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रॉबर्ट नॉजिक की जीवनी एवं विचार(Biography and Thoughts of Robert Nozick)

   रॉबर्ट नॉजिक (Robert Nozick) रॉबर्ट नॉजिक (Robert Nozick) रॉबर्ट नॉजिक का जन्म अमेरिका के शहर ब्रुकलिन में 16 नवम्बर, 1938 को हुआ था। नॉजिक का समय 1970 और 1980 का दशक माना जा सकता है इसी समय में उन्हें अमेरिका में प्रतिष्ठित दार्शनिक सम्मान प्राप्त हुआ। रॉबर्ट नॉजिक की शिक्षा हॉवर्ड विश्वविद्यालय में हुई, अध्ययन कार्य किया। इन्होंने अपनी पुस्तक में दासता को भी उचित बताया था यदि कोई स्वेच्छा से स्वयं को बेचता है। रॉबर्ट नॉजिक की प्रमुख रचनाएँ रॉबर्ट नॉजिक की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं (i) एनाकी स्टेट एण्ड यूटोपिया (1974) (ii) द एक्जामिण्ड लाइफ (1989) (iii) सोक्रेटिक पजल्स (1997) (iv) फिलॉसोफिकल एक्सप्लानेशन (1981) (v) द नेचर ऑफ रेशनेलिटी (1995) न्याय सिद्धान्त रॉबर्ट नॉजिक ने चर्चित कृति एनार्की स्टेट एण्ड यूटोपिया (अराजकता, राज्य और कल्पना लोक-1974) के अंतर्गत न्याय के दो तरह के सिद्धान्तों में अन्तर किया है। एक ओर न्याय के ऐतिहासिक सिद्धान्त हैं तो दूसरी ओर साध्यमूलक सिद्धान्त हैं। ऐतिहासिक सिद्धान्तों के अनुसार लोगों की अतीत परिस्थितियों और अतीत कार्यों के आधार पर उनके वर्तमान अ

रॉल्स की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Rawls)/आधुनिक राजनीतिक विचारक

रॉल्स (Rawls)/आधुनिक राजनीतिक विचारक रॉल्स (Rawls) समकालीन उदारवादी चिन्तन के अन्तर्गत प्रगति बनाम न्याय (Progress Vs Justice) के विवाद में हेयक ने प्रगति का पक्ष लेते हुए न्याय की अवहेलना की है। इसके विपरीत राल्स ने अपनी विख्यात कृति "ए थ्योरी ऑफ जस्ट्सि (A Theory of Justice 1971) के अन्तर्गत यह तर्क दिया है कि उत्तम समाज में अनेक सद्गुण (Virtues) आवश्यक होते हैं। उनमें न्याय का स्थान सर्वप्रथम है। न्याय सभ्य व उत्तम समाज की आवश्यक शर्त है परन्तु यह उसके लिए पर्याप्त नहीं है किसी समाज में न्याय के अलावा दूसरे नैति गुणों की प्रधान हो सकती है, परन्तु अन्यायपूर्ण समाज विशेष रूप से निन्दनीय होगा। जो विचारक यह मांग करते हैं कि सामाजिक उन्नति के कार्यक्रम में न्याय के विचार को आगे नहीं आने देना चाहिए, ये समाज को नैतिक पतन की ओर ले जाने का खतरा मोल ले रहे होते हैं। रॉल्स के अनुसार न्याय की समस्या प्राथमिक वस्तुओं (Primary Goods) के अन्यायपूर्ण वितरण की समस्या है। वे प्राथमिक वस्तुएँ हैं अधिकार और स्वतंत्रताएँ शक्तियों एवं अवसर, आप और समपदा तथा आत्मसम्मान के साधन रॉल्स ने अपने न्याय सिद्

ग्राम्शी की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Gramsci)

 ग्राम्शी (Gramsci)  ग्राम्शी (Gramsci) ग्राम्शी 20वीं सदी में परम्पराबादी मार्क्सवादी के विशिष्ट सिद्धान्तकार थे। लिनोवस्की के अनुसार लेनिन के बाद मार्क्सवादी विचारकों में ग्राम्शी सबसे स्वाभाविक क्रान्तिकारी तथा साम्यवादी सिद्धान्तकार कहे जा सकते है। ग्राम्शी ने 20वीं सदी के अन्य मार्क्सवादी सिद्धान्तकारों की तरह इस प्रश्न पर विचार किया पूँजीवादी का अन्त क्यों नहीं हो सका तथा पूंजीवाद किन कारकों से अग्रसरित होता रहा है। क्रोश प्रत्यक्षवाद के विरोधी थे तथा उन्होंने मार्क्स से भिन्न इतिहास के निर्धारण में व्यक्तिनिष्ठ कारकों की भूमिका को माना था। क्रोश प्रत्यक्षवाद के विरोधी थे तथा उन्होंने मार्क्स से भिन्न इतिहास के निर्धारण में व्यक्तिनिष्ठ कारकों की भूमिका को माना था। क्रोश के अनुसार इतिहास का अध्ययन मनुष्य की सभी गतिविधियों अर्थात् सामाजिक-सांस्कृतिक नैतिकता से सम्बन्धित अध्ययन के आधार पर ही किया जा सकता है। क्रोश के प्रभाव में ही ग्राम्शी ने नागरिक समाज तथा उसमें बुद्धिजीवी वर्ग की भूमिका को स्वीकारा है। ग्राम्शी ने मार्क्स के इस विचार का समर्थन किया कि राज्य में दमन शक्ति होती है

माओ त्से तुंग की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Mao-tse Tung)

   माओ त्से तुंग (Mao-tse Tung) माओ त्से तुंग (Mao-tse Tung) मार्क्सवाद के व्याख्याकारों में विचारक और राजमर्मज्ञ दोनों तरह के लोग आते हैं। लेनिन और स्टालिन के बाद जिन राजमर्मज्ञों ने मार्क्सवादी परंपरा को आगे बढ़ाया उनमें चीन के माओ त्से-तुंग का नाम अग्रणी है। माओ ने चीन में साम्यवादी आंदोलन का नेतृत्त्व संभालकर 1949 में वहाँ समाजवादी राज्य की स्थापना की।      माओ त्से तुंग ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांतों में अपना दृढ विश्वास करते हुए उसके कार्यान्वयन में कुछ परिवर्तनों का सुझाव दिया। माओ ने मार्क्स और एंगेल्स के कुछ सिद्धांतों को भी नई व्यवस्था दी। मार्क्स और एंगेल्स का विश्वास या कि 'सर्वहारा का अधिनायकतंत्र' एक अल्पस्थायी व्याख्या होगी क्योंकि इसकी स्थापना के बाद राज्य के लुप्त होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। परंतु माओ ने यह अनुभव किया कि जब सर्वहारा वर्ग सत्ता संभाल लेगा तब भी वर्ग संघर्ष एक ऐसे वस्तुपरक नियम के रूप में जारी रहेगा जिस पर मनुष्य का वश नहीं होगा, केवल उसका रूप बदल जाएगा माओ ने यह तर्क दिया कि आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने पर भी समाजवादी व्यव

लेनिन की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Lenin)/आधुनिक राजनीतिक विचारक

लेनिन (Lenin)/आधुनिक राजनीतिक विचारक  लेनिन (Lenin) मार्क्सवाद के सिद्धांतों को सबसे पहले व्यवहारिक रूप देने का श्रेय सोवियत रूस की बोल्शेविक क्रांति (1917-1923) के कर्णधार लेनिन (1870-1924) को है। स्वयं लेनिन ने मार्क्स की नई व्याख्या देकर उसे व्यावहारिक दर्शन के रूप में परिणत कर दिया। मार्क्स ने अपना चिंतन उस दौर में प्रस्तुत किया था जब औद्योगिक क्रांति के बहुत बुरे प्रभाव दिखाई पड़ने लगे थे, और मजदूरों को अपनी दुर्दशा से उबरने की कोई आशा दिखाई नहीं देती थी। अतः उसे यह विश्वास हो गया था कि सर्वहारा अपने कष्टों से तब तक मुक्त नहीं हो सकते जब तक वे संगठित होकर संपूर्ण पूंजीवादी व्यवस्था को धराशायी नहीं कर देते। मार्क्स को यह आशा थी कि विश्व के सर्वहारा शीघ्र ही अपने सामान्य आर्थिक हित को समझकर संगठित हो जाएंगे और पूंजीपतियों के विरुद्ध क्रांति कर देंगे। लेनिन ने मार्क्स से प्रेरणा लेकर क्रांति का व्यावहारिक कार्यक्रम बनाया और उसे सायंक बनाने के लिए मार्क्सवाद की नई व्याख्या प्रस्तुत की। संक्षेप में, लेनिन ने मार्क्स की मान्यताओं में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए जो निम्नलिखित हैं: क्र

मार्क्स की जीवनी एवं विचार /Biography and Thoughts of Marx / कार्ल मार्क्स

   मार्क्स /Marx / कार्ल मार्क्स मार्क्स (Marx )  मार्क्स के अनुसार आधुनिक राज्य समाज (civil society) जो व्यक्तिवाद पर आधारित है-एक सामाजिक प्राणी के रूप में व्यक्ति के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है। व्यक्तिवाद से अभिप्राय एक ऐसे व्यक्ति के प्रतिमान से है जिसके सामाजिक संबंध उसके निजी स्वार्थों को पूरा करने के साधन मात्र हैं, जो व्यक्तिगत अस्तित्व को व्यक्ति का सर्वोच्च उद्देश्य मानता है और जो समाज को व्यक्ति के संदर्भ में बाह्य और औपचारिक वस्तु मानता है। आधुनिक नागरिक समाज व्यक्तिवाद का साकार रूप है जहाँ व्यक्ति का पृथक् अस्तित्व परम साध्य हैं और सारे क्रियाकलाप उसके साधन है। मार्क्स के अनुसार इस प्रकार का समाज एक सामाजिक व्यक्ति का प्रतिमान प्रस्तुत नहीं कर सकता। मार्क्स के अनुसार जो समाज व्यक्ति के इस अकेलेपन, (atomization) पर विजय पा लेगा, वही सच्चा लोकतंत्र होगा ।" 'लोकतंत्र 'व्यक्ति के सामुदायिक सार-तत्त्व' (man's.communist essence) पर आधारित है सच्चा लोकतंत्र समाज की वह व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति और समाज को एक-दूसरे के बिरुद्ध खड़ा नहीं किया जाता। "

टी.एच. ग्रीन की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of T. H. Green)

 टी.एच. ग्रीन (T. H. Green)  टी.एच. ग्रीन (T. H. Green)      उदारवाद की मुख्य समस्या व्यक्ति के व्यक्तित्व तथा सामाजिक समुदाय में सामंजस्य लाने की रही है। जहाँ पहले उदारवादियों ने समाज की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्त्व दिया, वहाँ ग्रीन (1898) ने यह विचार प्रकट किया कि सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण भाग अदा करने से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास हो सकता है। उदारवाद ने पुराने सिद्धांत ने राज्य को कम-से-कम कानून बनाने की सलाह दी परंतु ग्रीन का यह मत था कि उदारवाद को इस संकुचित चार पर हमेशा के लिए खड़ा नहीं किया जा सकता। उदारवादी नीतियों को लचीला होना पड़ा ताकि वे समय की तयों का सामना कर सकें। यदि उदारवाद को सच्चा होना है तो उसका आधार नैतिक होना चाहिए। उनके अनुसार यादी दर्शन का केंद्र-बिंदु सामाजिक हित का विचार अर्थात् सार्वजनिक कल्याण है। राज्य द्वारा बनाए जाने वाले अनूनों का भी उसने यही मापदंड निर्धारित किया। सवतंत्रता की धारणा भी, ग्रीन के अनुसार, व्यक्तिगत धारणा के साथ-साथ एक सामाजिक धारणा है और यह उस समाज की गुणवत्ता (quality) और समाज में रहने वाले व्यक्तियों को गुणवत्ता दोनों की त

हीगल की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Hegel)/हीगल की रचनाएँ/विश्वात्मा पर विचार /विश्वात्मा पर विचार / जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल

  जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल  हीगल (Hegel) जर्मन आदर्शवादियों में होगल का नाम शीर्षस्य है। इनका पूरा नाम जार्ज विल्हेम फ्रेडरिक हीगल था। 1770 ई. में दक्षिण जर्मनी में बर्टमवर्ग में उसका जन्म हुआ और उसकी युवावस्था फ्रांसीसी क्रान्ति के तुफानी दौरे से बीती हींगल ने विवेक और ज्ञान को बहुत महत्त्व प्रदान किया। उसके दर्शन का महत्त्व दो ही बातों पर निर्भर करता है- (क) द्वन्द्वात्मक पद्धति, (ख) राज्य का आदर्शीकरण। हीगल की रचनाएँ लीगल की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं 1. फिनोमिनोलॉजी ऑफ स्पिरिट (1807)  2. साइन्स ऑफ लॉजिक (1816) 3. फिलॉसफी ऑफ लॉ या फिलॉसफी ऑफ राइट (1821) 4. कॉन्सटीट्शन ऑफ जर्मनी  5. फिलॉसफी ऑफ हिस्ट्री (1886) मृत्यु के बाद प्रकाशित विश्वात्मा पर विचार  हीगल के अनुसार इतिहास विश्वात्मा की अभिव्यक्ति की कहानी है या इतिहास में घटित होने वाली सभी घटनाओं का सम्बन्ध विश्वात्मा के निरन्तर विकास के विभिन्न चरणों से है। विशुद्ध अद्वैतवादी विचारक हीगल सभी जड़ एवं चेतन वस्तुओं का उद्भव विश्वात्मा के रूप में देखता है वेदान्तियों के रूप में देखता है वेदान्तियों के 'तत्वमसि', 'अ

जे.एस. मिल की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of J.S. Mill)

  जे.एस. मिल (J.S. Mill) जे.एस. मिल (J.S. Mill) जे.एस. मिल ने राज्य की उत्पत्ति का कारण व्यक्ति की स्वार्थ सिद्धि न मानकर व्यक्ति की सकारात्मक इच्छा माना और राज्य की उत्पत्ति के उस यांत्रिक दृष्टिकोण को गलत माना जो व्यक्ति की इच्छा और उसके व्यक्तित्व की उपेक्षा करता है उसने स्वतंत्रता और प्रतिनिधि सरकार को इन आधारों पर न्यायसंगत ठहराने की चेष्टा की कि यह व्यक्ति के पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। उसने स्वतंत्रता को भी सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा। यद्यपि मिल ने वैथम की इस धारणा को अस्वीकार नहीं किया कि राज्य का हस्तक्षेप व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक है, तथापि उसने यह भी अवश्य अनुभव किया कि यदि व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत का विकास करना है तो कुछ आधारों पर राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक है। अपनी पुस्तक पॉलिटिकल इकॉनॉमी (Political Economy) में मिल ने लिखा है: "यह आवश्यक नहीं कि व्यक्तिगत सुख सामाजिक सुख की वृद्धि भी करे। समाज में सभी व्यक्ति अपना जीवन संघर्ष समानता के आधार पर आरंभ नहीं करते।" भूमि, उद्योग, ज्ञान आदि कुछ व्यक्तियों के एकाधिकार में होने के कारण और पूर्ण सामा

जरमी बैंथम की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Benthem)

  जरमी बैंथम (Benthem) जरमी बैंथम (Benthem) बैंथम इंग्लैण्ड का एक समाज सुधारक, कानून शास्त्री तथा राजनीतिक विद्वान था राजनीतिक क्षेत्र में वह उपयोगितावाद (utilitarianism) के सिद्धांत का प्रतिपादक है। वैयम ने सभी सामाजिक संस्थाओं कानून, संविधान, धर्म, आदि को उपयोगिता के मापदंड से मापने की मांग की। उपयोगिता से अभिप्राय अधिक-से-अधिक व्यक्तियों का अधिक-से-अधिक सुख माना गया, अर्थात् समाज के अधिक-से-अधिक व्यक्तियों का अधिक से अधिक सुख जो कि व्यक्तिगत रूप से अपने हितों की पूर्ति में लगे हुए हैं। बैंथम राज्य को व्यक्ति के सुख और आनंद की वृद्धि के लिए निर्मित संस्था मानता है। उसके अनुसार समाज में रहने वाले मनुष्यों के सुख के अलावा राज्य का कोई सामूहिक सुख नहीं होता। समाजी की अंतिम वास्तविकता है। समाज को वैयम एक बनावटी प्रबंध मानते हैं। वैथम के अनुसार राज्य व्यक्ति के लिए है न कि व्यक्ति राज्य के लिए इस तथ्य के बावजूद कि राज्य व्यक्ति के सुख की वृद्धि के लिए बनाया गया है, वैथम के अनुसार राज्य का चरित्र नकारात्मक है। व्यक्ति केवल अपने सुख और दुख द्वारा शासित होता है, और प्रत्येक व्यक्ति अपने हितो

रूसो की जीवनी एवं विचार (Biography and Thoughts of Rousseau)/मानव स्वभाव/प्राकृतिक अवस्था/सामाजिक समझौता/प्रभुसत्ता

 रूसो (Rousseau)/मानव स्वभाव/प्राकृतिक अवस्था/सामाजिक समझौता/प्रभुसत्ता  रूसो (Rousseau) सामाजिक समझौते के प्रवर्तकों ने तीसरा नाम फ्रांसीसी दार्शनिक रूसो (1712-1778) का है। रूसो का समय संघर्षमय तथा गतिशील था। संदेहवाद, भौतिवाद, विज्ञान के चमत्कारों की आशिक अनुभूति, राजनीतिक उत्पीड़न तथा आर्थिक शोषण, राजनीतिक दासता से मुक्ति पाने के लिए मध्यमवर्ग की आकुलता, लोक जीवन में स्वार्थपरता, आडवर इत्यादि 18वीं शताब्दी के फ्रांसीसी जीवन के प्रधान लक्षण थे और इन परिस्थितियों में रूसो की समस्या थी स्वतंत्रता तथा अनुशासन की आवश्यकताओं के मध्य संबंध स्थापना अथवा समन्वय की इस संबंध में हॉब्स ने एक सुदृढ तथा शक्तिशाली एकतंत्र तथा लोक ने मर्यादित राजतंत्र के रूप में दो समाधान प्रस्तुत किए थे। परंतु शायद रूसो को यह प्रतीत हुआ कि हॉब्स ने अनुशासन की वेदी पर स्वतंत्रता की बलि चढ़ा दी और तौक एक सुस्थिर, सामाजिक-राजनीतिक अनुशासन के अभाव में ही स्वतंत्रता की कल्पना करता है। इसलिए रूसो सामान्य इच्छा (general will) की अपनी धारणा से स्थायी समाधान प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है। रूसो के इस दृष्टिकोण का एक प्रम

जॉन लॉक की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of John Locke

  जॉन लॉक /John Locke जॉन लॉक (John Locke) प्रस्तुत संदर्भ में 17वीं शताब्दी का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग्रेज दार्शनिक लॉक है लॉक, हॉब्स की तरह सीचा, साफ और स्पष्ट नहीं है और उसका उद्देश्य भी भिन्न हॉब्स ने 1649 की खूती क्रांति के बाद राज्य के विवेकसम्मत आधार की स्थापना के लिए सामाजिक समझौते का सिद्धांत स्थापित किया था जबकि लॉक 1688 की उस गौरवपूर्ण क्रांति (Glorious (Revolution) के समय में लिख रहा था जो उदारवादी सांविधानिक, लोकतांत्रिक राजनीतिक परंपरा के पक्ष में थी। इसी कारण प्राकृतिक अवस्था और प्राकृतिक नियमों के विषय में लॉक के विचार हॉब्स से भिन्न हैं। जॉन लॉक के मुख्य विचार उसकी पुस्तक सेकंड ट्रीटाइज (Second Treatise, 1690) में मिलते हैं। मानव स्वभाव-लॉक के अनुसार मनुष्य तृष्णा पूर्ति का ही नहीं, बल्कि विवेक तथा ईश्वर के बताए हुए न्याय का पुतला भी है। लॉक के संस्कार परंपरागत ईसाई संस्कार थे इसलिए उसका प्राकृतिक मनुष्य भी एक पढ़ा-लिखा संपत्तिशाली ईसाई नज़र आता है। यह व्यक्ति अपने जीवन का निर्देश देवी कानून तथा प्राकृतिक कानून से लेता है। विवेकशील प्राणी के नाते यह इन दोनों को समझ सकता

हॉब्स की जीवनी एवं विचार /Biography and Thoughts of hobbs

   हॉब्स/hobbs हॉब्स विख्यात अंग्रेज विचारक टॉमस हॉब्स (1588-1679) अपने जन्म के विषय में कहता है कि "मैं और मेरा भय जुड़वां भाई" हैं" अव्यवस्था का भय हॉब्स के सिद्धांत की आधारशिला है। हालांकि हॉब्स को उदारवादी कहना मुश्किल है, फिर भी उसके सिद्धांत में उदारवाद के दार्शनिक तत्त्व पूरी तरह मौजूद हैं। सामाजिक समझौते से संबंधित विचार उनकी पुस्तक लेवायवन (Leviathan, 1651) में दिए गए हैं जो संक्षेप में निम्नलिखित हैं:      मानव स्वभाव-हॉब्स के अनुसार मनुष्य तृष्णा का दास है। तृष्णाएँ असीम हैं जबकि उनकी तृप्ति के साधन सीमित होते हैं। इसलिए इन साधनों की प्राप्ति में जुटा मनुष्य दूसरे मनुष्य का प्रतिद्वंदी बन जाता है। प्रतिस्पर्धा से अविश्वास पैदा होता है और अविश्वास से दूसरे की सफलता का भय स्पर्धा का आधार इसके अलावा भी है। यदि भौतिक तृष्णा की तृप्ति के साधन असीम भी होते तो भी मनुष्य एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहते जिसके परिणामस्वरूप अविश्वास अवश्य पैदा होता। प्राकृतिक अवस्था हॉब्स के सिद्धांत में प्राकृतिक अवस्था वह काल्पनिक अवस्था है जिसमें व्यवस्था

मैकियावेली /Machiavelli/ यूरोपीय और आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचार

मैकियावेली /Machiavelli/ यूरोपीय और आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचार मैकियावेली (Machiavelli) मैकाइवली (मैकाइवर) ने सामाजिक आधारों को राजनीति के मूल में मानते हुए सामाजिक इकाईयों के आधार पर राज्य की उत्पत्ति का सिद्धान्त दिया है। मैकाइवर के अनुसार नेतृत्व का प्रदर्शन तथा सत्ता का प्रयोग वहाँ होता है जहाँ समाज होता है। मैकाइवर का विचार है कि इस समाज के वातावरण ने प्रत्येक परिवार से 'पिता' को तथा परिवारों से 'पिताओं' और 'मुखियाओं' को जन्म दिया। परिवार का पिता परिवार का तथा परिवारों के बहुपिता परिवारों से संबंधित विषयों का शासन प्रबंध चलाने लग गए। पिताओं तथा 'मुखियाओं' में से किसी एक विषय 'पिता' अथवा 'मुखिया' ने अपने शक्तिशाली तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व के बल से 'सरदार' का रूप धारण कर लिया। यहीं नेतृत्व का आरंभ था। इस तरह सरदार के कार्य भिन्न प्रकार के होने के कारण उसने समूह के परिवारों के अन्य अनेक 'पिताओं' से अपनी अलग पहचान बना ली। उसकी स्थिति अन्य 'मुखियाओं' की अपेक्षा अधिक गौरवपूर्ण बन गई। धीरे-धीरे उसके विशेषाधिकारों

अरस्तू/Aristotle/अरस्तू -राजनीति विज्ञान का जनक

 अरस्तू/Aristotle/अरस्तू -राजनीति विज्ञान का जनक अरस्तू यूनान के दार्शनिक मनीषियों में सुकरात और प्लेटो के बाद अरस्तू का नाम उल्लेखनीय है अरस्तू को तर्कशास्त्र का जनक भी कहा जाता है। मैक्सी ने उसे प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक की संज्ञा दी है। वह यूनान की अमर गुरु-शिष्य परम्परा का तीसरा सोपान था। यूनान का दर्शन बीज की तरह सुकरात में आया, लता की भाति प्लेटो में फैला और पुष्प की भाति अरस्तू में खिल गया। सुकरात महान के आदर्शवादी तथा कवित्वमय शिष्य प्लेटो का यथार्थवादी तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला शिष्य अरस्तू बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। उसकी इसी प्रतिभा के कारण कोई उसे बुद्धिमानों का गुरु कहता है तो कोई सामाजिक विज्ञान में नवीन विषयों का जन्मदाता' कहता है। फॉस्टर के अनुसार, "अरस्तू की महानता उसके जीवन में नहीं, किन्तु उसकी रचनाओं में प्रदर्शित होती है।" केटलिन के अनुसार, "अरस्तू की महानता उसके जीवन में नहीं, किन्तु उसकी रचनाओं में प्रदर्शित होती है। कैटलिन के शब्दों में "अरस्तू दिया का सर्वश्रेष्ठ एवं प्रथम विश्वकोशी था "  अरस्तू की महानतम रचना: दि पॉलिटिक्स 'पॉ

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निति आयोग और वित्त आयोग |NITI Ayog and Finance Commission

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भारतीय निर्वाचन आयोग और परिसीमन आयोग |Election Commission of India and Delimitation Commission

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भारतीय संविधान सभा तथा संविधान निर्माण |Indian Constituent Assembly and Constitution making

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  36. परिभाषा- इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' का वही अर्थ है जो भाग 3 में है। 37. इस भाग में अंतर्विष्ट तत्त्वों का लागू होना- इस भाग में अंतर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे किंतु फिर भी इनमें अधिकथित तत्त्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्त्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। 38. राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा- राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करे, भरसक प्रभावी रूंप में स्थापना और संरक्षण करके लोक कल्याण की अभिवृद्धि का प्रयास करेगा। राज्य, विशिष्टतया, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यष्टियों के बीच बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा। 39. राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्त्व- राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनि

राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर/very important question and answer of polity

 राजव्यवस्था के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्‍न – किस संविधान संशोधन अधिनियम ने राज्‍य के नीति निर्देशक तत्‍वों को मौलिक अधिकारों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली बनाया?  उत्‍तर – 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) ने प्रश्‍न – भारत के कौन से राष्‍ट्रपति ‘द्वितीय पसंद'(Second Preference) के मतों की गणना के फलस्‍वरूप अपना निश्चित कोटा प्राप्‍त कर निर्वाचित हुए?  उत्‍तर – वी. वी. गिरि प्रश्‍न – संविधान के किस अनुच्‍छेद के अंतर्गत वित्‍तीय आपातकाल की व्‍यवस्‍था है?  उत्‍तर – अनुच्‍छेद 360 प्रश्‍न – भारतीय संविधान कौन सी नागरिकता प्रदान करता है?  उत्‍तर – एकल नागरिकता प्रश्‍न – प्रथम पंचायती राज व्‍यवस्‍था का उद्घाटन पं. जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्‍टूबर, 1959 को किस स्‍थान पर किया था ? उत्‍तर – नागौर (राजस्‍थान) प्रश्‍न – लोकसभा का कोरम कुल सदस्‍य संख्‍या का कितना होता है?  उत्‍तर – 1/10 प्रश्‍न – पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन तथा पुनर्निरीक्षण किसके द्वारा किया जाताहै? उत्‍तर – राष्‍ट्रीय विकास परिषद प्रश्‍न – राज्‍य स्‍तर पर मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है?  उत्‍तर – राज्‍यपाल प्रश्‍न – नए

भारतीय संविधान के भाग |Part of Indian Constitution

  भाग 1  संघ और उसके क्षेत्र- अनुच्छेद 1-4 भाग 2  नागरिकता- अनुच्छेद 5-11 भाग 3  मूलभूत अधिकार- अनुच्छेद 12 - 35 भाग 4  राज्य के नीति निदेशक तत्व- अनुच्छेद 36 - 51 भाग 4 A  मूल कर्तव्य- अनुच्छेद 51A भाग 5  संघ- अनुच्छेद 52-151 भाग 6  राज्य- अनुच्छेद 152 -237 भाग 7  संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम,- 1956 द्वारा निरसित भाग 8  संघ राज्य क्षेत्र- अनुच्छेद 239-242 भाग 9  पंचायत - अनुच्छेद 243- 243O भाग 9A  नगर्पालिकाएं- अनुच्छेद 243P - 243ZG भाग 10  अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र- अनुच्छेद 244 - 244A भाग 11  संघ और राज्यों के बीच संबंध- अनुच्छेद 245 - 263 भाग 12  वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद -अनुच्छेद 264 -300A भाग 13  भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम- अनुच्छेद 301 - 307 भाग 14  संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं- अनुच्छेद 308 -323 भाग 14A  अधिकरण- अनुच्छेद 323A - 323B भाग 15 निर्वाचन- अनुच्छेद 324 -329A भाग 16  कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध संबंध- अनुच्छेद 330- 342 भाग 17  राजभाषा- अनुच्छेद 343- 351 भाग 18  आपात उपबंध अनुच्छेद- 352 - 360 भाग 19  प्रकीर्ण- अनुच्छेद 361 -367

संघीय कार्यपालिका एवं भारत का राष्ट्रपति | Federal Executive and President of India

  भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है. 1.  भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है. इसलिए राष्ट्रपति नामपत्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है. राष्ट्रपति a.  राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रधान होता है. b.  भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम व्यक्ति कहलाता है. 2.   राष्ट्रपति पद की योग्यता:  संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्‍ट्रपति होने योग्य तब होगा, जब वह: (a)  भारत का नागरिक हो. (b)  35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो. (c)  लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किए जाने योग्य हो. (d)  चुनाव के समय लाभ का पद धारण नहीं करता हो. नोट:  यदि व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर हो या संघ अथवा किसी राज्य की मंत्रिपरिषद का सदस्य हो, तो वह लाभ का पद नहीं माना जाएगा. 3.   राष्‍ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल:  इसमें राज्य सभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य रहते हैं. नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पांडिचेरी विधानसभा तथा दिल्ली की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य को भी सम्मिलित किया गया है. 4.  राष्ट्रप

विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी एवं विचार/Biography and Thoughts of Vinayak Damodar Savarkar

   विनायक दामोदर सावरकर/Vinayak Damodar Savarkar विनायक दामोदर सावरकर विनायक दामोदर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (आधुनिक मुम्बई) प्रान्त के नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर एवं माता का नाम राधाबाई था। विनायक दामोदर सावरकर की पारिवारिक स्थिति आर्थिक क्षेत्र में ठीक नहीं थी। सावरकर ने पुणे से ही अपनी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति की झलक दिखानी शुरू कर दी थी जिसमें 1908 ई. में स्थापित अभिनवभारत एक क्रान्तिकारी संगठन था। लन्दन में भी ये कई शिखर नेताओं (जिनमें लाला हरदयाल) से मिले और ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों का संचालन करते रहे। सावरकर की इन्हीं गतिविधियों से रुष्ट होकर ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें दो बार 24 दिसम्बर, 1910 को और 31 जनवरी, 1911 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। विनायक दामोदर द्वारा लिखित पुस्तकें (1) माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ (ii) हिन्दू-पद पादशाही (iii) हिन्दुत्व (iv) द बार ऑफ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स ऑफ 1851 सावरकर के ऊपर कलेक्टर जैक्सन की हत्या का आरोप लगाया गया जिसे नासिक षड्यंत्र केस में नाम से जाना

PREAMBLE of India

 PREAMBLE WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens: JUSTICE, social, economic and political, LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship, EQUALITY of status and of opportunity: and to promote among them all  FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation,  IN OUR CONSTITUENT ASSEMBLY this twenty-sixth day of November, 1949, do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION.