय संविधान का व्यापक अंतर्विरोध इस बात में निहित है कि यह संविधान उन वर्गों-सर्वहारा वर्ग, किसान तथा छोटे दुकानदार को सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के माध्यम से राजनीतिक शक्ति का स्वामी बना देता है जिनकी सामाजिक दासता को वह शाश्वत बनाना चाहता है। फिर, वह जिस पूंजीवर्ग वर्ग की सामाजिक शक्ति को यह मान्यता देता है उसे यह शक्ति की राजनीतिक गारंटी से वंचित कर देता है। यह पूंजीपतियों के राजनीतिक शासन का लोकतंत्रीय परिस्थितियों में चलाने के लिए बाध्य करता है जो हर कदम पर परस्पर विरोधी वर्गों की जीत में सहायता देता है तथा पूंजीवादी समाज की आधारशिला के लिए खतरा पैदा कर देता है। यह एक वर्ग से यह मांग करता है कि वह राजनीतिक मुक्ति से सामाजिक मुक्ति की तरफ कदम न बढ़ाए और दूसरे वर्ग से यह जाशा करता है कि वह सामाजिक पुनरुत्थान से राजनीतिक पुनकल्यान की तरफ न जाए।"
बुर्जुआ लोकतंत्र की एक विशेषता जिसने मार्क्स और एंगेल्स को आकर्षित किया वयस्क मताधिकार थी। मार्क्स का यह विचार था कि वयस्क मताधिकार जहाँ पूंजीवादी राज्यों के अंतर्विरोधों को स्पष्ट करता है, वहाँ यह मजदूर वर्ग की राजनीतिक प्रगति में भी मदद करता है तथा क्रांतिकारी आंदोलन के लिए समुचित अवसर प्रदान करता है। परंतु साथ-ही-साथ माकर्स का यह विचार भी था कि एक वर्ग-विभाजित समाज में मताधिकार तथा राज्य की शक्ति का संसदीय सहमति के रूप में अथवा शासक वर्ग के हाथों में एक खिलीने के रूप में दुरुपयोग किया जाता है। इन राज्यों में मताधिकार लोगों के हाथ में एक ऐसा साधन है जिससे ये कुछ वर्षों के लिए संसदीय वर्ग-शासन के लिए अपनी सहमत प्रदान करते हैं। इसका प्रयोग किसी वास्तविक उद्देश्य के लिए नहीं होता ताकि किसी समुदाय के लोग प्रशासन के लिए कार्यकर्ताओं का चुनाव
कर सकें। वयस्क मताधिकार को मार्क्स ने समाजवादी परिवर्तन के साथ भी जोड़ा जहाँ उसने यह विचार व्यक्त किया कि कुछ अपवादों में पूंजीवाद से समाजबाद में परिवर्तन शांतिपूर्ण तरीकों से हो सकता है और जहाँ मजदूर वर्ग चुनाव में बहुमत प्राप्त करके शासक वर्ग बन सकता है। यहाँ यह बात अवश्य बाद रखनी चाहिए कि मार्क्स के लिए ऐसी संभावना अपवाद तक ही सीमित थी।
मजदूर वर्ग के शासन की बात करते हुए मार्क्स सर्वहारा वर्ग की तानाशाही' (Dictatorship of the Proletariate) की बात नहीं करता। मार्क्स ने इस शब्दावली का प्रयोग करके अपने जीवनकाल में केवल दो-तीन बार ही किया, या कभी केवल निजी पत्रव्यवहार में किया कम्युनिस्ट घोषणा पत्र में मजदूर वर्ग के शासन को सर्वव्यापक मताधिकार के साथ जोड़ा गया जहाँ मार्क्स ने यह घोषित किया कि मजदूर वर्ग की क्रान्ति का पहला उद्देश्य सर्वहारा वर्ग को ऊपर उठाकर शासक वर्ग बनाना है और लोकतंत्र की लड़ाई को जीतना है। मजदूर-वर्गीय शासन द्वारा उठाए जाने वाले अनेक कदमों का वर्णन करने के बाद मार्क्स इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि विकास क्रम में जब वर्गों के भेद मिट जाएंगे और सारा उत्पादन राष्ट्र के एक विशाल संघ के हाब में केंद्रित हो जाएगा, तब सार्वजनिक सत्ता अपना राजनीतिक अस्तित्व खो देगी....तब वर्गों ओर वर्ग विरोधों से बिंधे पुराने समाज के स्थान पर एक ऐसे संघ की स्थापना होगी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का स्वतंत्र विकास सारे समाज के स्वतंत्र विकास की शर्त होगा।"
• मार्क्स ने बुर्जुआ लोकतंत्र के अंतर्विरोधों को स्पष्टता से देखा और समाज का क्रांतिकारी परिवर्तन एक ऐतिहासिक अनिवार्यता माना।
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